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Wednesday, 20 November, 2024
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जलवायु परिवर्तन सिर्फ फसलों और मौसम को ही नहीं बल्कि अब आपकी ‘नींद’ में भी डाल रहा खलल

स्टडी में पाया गया है कि कम-आय वाले देशों, बुजुर्गों, महिलाओं की नींद पुरुषों की तुलना में तापमान के बढ़ने से ज्यादा प्रभावित हुई है. वहीं जो लोग गर्म इलाकों में रहते हैं वहां नींद की कमी ज्यादा देखने को मिली है.

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नई दिल्ली: क्या तेजी से बढ़ती गर्मी आपकी नींद को भी प्रभावित कर रही है? साइंस जर्नल ‘वन अर्थ ‘ में हाल ही में प्रकाशित हुए एक अध्ययन के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण वैश्विक तौर पर मनुष्यों की नींद तेजी से प्रभावित हो रही है.

वन अर्थ में ‘राइजिंग टेम्प्रेचर इरोड ह्यूमन स्लीप ग्लोबली ‘ शीर्षक से छपे अध्ययन के मुताबिक तेजी से बढ़ता तापमान मनुष्यों में नींद की कमी की संभावना को बढ़ाता है. वहीं इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में बुजुर्ग, महिलाएं और कम-आय वाले देश शामिल हैं.

जलवायु परिवर्तन अब न केवल हीटवेव, बाढ़, सूखा, फसलों के खराब होने का कारण बन रहा है बल्कि अब इसकी वजह से दुनियाभर में लोगों की नींद भी तेजी से प्रभावित हो रही है.

हालिया अध्ययन के मुताबिक जो लोग ज्यादा गर्म जलवायु वाले इलाकों में रहते हैं वहां तापमान के हर एक डिग्री बढ़ने के साथ नींद प्रभावित होती है.

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले केल्टन माइनर, जो यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन से जुड़े हैं, उनका कहना है कि दुनिया के कई देशों में लोग ठीक से नींद नहीं ले पा रहे हैं.

द गार्डियन को उन्होंने बताया, ‘अगर 1 मिलियन की आबादी वाले शहर में रात में 25 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहता है तो उससे 46000 लोगों की नींद प्रभावित हो सकती है.’

2017 के भी एक अध्ययन में पाया गया था कि जलवायु परिवर्तन और रात के तापमान के कारण लोगों की नींद में खलल पड़ रहा है. इसमें पाया गया था कि गर्मी के मौसम में और कम आय वाले लोगों की नींद ज्यादा प्रभावित होती है. इस अध्ययन को बर्लिन स्थित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलेपमेंट की वरिष्ठ रिसर्च साइंटिस्ट निक ओबराडोविच ने किया था जो कि बढ़ते तापमान और नींद के बीच किस तरह का संबंध है, इस पर काम करने वाले पहले शोधार्थी थे.


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अवसाद, क्रोध की वजह बन रही है अपर्याप्त नींद

मानव शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद को जरूरी माना जाता है. अध्ययन में कहा गया है, ‘नींद की कमी प्रदर्शन को कमजोर, कम प्रोडक्टिविटी, इम्यून प्रक्रिया को प्रभावित, प्रतिकूल हृदय संबंधी परिणाम, अवसाद, क्रोध और आत्मघाती व्यवहार से जुड़ी हुई है.’ अपर्याप्त नींद कई प्रतिकूल शारीरिक और मानसिक परिणामों के लिए एक जोखिम का कारक है.

अध्ययन के अनुसार अनुकूलन के उपायों और ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को स्थिर किए बिना इस सदी के अंत तक हर व्यक्ति की औसतन दो हफ्ते की नींद प्रभावित हो सकती है और इसकी वजह बढ़ता तापमान होगा.

दुनिया भर में हो रही स्टडी के अनुसार वैश्विक तौर पर तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है. तापमान न केवल सिर्फ दिन में बढ़ रहा है बल्कि रात में भी तापमान सामान्य से ज्यादा दर्ज किया जा रहा है. इस अध्ययन में दुनियाभर के 68 देशों के 47 हजार लोगों के डेटा का दो साल तक विश्लेषण किया गया है जिसे स्लीप ट्रैकिंग रिस्टबैंड्स से जुटाया गया है.


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बुजुर्ग, महिलाएं ज्यादा हो रही हैं प्रभावित

स्टडी में पाया गया है कि कम-आय वाले देशों, बुजुर्गों, महिलाओं की नींद पुरुषों की तुलना में तापमान के बढ़ने से ज्यादा प्रभावित हुई है. वहीं जो लोग गर्म इलाकों में रहते हैं वहां नींद की कमी ज्यादा देखने को मिली है.

अध्ययन के अनुसार इस सदी के अंत यानी 2099 तक हर साल प्रतिव्यक्ति 50-58 घंटे की नींद प्रभावित हो सकती है. इसका कारण जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हो रही भौगोलिक असमानताएं है जो कि उत्सर्जन के कारण और भी बढ़ रही है.

जलवायु परिवर्तन से हाल के ऐतिहासिक रिकॉर्ड से परे रात के तापमान की अधिकता और मैग्निट्यूड में वृद्धि जारी रहने का अनुमान है.

अध्ययन में पाया गया कि जब भी रात का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा दर्ज किया गया उस दौरान देखा गया कि 14.08 मिनट की नींद प्रभावित हुई. वहीं बढ़ते तापमान के कारण 65 साल से ज्यादा के लोग इससे कम उम्र के लोगों से ज्यादा संवेदनशील हैं.

हाल ही में वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की स्टडी में बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन ने भारत और पाकिस्तान में हीटवेव की संभावना को 30 गुना बढ़ा दिया है.

माइनर के अनुसार, ‘अगर आप हीटवेव को देखें जो अभी भारत और पाकिस्तान को प्रभावित कर रहा है, तो करोड़ों लोग ऐसी स्थिति में हैं जिनकी नींद पर बुरा असर पड़ रहा है.’

इस साल मार्च और अप्रैल के महीने में दोनों ही देशों में अप्रत्याशित गर्मी दर्ज की गई. हीटवेव न केवल जानलेवा है बल्कि इसने 2022 में गेहूं के वैश्विक सप्लाई को भी प्रभावित किया है और बाढ़ और जंगल की आग का भी कारण बना है.


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