नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक भारतीय रेलवे चीन की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी सीआरआरसी कॉर्पोरेशन, जो सेमी-हाई स्पीड स्वदेशी ट्रेन 18 परियोजना के लिए निविदा में अकेली विदेशी दावेदार है, की बोली पर विचार नहीं कर सकती है.
सीआरआरसी वंदे भारत एक्सप्रेस कही जाने वाली 44 ट्रेन के निर्माण के लिए लगभग 1,500 करोड़ रुपये की वैश्विक निविदा के लिए बोली लगाने वाली एकमात्र विदेशी कंपनी बनकर उभरी है. इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) चेन्नई, जो लोकोमोटिव बनाती है, की तरफ से पिछले साल दिसंबर में मंगाई गई निविदा के लिए बोली पिछले सप्ताह ही खुली थी.
अन्य दावेदारों में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स, हैदराबाद स्थित मेधा समूह, इलेक्ट्रोवेव्स इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट लिमिटेड और मुंबई स्थित पॉवरनेटिक्स इक्विप्मेंट्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं.
एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा, ‘सरकार की मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल नीतियों के मद्देनजर सीआरआरसी की बोली पर विचार नहीं किया जा सकता या फिर इसे खारिज भी किया जा सकता है.’ अधिकारी ने कहा, ‘पारस्परिकता के सिद्धांत के तहत, भारत विदेशी कंपनियों के निवेश पर प्रतिबंध लगा सकता है, अगर भारतीय कंपनियों को वहां अनुबंध के लिए आवेदन में पाबंदी का सामना करना पड़ता है तो.’
उन्होंने कहा, ‘जाहिर है, जब भारत सरकार ने कहा है वह आत्मनिर्भर अभियान को प्रोत्साहित करेगी तो रेलवे भी इसका पालन करेगी.’
ट्रेन 18 देश की पहली इंजन-रहित ट्रेन है और इसे इंटीग्रल कोच फैक्ट्री द्वारा तैयार किया गया है. एक समय, ट्रायल रन के दौरान 180 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार पकड़ने वाली इस गाड़ी को भारत की सबसे तेज गति की ट्रेन की संज्ञा दी गई. पहली ट्रेन 18 को फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दिखाई थी.
हालांकि, स्वामित्व को लेकर मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागों के बीच छिड़ी तकरार के कारण
यह महत्वाकांक्षी परियोजना महीनों से विवादों में घिरी हुई है.
आत्मनिर्भरता को बढ़ावा
चीन के साथ सीमा तनाव के बाद, भारत की तरफ से भारतीय परियोजनाओं में चीनी निवेश को प्रतिबंधित करने और इसकी जगह घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देने के विभिन्न उपायों पर विचार किया जा रहा है.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये रेल मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता, डी.जे. नारायण से संपर्क किया लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
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इस हफ्ते शुरू में रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वी.के. यादव ने कहा था कि रेलवे ‘मेक इन इंडिया’ के तहत निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करेगा.
उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘जहां तक चीनी कंपनियों का सवाल है, मेक इन इंडिया नीति के तहत डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) के दिशानिर्देश लागू हैं और हम उनका पालन करेंगे.’
डीपीआईआईटी के तहत ‘मेक इन इंडिया’ नीति का एक खंड दर्शाता है: ‘यदि कोई नोडल मंत्रालय इस बात से संतुष्ट है कि किसी वस्तु के भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को किसी दूसरे देश की सरकार की तरफ से खरीद में भाग लेने/या प्रतिस्पर्द्धी बनने की अनुमति नहीं दी जा रही है तो वह, अगर उपयुक्त समझता है, नोडल मंत्रालय से संबंधित उस वस्तु/ या अन्य वस्तुओं की खरीद की पात्रता से उस देश के बोलीदाताओं को प्रतिबंधित या बाहर कर सकता है.’
ट्रेन 18 परियोजना, जिसमें 44 ट्रेन सेट शामिल हैं, के लिए सीआरआरसी सहित छह कंपनियों ने पिछले सप्ताह अपनी बोलियां भेजी थीं.
पूर्व में, अल्स्टॉम, बॉम्बार्डियर, टैल्गो, मित्सुबिशी व सीमेंस सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कोच निर्माण कंपनियों ने ट्रेन 18 परियोजना के लिए बोली प्रक्रिया में हिस्सा लिया था. हालांकि, इनमें से किसी ने भी नवीनतम बोली में हिस्सा नहीं लिया, जिसने सीआरआरसी को बोली प्रक्रिया में शामिल एकमात्र विदेशी कंपनी बना दिया.
चीनी कंपनी का विरोध
चीनी कंपनी की बोली को लेकर विरोध पहले ही शुरू हो गया था- व्यापारियों के शीर्ष संगठन कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर सीआरआरसी की भागीदारी पर विरोध जताया था.
इसमें कहा गया था, ‘हम रेलवे, राजमार्गों और बुनियादी ढांचे से संबंधित अन्य परियोजनाओं में चीनी कंपनियों की भागीदारी पर रोक के लिए केंद्र सरकार और आपके मंत्रालय की तरफ से उठाए गए विभिन्न कदमों की सराहना करते हैं.’
सीएआईटी ने पत्र में लिखा, ‘हमारे भारतीय सामान-हमारा अभिमान मिशन के तहत 10 जून 2020 को शुरू हुए ‘चीनियों के बहिष्कार अभियान’ को आगे बढ़ाते हुए हम आपसे अनुरोध करते हैं कि कृपया चीन सरकार के स्वामित्व वाली सीआरआरसी कॉरपोरेशन को भारतीय रेलवे की सेमी हाई-स्पीड स्वदेशी ट्रेन 18 के लिए वैश्विक निविदाओं में भाग लेने की अनुमति न दें. 44 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की यह परियोजना 1500 करोड़ रुपये से अधिक की है.’
पिछले महीने, लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच तनाव के दौरान भारतीय रेलवे ने 2016 में एक चीनी कंपनी को दिए गए 471 करोड़ रुपये के सिग्नलिंग अनुबंध को रद्द कर दिया था.
रेलवे, कथित तौर पर, कोविड-19 निगरानी के लिए इस्तेमाल होने वाले थर्मल कैमरों की एक निविदा को भी रद्द कर चुका है, जिसे लेकर आरोप लग रहे थे कि निविदा विशेष रूप से एक चीनी कंपनी के पक्ष में थी.
ट्रेन 18 को लेकर विवाद
पूर्व में विदेशी निर्माताओं से पूरी ट्रेन सेट आयात करने का राजनीतिक दलों, वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य हितधारकों की तरफ से खासा विरोध किया गया था, जिन्होंने घर में स्वदेशी प्रौद्योगिकी होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर प्रयास के लिए रेलवे की आलोचना की थी.
मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागों के बीच अधिकारों की लड़ाई के परिणामस्वरूप पक्षपात, सुरक्षा से समझौता और अन्य खामियों के आरोप भी सामने आए हैं, नतीजा टीम से शीर्ष अधिकारियों के स्थानांतरण के तौर पर सामने आया.
नतीजतन, इस परियोजना में काफी देरी भी हुई, सरकार की तरफ से तीसरी निविदा दिसंबर 2019 में मंगाई गई, जिसमें लागत में कमी के लिए समान अवसर के उद्देश्य से कुछ बदलाव किए गए हैं.
यहां तक कि एक अधिकारी ने 13 जनवरी को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष यादव को संबोधित एक पत्र में बोली से जुड़े दस्तावेज में कथित अनियमितताओं का हवाला देते हुए ‘साजिश’ तक का आरोप लगा दिया. उसमें कहा गया था, ‘यह आश्चर्यजनक है कि अधिकारियों का एक छोटा-सा समूह कैसे पूरे देश को ताक पर रख सकता है.’
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