नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध कला और संस्कृति संगठन संस्कार भारती का लक्ष्य रील्स और मीम्स के जरिए से भारत के युवाओं से जुड़ना है.
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त प्रतियोगिता के पोस्टर के अनुसार, संगठन सामाजिक समरसता (सामाजिक सद्भाव) के व्यापक विषय पर आधारित ‘अखिल भारतीय रील्स और मीम्स’ प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है, जिसमें प्रतिभागियों को संस्कार भारती को उसके ईमेल पते पर एक मिनट लंबी रील्स और मीम्स बनाकर 25 दिसंबर तक भेजना होता है.
चयनित मीम्स और रील्स फरवरी 2024 में बेंगलुरु में होने वाले संस्कार भारती के राष्ट्रीय सम्मेलन (अखिल भारतीय कला साधक संगम) में दिखाए जाएंगे.
पोस्टर उन संभावित विषयों को सूचीबद्ध करता है जिन पर रील्स और मीम्स बनाए जा सकते हैं, जैसे ‘सभी भारतीय मेरे भाई और बहन हैं’, ‘छुआछूत एक अभिशाप’ और ‘आरक्षण’, अन्य.
प्रतियोगिता के बारे में विस्तार से बताते हुए, संस्कार भारती के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य अशोक कुमार तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘इस अभ्यास के माध्यम से युवाओं से जुड़ने का विचार है’, और उन्होंने ‘कुंभ मेले’ को ‘सामाजिक सद्भाव का एक महान उदाहरण’ बताया.
उन्होंने कहा, “कुंभ सामाजिक समरसता का एक महान उदाहरण है क्योंकि यह जाति, पंथ और नस्ल के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव नहीं करता है. पूरा समाज एक साथ आता है. तो युवा इस (विषय) पर रील्स क्यों नहीं बना सकते? हमें बस लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है.”
संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनिंदा रील्स और मीम्स को पुरस्कार दिया जाएगा और इससे युवाओं को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर रील बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. साथ ही युवाओं को फालतू रील्स बनाने के बजाय इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके समाज के लिए अपना योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.’
रील्स और मीम्स के अलावा, संगठन ने समान विषयों पर शॉर्ट फिल्में भी मंगाई हैं, जिन्हें जमा करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर है.
संगठन के एक सदस्य ने कहा, इसका उद्देश्य समाज को भारतीय कला और संस्कृति के प्रति प्रेरित करना और इसे लोगों के बीच लोकप्रिय बनाना भी है.
संगठन के एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा, “हमें युवाओं के साथ उनकी अपनी भाषा में और उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले माध्यम का उपयोग करके बातचीत करने की आवश्यकता है. हम देखते हैं कि रील्स और मीम्स एक उपकरण बन गए हैं जिसके साथ युवा खुद को अभिव्यक्त करते हैं, और इसलिए हम उनके साथ बातचीत करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहते हैं.”
पदाधिकारी ने कहा, “इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया रील्स और मीम्स से भरे हुए हैं, खासकर युवाओं द्वारा. इन्हें लाखों व्यूज मिलते हैं लेकिन इनमें कोई सामाजिक रूप से प्रासंगिक संदेश नहीं होता है, इसलिए विचार यह है कि युवाओं की ऊर्जा को समाज के व्यापक हित में लगाया जाए,”
उन्होंने बताया, “उनके अपने माध्यम का उपयोग करके उनके साथ जुड़कर हम यह समझ पाएंगे कि वे क्या सोचते हैं और क्या चाहते हैं.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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