श्रीनगर : रविवार को जम्मू से सैकड़ों रोहिंग्या शर्णार्थी राहत केंद्रों को छोड़कर भाग गए, जहां वो लगभग एक दशक से रह रहे थे. उससे एक दिन पहले ही जम्मू कश्मीर प्रशासन ने, उनमें से 160 को हिरासत में ले लिया था.
शनिवार को, जम्मू कश्मीर प्रशासन ने शर्णार्थियों को पकड़कर उन्हें ‘होल्डिंग सेंटर्स’ में रख दिया, जो विदेशी अधिनियम के तहत, कथुआ ज़िले के हीरानगर उप-कारागार में स्थापित किए गए थे.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, बताया कि ये होल्डिंग सेंटर्स विदेशी अधिनियम की धारा 3(2)ई के तहत, गृह विभाग की ओर से शुक्रवार को जारी अधिसूचना के ज़रिए स्थापित किए गए.
अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन शर्णार्थियों के पास पासपोर्ट अधिनियम के हिसाब से वैध पासपोर्ट नहीं थे. क़ानून के हिसाब से सत्यापन प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए इन लोगों को होल्डिंग सेंटर्स भेज दिया गया’.
इसके नतीजे में, हिरासत में लिए जाने के डर से सैकड़ों की संख्या में शर्णार्थी राहत शिविर छोड़कर जाने लगे.
42 वर्षीय अब्दुल रोहीम ने, जो 2014 से ऐसे ही एक कैम्प में रह रहे थे, दिप्रिंट को बताया, ‘हमने शिविरों को छोड़ दिया और हाईवे पर पैदल चलने लगे. हमें नहीं पता कि कहां जाना है. हमारे पास कोई जगह नहीं है जाने के लिए. हम अपने मुल्क वापस नहीं जा सकते’.
रोहीम के अनुसार, शनिवार देर रात पुलिस के लोग कैंप में आ गए और शर्णार्थियों को पकड़ लिया, जिनमें उनका 26 साल का बेटा मोहम्मद यासीन और बहू रुक़ैया बेगम भी शामिल थे.
रोहीम ने कहा, ‘पुलिस ने हमसे ये कहा कि उन्हें बस सत्यापन जांच करनी है. लेकिन उसकी बजाय वो हमारे बच्चों को होल्डिंग सेंटर ले गए. आज सुबह फिर पुलिस वाले हमें ले जाने के लिए आए. हम घबरा गए और बस कैंपों से निकल गए’.
इस बीच जम्मू डिवीज़नल कमिश्नर संजीव वर्मा ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर शर्णार्थियों के जाने की वीडियोज़ देखी हैं और वो उनकी पुष्टि की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन संपर्क किए जाने पर, महानिरीक्षक (जम्मू रेंज) मुकेश सिंह ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
दिप्रिंट ने जे एंड के पुलिस महानिदेशक दिलबाग़ सिंह, गृह सचिव शालीन काबरा, ज़िला कमिश्नर सुषमा चौहान और एसएसपी जम्मू श्रीधर पाटिल से, कॉल्स और मैसेजे के ज़रिए टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया लेकिन ख़बर के छपने तक उनका जवाब नहीं मिला था.
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ज़्यादातर परिवारों के पुरुष सदस्यों को हिरासत में लिया गया है
एक दिल्ली स्थित एनजीओ, रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के सह-निदेशक अली जौहर ने कहा कि उन्हें जम्मू और सांबा ज़िलों के शिविरों से, शरणार्थियों की ख़बरें और कॉल्स मिली हैं, जिनमें उन्होंने अपने ‘परिवार के सदस्यों को बचाने’ की गुहार लगाई है.
जौहर के अनुसार, जो ख़ुद भी एक शरणार्थी हैं, जम्मू के 39 कैंपों में 6,523 शरणार्थी रहते हैं, जो उस पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं.
उन्होंने कहा कि हिरासत में लिए गए लोगों में कम से कम 45, सांबा की दो जगहों से थे, जबकि बाक़ी सब जम्मू से थे.
जौहर ने दिप्रिंट से कहा, ‘ज़्यादातर पुरुष सदस्यों को पकड़ा जा रहा है, लेकिन हमें ये ख़बरें भी मिली हैं कि पुलिस बच्चों, महिलाओं, और बुज़ुर्गों को भी ले गई है. हमने उन शरणार्थियों को एक कार्ड दिया हुआ है, जो हमें यूएनएचसीआर (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग) ने मुहैया कराए थे. कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं, जिनमें उनकी वैधता ख़त्म हो गई हो, लेकिन हममें से अधिकतर के पास कार्ड्स हैं’.
उन्होंने आगे कहा कि यूएनएचसीआर कार्ड की वैधता, चार साल से दो महीने तक अलग-अलग होती है और उसे नवीकृत किया जा सकता है. लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से, आजकल उसका नवीनीकरण कराना मुश्किल है.
जौहर ने कहा, ‘हम सभी क़ानूनों और प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं. मैं निश्चित नहीं हूं कि ऐसा किस कारण से हुआ है. लोग बेहद डरे हुए हैं. उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है.
लेकिन, सांबा ज़िला कमिश्नर रोहित खजूरिया ने कहा कि वो अपने ज़िले में ऐसे किसी घटनाक्रम से वाक़िफ नहीं हैं.
इस बीच, सोशल मीडिया रोहिंग्या शरणार्थियों की तस्वीरों और वीडियोज़ से भरा हुआ है, जिनमें उन्हें कैंपों को छोड़कर अपना सामान लिए हुए सड़कों पर चलते हुए देखा जा सकता है.
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