scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमदेशइजरायल में भारतीय पोस्ट-डॉक्टरेट्स ने कहा- देश वापसी पर संस्थानों के 'पक्षपातपूर्ण' रवैये के चलते नहीं मिलती नौकरी

इजरायल में भारतीय पोस्ट-डॉक्टरेट्स ने कहा- देश वापसी पर संस्थानों के ‘पक्षपातपूर्ण’ रवैये के चलते नहीं मिलती नौकरी

अनुसंधान संस्थान आईसीएमआर और आईसीएआर ने ऐसे किसी भी 'पक्षपातपूर्ण' रवैये से इनकार किया है. आईसीएमआर का कहना है कि दुनिया भर में इन पदों पर नौकरी पाना मुश्किल है. छात्रों को पब्लिशिंग, आरएंडडी जैसे वैकल्पिक करियर पर विचार करना चाहिए.

Text Size:

तेल अवीव: इजरायल के एक केंद्र में हाई-प्रोफाइल एग्रीटेक रिसर्च में शामिल भारतीय पोस्ट-डॉक्टरल फेलो शिकायत करते हैं कि देश वापस आने के बाद उनके पास नौकरी के पर्याप्त अवसर नहीं होंगे. कुछ का कहना है कि भारतीय संस्थानों में उनके खिलाफ ‘पूर्वाग्रह’ है.

इज़रायल लगभग 900 भारतीय छात्रों और रिसर्च स्कॉलर्स का घर है, जिनमें से अधिकांश डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टोरल कर रहे हैं. तेल अवीव में सबसे लोकप्रिय संस्थानों में से एक ‘एग्रीकल्चरल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एआरओ), वोलकेनी सेंटर’ से लगभग 60 भारतीय पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप कर रहे हैं. यह संस्थान इजरायल के कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है.

फेलोशिप तीन महीने से लेकर दो साल के बीच चलती है. लेकिन अधिकांश भारतीय या तो अपने कॉन्ट्रैक्ट को बढ़वाकर या फिर बाहरी फंडिंग की तलाश कर, इसे दो साल से आगे ले जाते हैं.

इनमें से कई छात्र भारत लौटने और विदेशों में पाए तकनीकी ज्ञान का देश में प्रसार करने के इच्छुक हैं लेकिन उनका मानना है कि यहां से लौटे छात्रों को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों में नौकरी नहीं मिल पाती है.

आईसीएमआर के डिवीजन ऑफ पॉलिसी एंड कम्युनिकेशन के तहत काम करने वाली एना डोगरा गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि विदेशों से आवेदन करने वाले शोधकर्ताओं के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ऐसा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है. आवेदकों की तुलना में शैक्षणिक पदों की संख्या हमेशा से कम रही है.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

वह आगे कहती हैं, ‘उसका समाधान यह है कि छात्रों को अकादमिक के अलावा अन्य करियर विकल्पों की तरफ जाना चाहिए या उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसे पब्लिशिंग, आर एंड डी इंडस्ट्री, कम्युनिकेशन.’

दिप्रिंट को एक ई-मेल में आईसीएआर ने स्पष्ट किया कि भर्तियां एक स्वतंत्र भर्ती निकाय द्वारा की जाती हैं.

ईमेल में लिखा था, ‘आईसीएआर के वैज्ञानिक पदों पर भर्ती एक स्वतंत्र भर्ती निकाय ‘एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट रिक्रूटमेंट बोर्ड’ द्वारा की जाती है. इसका एक मजबूत और बेहतर रिक्रूटिंग सिस्टम है. इसलिए आईसीएआर में वैज्ञानिकों की भर्ती में किसी तरह का पक्षपात रवैया या पूर्वाग्रह शामिल नहीं हो सकता है.’

दिप्रिंट ने सीएसआईआर में सीनियर वैज्ञानिक और मीडिया समन्वयक पूर्णिमा रूपल से भी संपर्क किया था. लेकिन उन्होंने इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


यह भी पढ़ें: मजदूरी से लेकर शैक्षणिक अराजकता तक और फिर CUET के जरिए JNU पहुंचने वाले बिहार के एक छात्र का सफर


‘विदेश में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं के लिए भर्ती नीति’

दिप्रिंट से बात करते हुए 36 वर्षीय एआरओ पोस्ट डॉक्टोरल फेलो सुदीप तिवारी ने कहा कि भारतीय संस्थानों में उनके जैसे शोधकर्ताओं की भर्ती के लिए एक मजबूत प्रणाली होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘भारतीय चिकित्सा और अनुसंधान संस्थानों को अपने 20 से 25 फीसदी पदों पर देश से बाहर रह रहे छात्रों की नियुक्ति करनी चाहिए. लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं. बीएचयू (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) जैसे कुछ संस्थानों ने 25 फीसदी विदेश से पोस्ट-डॉक्टरल फेलो को अपने यहां जगह दी है. लेकिन पिछले दो सालों से यहां भी कोई नियुक्ति नहीं हो पाई है.

सीएसआईआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (सीआईएमएपी) के साथ संयुक्त रूप से एपीएस यूनिवर्सिटी, मध्य प्रदेश से पर्यावरण जीव विज्ञान में पीएचडी पूरा करने के बाद तिवारी मार्च 2019 में एआरओ फेलोशिप में शामिल हुए थे.

सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई), सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) और जैव संसाधन और सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी) जैसे भारतीय संस्थानों के लिए कई असफल आवेदन प्रयासों के बाद उन्होंने एआरओ में अपना अनुबंध बढ़ा लिया.

वह अब नेब्रास्का यूनिवर्सिटी में नौकरी के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें: शिकायत निपटान बोर्ड, 500 cr का जुर्माना, नए पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन ड्राफ्ट बिल की प्रमुख खासियतें


‘कम अनुभव वालों को मिल रही वरीयता’

ओडिशा की 34 साल की अनिमेष रथ एक एआरओ पोस्ट डॉक्टोरल फेलो हैं. वह टू-स्पॉट स्पाइडर माइट -दुनिया भर में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाला एक आम कीट पर शोध कर रही हैं.

उन्होंने दावा किया कि उनके शोध से राजस्थान और कर्नाटक के किसानों या केरल के बागवानों को मदद मिल सकती है, जहां फसल में घुन लगना एक समस्या है. लेकिन देश में पर्याप्त नौकरियां ही नहीं हैं जहां वह अपने इस तकनीकी ज्ञान से फायदा पहुंचा सकें.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने अपने पूर्व सहपाठियों के नाम देखे हैं जिन्होंने सिर्फ पीएचडी की हुई है, उन्हें शॉर्टलिस्ट किया जा रहा है. मेरे जैसे फैलो की तुलना में उनके पास कम अनुभव है, फिर भी उन्हें वरीयता मिल रही है’. उन्होंने बताया कि वह विभिन्न भारतीय शोध संस्थानों में पांच से छह बार आवेदन कर चुकी हैं.

इस साल मई में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इजरायल का दौरा किया था. उन्होंने एआरओ में इंडियन फेेलो से भी मुलाकात की थी. शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने नौकरियों की कमी के बारे में मंत्री को अपनी चिंताओं के बारे में बताया था और उन्हें शीघ्र समाधान का आश्वासन भी दिया गया था.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(रिपोर्टर इजरायल दूतावास की तरफ से आयोजित एक मीडिया प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: टालमटोल छोड़ें, भुगतान करें- क्या है क्लाइमेट फाइनेंस, क्यों अमीर देशों को जल्द जरूरी कदम उठाने चाहिए


 

share & View comments