नई दिल्ली: अपनी नीति में बदलाव करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने ‘अहिंदू’ शब्द को त्यागने फैसला किया है, जिसका प्रयोग वरिष्ठ पदाधिकारी कभी-कभी अपने भाषणों और साहित्य में भारत के ईसाइयों तथा मुसलमानों का उल्लेख करने के लिए करते हैं.
आरएसएस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सिलसिलेवार अंदरूनी बैठकों में आरएसएस सरसंघचालक (प्रमुख) मोहन भागवत ने, पदाधिकारियों और कार्यकर्त्ताओं से इस शब्द से बचने के लिए कहा है चूंकि इससे कुछ समुदाय अपने आपको संघ की हिंदूवाद की धारणाओं से अलग महसूस कर सकते हैं, जिससे देश को ज़्यादा नुक़सान हो सकता है.
विकल्प के तौर पर भागवत ने कहा है कि सभी भारतीयों को, हिंदू का चार में से एक प्रकार कहा जा सकता है- स्वाभिमानी हिंदू, अनिच्छुक हिंदू, अमित्र हिंदू और अज्ञानी हिंदू.
दिप्रिंट से बात करते हुए संघ परिवार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि आरएसएस प्रमुख ने हर भारतीय को हमेशा एक हिंदू माना है, लेकिन धार्मिक अर्थ में नहीं.
उन्होंने कहा, ‘हिंदू होने का मतलब कोई धार्मिक पहचान नहीं है. इसका संबंध जीने के तरीक़े से है. संघ में हमारा मानना है कि हर भारतीय, संस्कृति के हिसाब से हमेशा हिंदू रहा है, लेकिन बाद में जैसे जैसे इस्लामी और पश्चिमी आक्रमण हुए हम में कुछ ने अपना धर्म बदलकर, इस्लाम या ईसाइयत को अपना लिया. उपासना का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन हर भारतीय के जीने का तरीक़ा हिंदू है और यही कारण है कि राष्ट्रीय पहचान के हिसाब से सभी भारतीय हिंदू हैं.’
आरएसएस कार्यकारी समिति के एक और सदस्य के अनुसार, संगठन अपनी सांप्रदायिक प्रतिष्ठा को दूर करने का उत्सुक था और ये संकेत देना चाहता था वो सभी भारतीयों का समावेशी है.
आरएसएस कार्यकारी समिति सदस्य ने कहा, ‘कुछ ऐसी विघटनकारी शक्तियां हैं जो हमें सांप्रदायिक बताकर संघ को बदनाम करना चाहती हैं. लेकिन हम अपने मुसलमान या ईसाई भाइयों को, ज़्यादा अलग-थलग और विमुख महसूस नहीं होने दे सकते. इसलिए भागवत ने कहा है कि हमें पहली चीज़ ये करनी है कि किसी भी भारतीय को ‘अहिंदू’ कहना बंद करना है. (कुछ समुदायों को) अहिंदू कहने का मतलब है एक बहुत बड़ी आबादी को किसी दूसरे देश भेज देना. सभी भारतीय हिंदू हैं’.
बीजेपी की वैचारिक स्रोत आरएसएस को विपक्षी दलों तथा अन्य आलोचकों की ओर से नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ नीतियों और फैसलों को प्रभावित करने लिए, तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है, जैसे कश्मीर में धारा 370 को रद्द किया जाना, और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की ओर स्पष्ट क़दम बढ़ाना.
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चार प्रकार के हिंदू
संघ नेताओं के अनुसार मोहन भागवत ने कहा है कि सभी भारतीयों को हिंदुओं के चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है.
दूसरे आरएसएस पदाधिकारी ने कहा कि पहला प्रकार ‘स्वाभिमानी हिंदू’ का है- जो धर्म का पालन करता है और अपने आपको गहराई से उसके साथ जोड़ता है.
दूसरा प्रकार है ‘अनिच्छुक हिंदू’ जो धर्म का पालन नहीं करता, या उसे गले नहीं लगाता, लेकिन उसे पूरी तरह ख़ारिज भी नहीं करता. तीसरा ग्रुप ‘अमित्र हिंदू’ वो है जो पैदा तो धर्म में होता है, लेकिन दूसरे हिंदुओं के खिलाफ काम करता है, और ‘विभाजन’ पैदा करने की कोशिश करता है. आरएसएस पदाधिकारी के अनुसार अंतिम प्रकार है ‘अज्ञानी हिंदू’, जिसने कोई दूसरा धर्म अपना लिया है, लेकिन देश और संस्कृति के हिसाब से अभी भी एक हिंदू है.
दूसरे पदाधिकारी ने विस्तार से समझाया कि ये वर्गीकरण देश में और अधिक एकता लाने के लिए किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम अपने भाई-बहनों से हिंदू के तौर पर अपनी पहचान स्वीकार नहीं करा सकते- धर्म नहीं बल्कि संस्कृति से- तो हम विघटनकारी विदेशी ताक़तों के टुकड़े-टुकड़े नहीं कर पाएंगे. इतने सारे प्रतिक्रियावादी समूह हैं जो भारतीयों के बीच सांप्रदायिक विभाजन पैदा करके, सिर्फ भारत की प्रगति को बाधित करना चाहते हैं’.
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