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Friday, 26 April, 2024
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मोहन भागवत और जर्मन राजदूत से मुलाकात पर विवाद के पीछे आरएसएस को साजिश दिखती है

आरएसएस के पदाधिकारियों के अनुसार संघ प्रमुख का राजनयिकों से मिलना कोई नई बात नहीं है, पर मौजूदा विवाद को वामपंथी रुझान वाले बुद्धिजीवियों का एक वर्ग हवा दे रहा है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सरसंघचालक मोहन भागवत और भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर जे लिंडनर की मुलाकात पर उठे विवाद को गंभीरता से लिया है. संघ इसे दुनिया भर में उसकी छवि को खराब करने के एक व्यापक प्रयास के विशिष्ट पैटर्न के तहत देखता है.

आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों के अनुसार संगठन इस बात से अवगत है कि लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में संगठन के खिलाफ खबरें और लेख छपने शुरू हो गए थे. यहां तक कि मामूली आपराधिक घटनाओं को इस तरह प्रदर्शित किया गया कि जिससे इस धारणा को बल मिले कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के कारण ही अल्पसंख्यकों को हिंदू संगठनों का निशाना बनना पड़ रहा है.

आरएसएस पदाधिकारियों को ये भी लगता है कि ऐसे लेखों में से अधिकांश एक खास पत्रकार-सह-एक्टिविस्ट समूह के लोगों ने लिखे हैं, जो कि अपने आरएसएस विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं. अपनी एकतरफा राय के कारण, ये पत्रकार-सह-एक्टिविस्ट भारतीय मीडिया द्वारा खारिज कर दिए गए, पर विदेशी मीडिया में फौरन उनको ‘पुनर्वासित’ कर दिया गया और अब वे नरेंद्र मोदी शासित भारत की छवि को धूमिल करने के लिए उन मीडिया प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

जर्मन राजदूत की आरएसएस प्रमुख से मुलाकात पर हालिया विवाद को आरएसएस से संपर्क की कोशिश करने वाले हर शख्स के खिलाफ विदेशी मीडिया की सहायता से अभियान चलाने की एक व्यापक साजिश के तहत भी देखा जा रहा है. पहले कुछ रिपोर्टें सामने आईं, फिर सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया गया और अब राजदूत के खिलाफ ऑनलाइन याचिकाएं शुरू की गई हैं.

आरएसएस इसे वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा योजनाबद्ध तरीके से संचालित एक अभियान के हिस्से के तौर पर देखता है, क्योंकि संघ तो वरिष्ठ विदेशी राजनयिकों से दशकों से संपर्क करता रहा है, पर इससे पहले कभी भी ऐसी मुलाकातों पर विवाद नहीं हुआ.

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राजदूतों और नामी शख्सियतों से अतीत की मुलाकातें

आरएसएस मुख्यालय से वाकिफ लोगों को पता होगा कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अनेक वरिष्ठ विदेशी राजनयिकों ने आरएसएस पदाधिकारियों से मुलाकात और संपर्क किए हैं. आरएसएस पदाधिकारियों से मुलाकात की उनकी इच्छा का एक प्रमुख कारण है. संघ के आर्थिक दृष्टिकोण को लेकर उनकी जिज्ञासा, क्योंकि संघ को केंद्र तथा करीब 15 राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी का वैचारिक अभिभावक माना जाता है.

यह तथ्य भी विचारणीय है कि आरएसएस की दुनिया के 50 से अधिक देशों में उपस्थिति है, जिनमें से अधिकांश जगहों पर यह ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ के नाम से सक्रिय है. यहां भारत में, आरएसएस का अपना एक ‘विश्व विभाग’ है जो कि विदेश में संघ के क्रियाकलापों को देखता है.

बड़ी संख्या में दुनिया भर के देशों के पेशेवर और विशेषज्ञ आरएसएस से संबद्ध हैं. हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित पश्चिमी जगत के अनेक शिक्षाविद भी आरएसएस के इस वैश्विक कुनबे का हिस्सा हैं.

इस तरह, दुनिया भर के राजनयिकों और कामयाब लोगों से जुड़ना आरएसएस के लिए कोई नई बात नहीं है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा जैसी विशिष्ट शख्सियतें नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय का दौरा करने और वहां सरसंघचालक से मुलाकात करने वालों में शामिल हैं.


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सितंबर 2018 में समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने, जिनमें तमाम वरिष्ठ राजनयिक भी शामिल थे. भागवत की व्याख्यान श्रृंखला के दौरान नई दिल्ली के विज्ञान भवन में उनसे मुलाकात की थी.

(लेखक इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के सीईओ हैं, और उन्होंने ‘नो अबाउट आरएसएस’ नामक किताब लिखी है.)

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