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Friday, 22 November, 2024
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आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने डेयरी आयात का विरोध करने के लिए धर्म को बनाया मुद्दा

आरएसएस से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच अब यह कहते हुए बीच में कूद पड़ा है कि वह धार्मिक आधार पर अमेरिकी डेयरी उत्पादों का विरोध करता है.

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नई दिल्ली: अमेरिका के साथ होने वाले संभावित व्यापार समझौते में कई मुद्दों पर बाधा उत्पन्न हुई है और अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आने वाले हैं. अब एक और डील को धार्मिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

जबकि ट्रम्प ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह सोमवार से शुरू होने वाली अपनी पहली दो दिवसीय यात्रा के दौरान एक भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे. आरएसएस का कहना है कि वह अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात की अनुमति नहीं देगा. अमेरिकी डेयरी उत्पादों पर सौदेबाज़ी दशकों से रही है और यह संभावित सौदे में एक बाधा रही है.

आरएसएस से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच अब यह कहते हुए बीच में कूद पड़ा है कि वह धार्मिक आधार पर अमेरिकी डेयरी उत्पादों का विरोध करता है.

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने दिप्रिंट को बताया कि हम गायों की पूजा करते हैं क्योंकि यह भारतीयों के लिए मां की तरह है. अमेरिका को यह समझने की जरूरत है कि यह (डेयरी आयात करना) एक अन्यायपूर्ण मांग है. मोदी सरकार भी इसी विचार को मानती है. पशु मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय कामधेनुयोग के अध्यक्ष वल्लभ भाई कथीरिया ने भी यही चिंता व्यक्त की.

कथीरिया ने पूछा, ‘सदियों से हमने गायों की पूजा की है. तो हम अमेरिका से अप्रमाणित डेयरी उत्पादों की अनुमति कैसे दे सकते हैं, चाहे वह मक्खन हो या पनीर या कोई अन्य उत्पाद हो? हमारी धार्मिक भावनाएं गाय के साथ जुड़ी हुई हैं. मोदी सरकार अमेरिकी डेयरी उत्पादों को प्रमाणीकरण के बिना कभी भी अनुमति नहीं देगी.’

नॉन-वेज डाइट की पहेली

विवाद का विषय आहार है, जो अमेरिकी मवेशियों को खिलाया जाता है. अमेरिकी मवेशियों को एक मांसाहारी युक्त भोजन, एक प्रोटीन युक्त पूरक आहार खिलाया जाता है. जिसे सस्ता और प्रभावी दोनों माना जाता है, जो जानवरों के रक्त और शरीर के अन्य हिस्सों से प्रोक्योर किया जाता है. मिश्रण को पाउडर चारे में बदल दिया जाता है जो मवेशियों के एमिनो एसिड आहार के लिए क्षतिपूर्ति करता है.

स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन ने कहा, ‘भारत में दूध शाकाहारी भोजन का हिस्सा है. चूंकि अमेरिकी गायों को रक्त और मांस खिलाया जाता है, इसलिए भारत में ऐसी गायों के दूध का आयात प्रतिबंधित है. भारत चाहता है कि अमेरिकी निर्यातक प्रमाणित करें कि दूध उन गायों का लिया गया है जिन्हें केवल शाकाहारी चारा दिया जाता है. अमेरिका को यह समझने की जरूरत है कि यह मांग केवल अन्यायपूर्ण नहीं है. इसमें धार्मिक कारणों से भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन यह विचार अन्य भारतीय सरकारों ने भी रखा था.

भारत एक दशक से भी अधिक समय से यह दोहरा रहा है कि उसे उन मवेशियों के उत्पादों की आवश्यकता है जिन्हें शाकाहारी भोजन आजीवन जीवन खिलाया गया है. इस बीच, अमेरिकी डेयरी क्षेत्र ने इन आवश्यकताओं को ‘वैज्ञानिक रूप से अनुचित’ के रूप में भी वर्णित किया है.

भारत ने सार्वजनिक नैतिकता के आधार पर धार्मिक भावनाओं के संरक्षण के अपने तर्क का समर्थन करने के लिए टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) पर सामान्य समझौते के अनुच्छेद 20 (ए) का हवाला देते हुए अपनी स्थिति का बचाव किया है. यह अनुच्छेद प्रत्येक राष्ट्र को सार्वजनिक नैतिकता की अपनी परिभाषा देने और व्यापार और टैरिफ के संबंध में अपनी सांस्कृतिक संवेदनशीलता की रक्षा करने की अनुमति देता है.

अमेरिका ने डेयरी पशुओं के आहार का संकेत देते हुए उपभोक्ता लेबल का प्रस्ताव करके 2015 और 2018 में विवाद को सुलझाने का प्रयास किया था. हालांकि, यह भारत द्वारा स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया गया था. इसके बाद, नेशनल मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन और यूएस डेयरी एक्सपोर्ट काउंसिल ने लाभकारी विकासशील देशों से आयात किए जाने पर निर्दिष्ट लेखों के सामान्यीकृत सिस्टम से भारत को हटाने की मांग की.

भारत के रुख में कुछ वैज्ञानिक समर्थन हो सकता है. कुछ अध्ययनों से यह साबित होता है कि गायों को अपने भोजन में मांस योजक से बोवाइन स्पॉन्गिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (मैड काऊ बीमारी) जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के एक डेयरी विशेषज्ञ गुरु प्रसाद सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि बोवाइन स्पॉन्गिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (बीएसई), जिसे पागल गाय की बीमारी के रूप में भी जाना जाता है. यह एक घातक तंत्रिका रोग है. जिसे आमतौर पर पागल गाय की बीमारी के रूप में जाना जाता है, जो शांत जानवर में अपक्षयी परिवर्तन लाता है. उन्होंने कहा कि यह मनुष्यों को भी प्रभावित कर सकता है.’

प्रसाद ने कहा, ‘इस बात के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि दूषित मवेशियों के उत्पादों को मांसाहारी आहार-संबंधी गायों से संक्रामक एजेंटों द्वारा अन्य प्रजातियों और अंततः मनुष्यों तक फैलाया जाता है. 1990 के दशक में ब्रिटेन में एक महामारी में गायों में 185,000 से अधिक मामले सामने आए थे, जो मनुष्यों में क्रूट्सफेल्ड जेकब रोग नामक एक परिवर्तन के साथ फैल गया, जिसमें 170 से अधिक लोग मारे गए थे.’

क्यों डेयरी उत्पाद व्यापार सौदे में एक बड़ी बाधा है

अमेरिका डेयरी उत्पादों का निर्यातक है. वैश्विक निर्यात में इसका हिस्सा 4.9 प्रतिशत रहा, जबकि 2018 में आयात का हिस्सा लगभग 2.8 प्रतिशत था.

इस बीच, भारत में 2018 में वैश्विक डेयरी उत्पादों का निर्यात और आयात क्रमशः 0.3 प्रतिशत और 0.06 प्रतिशत रहा.

हालांकि, अमेरिका और भारत के बीच डेयरी उत्पादों के द्विपक्षीय व्यापार की बात आती है तो भारत सरप्लस है.

जबकि अमेरिका में भारतीय डेयरी का निर्यात लगभग सात गुना बढ़ गया है. 2015-16 में 2.1 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2018-19 में 14.9 मिलियन डॉलर हो गया, उसी अवधि में अमेरिका से आयात 0.07 मिलियन डॉलर से बढ़कर 0.22 मिलियन डॉलर हो गया.

कुल मिलकर भारत के लिए एक व्यापार अधिशेष में इस अवधी में छलांग लगायी. इसी अवधी में 1.94 मिलियन डॉलर से 14.41 मिलियन डॉलर का व्यापार हुआ.

डेयरी क्षेत्र पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की निर्भरता

एक और कारण यह है कि भारत अपने डेयरी क्षेत्र को अमेरिकी आयातों या उस मामले के लिए किसी अन्य देश के लिए खोलने में काफी संदेहवादी है, इस क्षेत्र में पहले से ही तनावग्रस्त भारतीय कृषि समुदायों की अति निर्भरता है.

भारत में अधिकांश किसान निर्वाह और सहकारी मॉडल के तहत पशुधन का पालन करते हैं और दो या तीन गायों/भैंसों के मालिक होते हैं और छोटे भूस्वामी होते हैं.

नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय के अनुसार 70वें दौर के सर्वेक्षण में 0.01 हेक्टेयर से कम भूमि वाले 23 प्रतिशत परिवारों ने पशुधन को अपनी आय का प्राथमिक स्रोत बताया था. भारत में प्रति पशु औसत दूध उत्पादन भी बहुत कम है, प्रति दिन 5.53 लीटर तक है. औद्योगिक देशों की तुलना में जहां यह प्रति दिन एक जानवर से लगभग 30 लीटर है.

इसके अलावा, डेयरी क्षेत्र ग्रामीण कार्यबल को रोजगार और आय प्रदान करने के साथ-साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी बहुत योगदान देता है.

देश की अर्थव्यवस्था में सकल मूल्य में पशुधन का हिस्सा भी 2014 में 4.4 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 4.9 प्रतिशत हो गया है.

एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, फ़सल की खेती साल में औसतन 90-120 दिनों के लिए रोज़गार पैदा करती है. लेकिन साथ ही साथ डेयरी ने पूरे साल में रोज़गार का एक वैकल्पिक तरीका प्रदान किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के यहां क्लिक करें)

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