नई दिल्ली: दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए तुगलकाबाद स्थित दलितों के पूजनीय संत रविदास के मंदिर को ढहा दिया. अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले डीडीए की इस कार्रवाई को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है.
इस मामले को लेकर दिल्ली से पंजाब तक प्रदर्शन हो रहे हैं. पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी से मामले में दख्लअंदाज़ी की मांग की है. दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी (आप) से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक में इसे लेकर भूचाल मचा हुआ है. इसकी वजह ये है कि दिल्ली में दलित खासी संख्या में हैं. फर्स्टपोस्ट के एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में दलितों की आबादी कुल आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है.
मामले पर ट्वीट कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने मंदिर ढहवाने में केन्द्र और दिल्ली सरकार की मिलीभगत का आरोप लगाया. मायावती ने लिखा, ‘हमारे संतो के प्रति आज भी इनकी हीन और जातिवादी मानसिकता साफ झलकती है.’
दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र में बना सन्त रविदास मन्दिर केन्द्र व दिल्ली सरकार की मिली-भगत से गिरवाये जाने का बी.एस.पी. ने सख्त विरोध किया। इससे इनकी आज भी हमारे सन्तों के प्रति हीन व जातिवादी मानसिकता साफ झलकती है।
— Mayawati (@Mayawati) August 14, 2019
क्या है पूरा मामला
विवाद के केंद्र में नई दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित 15वीं सदी के महान संत रविदास का एक मंदिर है जिसे ढहा दिया गया. ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर जहां स्थिति था वहां संत रविदास तीन दिनों तक ठहरे थे. कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक तुगलकाबाद में मौजूद ये परिसर 12,350 स्क्वॉयर यार्ड का है जिसमें 20 कमरे हैं और एक हॉल भी है.
डीडीए का दावा रहा है कि मंदिर अवैध तरीके से कब्ज़ा की गई ज़मीन पर बना था. मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम आर शाह ने नौ अगस्त को सबसे ताज़ा सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के मुखिया और दिल्ली सरकार के सचिव को ये सुनिश्चित कराने का आदेश दिया था कि 13 अगस्त से पहले मंदिर गिरा दिया जाए. 10 अगस्त को मंदिर गिरा दिया गया.
संत रविदास जयंति समिति समारोह के ज़मीन पर दावे को सबसे पहले ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त 2018 को ख़ारिज किया जिसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया. समिति को 20 नवंबर 2018 को हाई कोर्ट से भी इसे निराशा हाथ लगी. इस साल आठ अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को पलटने से इंकार करते हुए मंदिर गिराए जाने का आदेश दिया जिस पर एपेक्स कोर्ट अंत तक कायम रहा.
ट्रायल के दौरान क्या-क्या हुआ
ज़मीन पर अपने दावे को लेकर संत रविदास समिति ने दो तर्क दिए. समिति ने अपने पक्ष में कहा था कि श्री रूपा नंद उनके पूर्वज थे जिनके पास ये ज़मीन 160 साल पहले से थी. उन्होंने यहां एक कुंआ भी खोदा था जिसे ‘चमार वाला जोहार’ के नाम से भी जाना जाता है. दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के संदर्भ में समिति ने कहा कि ये ज़मीन ‘शमलत’ है यानी ग्राम सभा की है.
समिति का पक्ष ये भी था कि ज़मीन पर इनके मालिकाना हक की बात 1959 से रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी है. हाई कोर्ट में एडवर्स पज़ेशन का भी ज़िक्र हुआ. एडवर्स पज़ेशन के तहत अगर कोई किसी और की ज़मीन पर एक तय समय तक बिना बाधा के रहता है तो ज़मीन उसकी हो जाती है. समिति का दावा था कि इन नियम के तहत भी उसके पास ये ज़मीन 30 साल से अधिक से है.
वहीं, डीडीए का दावा था कि दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के बाद ज़मीन केंद्र की हो गई. डीडीए ने हाई कोर्ट को ये भी बताया कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में समिति के मालिकाना हक़ का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है. डीडीए ने ये दलील भी दी कि विवादित ज़मीन ग्रीन लैंड है इस वजह से वहां किसी तरह के निर्माण को नहीं हो सकता. पांच सितंबर 1992 को डीडीए ने गैरकानूनी निर्माण को गिराने की असफल कोशिश भी की थी.
सभी पहलुओं पर ग़ौर करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि समिति ने ख़ुद के या रूपा नंद के पास मालिकाना हक़ होने का कोई दस्तावेज पेश नहीं किया. हाई कोर्ट ने कहा, ‘एडवर्स पज़ेशन के तहत ज़मीन पर अधिकार को एक तय समय तक बिना किसी रुकावट के साबित करना होता है जिसके लिए पुख़्ता दस्तावेज भी पेश करने होते हैं.’ हाई कोर्ट के मुताबिक ज़मीन पर अपना दावा साबित करने में समिति असफल रही है और ज़मीन अधिग्रहन कानून के तहत ज़मीन केंद्र की है जिसपर डीडीए का हक़ है.
सफाई और संभावित हल
दिल्ली से पंजाब तक गरमाई राजनीति पर डीडीए की सफाई आई. इसमें कहा गया है, ‘गुरु रविदास जयंती समारोह समिति ने जंगल की ज़मीन पर निर्माण किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जगह खाली नहीं हुई. इसलिए नौ अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से डीडीए ने ढांचा गिरा दिया.’ सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर हो रही राजनीति पर गंभीर टिप्पणी की है और ऐसे किए जाने से मना किया है.
मंदिर गिराए जाने के बाद बीएसपी की मांग है कि दोनों सरकारें बीच का रास्ता निकाल कर सरकारी ख़र्चे से मंदिर का निर्माण करवाएं. ऐसे आरोपों के बीच आप ने उल्टे केंद्र सरकार से सावल किया है कि क्या केंद्र के पास संत रविदास मंदिर के लिए थोड़ी सी भी ज़मीन नहीं है? भाजपा के प्रतिनिधि भी मामले को लेकर शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी से मिले थे और आश्वासन हासिल किया था.
फिलहाल इस बात का डर है कि चुनावी मौसम से पहले देश की राजधानी और इसके आप-पास राजनीति करने वाली पार्टियों को एक और ‘मंदिर मुद्दा’ मिल गया है.