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Monday, 23 December, 2024
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सरकारी नियमों का सम्मान, समावेशी और देसी बनें: कू को क्यों लगता है कि भारत में वो ट्विटर को हरा सकता है

पिछले साल जब ट्विटर ने कंगना रनौत पर स्थायी प्रतिबंध लगाया, तो उन्होंने कू का रुख कर लिया. कू के सीईओ अप्रमेय राधाकृष्ण दिप्रिंट को बताते हैं कि वो ऐसी स्थायी पाबंदियों में क्यों विश्वास नहीं रखते.

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नई दिल्ली: अनुपालन और तटस्थता. इन्हीं के जरिए कू को उम्मीद है कि वो भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म के तौर पर ट्विटर से उसका ताज छीन लेगी.

शीर्ष तक पहुंचने के अपने सफर में देसी माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म कू, जिसे भारतीय एक्टर कंगना रनौत ने तब अपनाया, जब पिछले साल मई में उनके अकाउंट को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था, चीज़ों को उससे अलग ढंग से करना चाहता है, जैसे ट्विटर जैसी ग्लोबल टेक कंपनियां भारत में चलती हैं.

मसलन, इसके सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अप्रमेय राधाकृष्ण ने 17 अगस्त को एक खास इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया कि जहां ट्विटर सामग्री हटाने के आदेशों पर सरकार पर मुकदमा कर देता है, वहीं कू हटाने के ऐसे सभी आदेशों का पालन करता है.

लेकिन जिस चीज़ पर कू सबसे ज़्यादा गर्व करता है वो है इसकी समावेशिता यानी सबको साथ लेकर चलना. राधाकृष्ण का कहना है कि जहां भारत में ट्विटर का इस्तेमाल ज़्यादातर अंग्रेज़ी-भाषी लोग करते हैं, वहीं कू के यूज़र्स ऐसे लोग हैं जो हिंदी, कन्नड़, तमिल और तेलुगू जैसी भाषाओं में संचार करते हैं.

राधाकृष्ण ने मई में कहा था, ‘भारत में गैर-अंग्रेज़ी यूज़र बेस के मामले में हम ट्विटर से बड़े हैं’.

राधाकृष्ण कहते हैं कि हो सकता है कि लोग कू की पीली चिड़िया को ट्विटर की नीली चिड़िया से कम जानते हों लेकिन मार्च 2020 में इसके लॉन्च के बाद से इसे 4.5 करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका है, हर महीने इसके 1 करोड़ सक्रिय यूज़र्स हैं और इसके 7,000 से अधिक ‘मशहूर प्रोफाइल्स’ हैं- प्रसिद्ध अकाउंट्स को ट्विटर की ओर से दिए जाने वाले सत्यापन बैज का कू का अपना रूप.

जहां ट्विटर का सत्यापन चिन्ह एक गोल नीले बैज के अंदर एक सफेद टिक होता है, कू का ‘एमिनेंस आइकन’ कवच के आकार के एक पीले बैज के अंदर सफेद टिक होता है.

प्लेटफॉर्म्स स्थायी पाबंदियों से भी बचता है, जैसे कि ट्विटर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कंगना रनौत के खातों को निलंबित किया था.

राधाकृष्ण ने कहा कि कू में वो किसी के साथ ‘हमेशा के लिए’ एक अपराधी का सा बर्ताव करने से बचते हैं. उन्होंने कहा कि इसका मकसद एक ‘समावेशी माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफार्म’ बनना है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत में हर किसी की एक आवाज़ है. लेकिन दुर्भाग्यवश हर किसी की आवाज़, इंटरनेट पर नहीं है. बहुत से लोग जो व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं, उनकी आवाज़ें व्हाट्सएप ग्रुप्स में अटक जाती हैं, जो निजी होते हैं?’

ट्विटर जैसी ‘अंग्रेज़ी-केंद्रित’ माइक्रोब्लॉगिंग साइट्स पर ‘केवल 1 प्रतिशत भारत एक दूसरे से बात करता है’.

राधाकृष्ण ने कहा, ‘इसलिए हमारी कोशिश ये है कि भारत के 99 प्रतिशत लोग अपने आपको इंटरनेट पर व्यक्त कर सकें’.


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समान रूचि वालों के लिए मिलने की जगह

राधाकृष्ण कू को एक ऐसी जगह के तौर पर देखते हैं, जहां आप ऐसे लोगों के साथ मिल सकते हैं जिनकी समान रूचियां हैं और वो भी ‘भारतीय भाषाओं में’.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘एक कन्नड़-भाषी क्रिकेट प्रेमी का दूसरे कन्नड़-भाषी क्रिकेट प्रेमी से मिलना केवल कू पर ही हो सकता है. मसलन, विराट कोहली जैसे मशहूर क्रिकेटर का हिंदी में बोलना केवल कू पर ही होता है’.

लेकिन कोहली के ट्विटर और कू अकाउंट्स को स्क्रॉल करने से पता चलता है कि वो एक ही सामग्री को शेयर करते हैं- जो आमतौर पर चीज़ों का प्रचार और क्रिकेट पिच या ट्रेनिंग सेशन्स की तस्वीरें होती हैं और जो हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में होती है.

नियम-कानूनों के अनुपालन को लेकर ग्लोबल कंपनियों के दुनिया भर की सरकारों के साथ जो मतभेद हैं, उनके बारे में पूछे जाने पर राधाकृष्ण ने कहा, ‘हमारा मानना है कि किसी भी देश में ऑफलाइन दुनिया कैसे काम करती है, इसका सम्मान करना बहुत जरूरी है. (स्थानीय कानूनों का) पालन न करना ही ग्लोबल टेक के काम करने के तरीके में काफी टकराव पैदा कर रहा है’.

राधाकृष्ण ने कहा, ‘ग्लोबल टेक हर देश में एक सरल नैरेटिव के साथ जाती है. मूल रूप से ये कहती है कि देश आपका (लेकिन) नियम हमारे. हमने एक तरह से ये किया है कि इसे थोड़ा बदल दिया है और हम कहते हैं कि आपका देश, आपके नियम’.

क्यों? उन्होंने कहा, ‘देश के नागरिकों ने एक प्रतिनिधि, एक नेता को चुना है, जो उनकी ओर से फैसले लेगा. आखिरकार, बात वहीं आ जाती है कि स्थानीय सरकार किसी भी कंपनी के अनुपालन के लिए क्या नियम कायदे बनाती है. अब ये कहना कि एक निजी स्वामित्व की मुनाफे वाली संस्था सरकार से ज़्यादा, जिसे उन्होंने ही चुना है, भारत के नागरिकों की चिंता करती है, थोड़ा गलत होगा’.

राधाकृष्ण ने कहा कि एक निजी कंपनी केवल इसकी चिंता करती है कि अपने शेयरधारकों के लिए वैल्यू को कैसे बढ़ाया जाए, भले ही वो ‘बोलने की आज़ादी की परिभाषा या किसी भी दूसरी चीज़ से आगे चली जाए’.

उन्होंने कहा, ‘ग्लोबल टेक प्लेटफॉर्म्स के व्यवहार में असंगति के नतीजे में हम वास्तव में समझने लगे हैं कि ये सही है. एक ही तरह के व्यवहार के लिए कुछ लोगों पर पाबंदी लगा देना और कुछ दूसरों पर नहीं लगाना, जो इस पर निर्भर होता है कि प्लेटफॉर्म को क्या सही और क्या गलत लगता है, वैसे भी एक गलत व्यवहार ही है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए, अगर कोई ऐसी इकाई है जिसपर किसी देश के नागरिक भरोसा कर सकते हैं, तो वो उनकी अपनी सरकार है जो किसी निजी स्वामित्व की मुनाफे वाली संस्था से बेहतर है’.


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स्थायी पाबंदियां और तटस्थ रहना

राधाकृष्ण ने कहा कि अपनी सामग्री को हटाने के फैसलों को सरल बनाने के लिए कू स्थानीय कानूनों के साथ सहयोग करता है.

उन्होंने कहा, ‘हमारा विचार है कि जितना मुमकिन हो सके, उतना तटस्थ, गौर-आलोचनात्मक और दखल न देने वाला बनकर रहा जाए’.

जब कू को सरकार से किसी सामग्री को हटाने का आधिकारिक अनुरोध मिलता है, तो वो उसका पालन करता है लेकिन साथ ही अपने यूज़र को वो ‘सही कारण भी बताता है कि उसकी सामग्री क्यों हटाई गई है’. उन्होंने कहा कि इसके बाद यूज़र उपयुक्त प्राधिकारी के साथ इस मामले को उठा सकता है.

राधाकृष्ण ने कहा कि ‘अपने विवेक से निर्णय लेने की बजाय, कू दलअसल एक प्लेटफॉर्म की तरह बर्ताव कर रहा है’- बिल्कुल किसी मध्यस्थ प्लेटफॉर्म के मायनों में- यानी एक ऐसा प्लेटफॉर्म जो केवल किसी अन्य की ओर से सामग्री को होस्ट करता है.

कू स्थायी पाबंदी से भी बचता है. राधाकृष्ण ने कहा, ‘सामग्री पर सभी फैसले पोस्ट के स्तर पर लिए जाते हैं, हमारे यहां अकाउंट स्तर की प्रतिबंध नीति नहीं है’.

बेशक, इसमें कुछ अपवाद भी हैं- जैसे कि पोर्नोग्राफी और हेट स्पीच की पोस्ट बार-बार डालना.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम हर चीज़ से पोस्ट के स्तर पर निपटते हैं, जिसका मतलब है कि आपको अपने श्रोताओं और फॉलोअर्स से बात करने से कभी पूरी तरह ब्लॉक नहीं किया जाएगा. अगर आप अपनी किसी एक पोस्ट में गलती करते हैं, तो उसे आपके संज्ञान में लाया जाएगा. उस पोस्ट पर कार्रवाई की जाएगी. आपके साथ हमेशा के लिए किसी अपराधी जैसा बर्ताव करना एक ऐसी चीज़ है जिससे हम एक प्लेटफॉर्म के तौर पर बचेंगे’.

राधाकृष्ण ने कहा कि बड़ी परिकल्पना ये है कि कू को ‘भारत का डिफॉल्ट माइक्रोब्लॉगिंग एप बना दिया जाए’.

उन्होंने कहा, ‘हम उन पहले देशों में से होंगे जो इंटरनेट पर विचारों और राय के लिए डिजिटल रूप से स्वतंत्र हो जाएंगे, जो बहुत महत्वपूर्ण है. रूस-यूक्रेन युद्ध को देखिए. रूस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सी चीज़ों से काट दिया गया है’.

उन्होंने कहा कि उस तरह के बहिष्कार से बचने के लिए डिजिटल रूप से स्वतंत्र होना बहुत जरूरी है, ताकि किसी की राय से असहमत होने पर आपके नागरिकों के डिजिटल जीवन में व्यवधान नहीं होना चाहिए’.

राधाकृष्ण ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हम (कू) सही दिशा की ओर बढ़ रहे हैं. हम हर उस देश की, जो इस तरह का समाधान चाहता है, डिजिटल रूप से स्वतंत्र होने में सहायता करेंगे’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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