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Wednesday, 9 October, 2024
होमदेशराहुल गांधी को अपना वारिस बनाने वाली देहरादून की बुजुर्ग ने कहा—उनकी यात्रा ‘भगवान के आने जैसी’ होगी

राहुल गांधी को अपना वारिस बनाने वाली देहरादून की बुजुर्ग ने कहा—उनकी यात्रा ‘भगवान के आने जैसी’ होगी

79 वर्षीय पुष्पा मुंजियाल ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की ‘ईमानदारी’ से प्रभावित होकर 50 लाख रुपये से अधिक का सोना और पैसा उनके नाम कर दिया है. वह बताती हैं कि नेहरू ने उनके पिता को विभाजन के बाद भारत में ही रहने को राजी किया था.

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देहरादून: अपनी वसीयत कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम करके कुछ दिन पहले पूरे देश को चौंका देने वाली देहरादून की सत्तर वर्षीय पुष्पा मुंजियाल को अभी तक कांग्रेस नेता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. हालांकि, उनकी राय है कि उनका उपहार अभी तक स्वीकार न किए जाने के पीछे कोई दुर्भावना नहीं होगी.

मुंजियाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे पता है कि वह एक बड़े नेता हैं और उनका व्यस्त होना स्वाभाविक है. मुझे ऐसी कोई उम्मीद नहीं है कि वह अपना सारा काम छोड़कर यहां चले आएंगे. मैंने राहुल गांधी की ईमानदारी और उनकी ईमानदार राजनीति पर भरोसे के कारण ही अपनी वसीयत उनके नाम की हैं. अगर राहुल कभी मुझसे मिलते हैं तो मैं केवल उन्हें लंबी उम्र और भारत का नेतृत्व करने का आशीर्वाद दूंगी.’

यद्यपि आज पूर्व शिक्षिका को गांधी से मिलने की कोई उम्मीद नहीं है, उनका परिवार कांग्रेस नेता के साथ उनका एक पुराना रिश्ता साझा करता है. दरअसल, जैसा 79 वर्षीय बुजुर्ग बताती हैं, वो राहुल गांधी गांधी के परदादा और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ही थे, जिन्होंने मुंजियाल के पिता को 1947 में देश के बंटवारे के बाद भारत में ही रहने के लिए राजी किया था.

मुंजियाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम विभाजन पूर्व दंगों के दौरान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के क्वेटा से भारत आए थे. मेरे पिता मेघराज मुंजियाल पाकिस्तान में एक स्वतंत्रता सेनानी थे, लेकिन विभाजन के दौरान उन्हें जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ भागना पड़ा. हम करीब 100 अन्य हिंदुओं के साथ यहां आए थे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दिल्ली में मेरे पिता जवाहरलाल नेहरू से मिले और उन्हें बताया कि कैसे हमने क्वेटा में सब कुछ गंवा दिया और हमें अपना घर तक छोड़ना पड़ा. मेरे पिता दंगों के बाद क्वेटा लौटना चाहते थे, क्योंकि वहां हमारी काफी संपत्ति थी. उन्होंने नेहरू से कहा कि भारत में हमारे पास कुछ भी नहीं है और हम बलूचिस्तान लौट जाएंगे. मेरे परिवार ने वहां अपने घर के पास ही एक विशाल लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया था. लेकिन नेहरू ने कहा कि वापस मत जाओ, क्योंकि वहां आपकी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं रहेंगी. इसके बाद, मेरे पिता ने भारत में ही बस जाने का मन बना लिया और अपनी छह बेटियों और एक बेटे के साथ देहरादून आ गए.’

हालांकि, मुंजियाल कभी खुद नेहरू-गांधी परिवार के किसी भी सदस्य से नहीं मिली हैं.

पिछले दो दशकों से अधिक समय से मुंजियाल की दुनिया देहरादून स्थित एक वृद्धाश्रम प्रेम धाम के एक छोटे से कमरे तक ही सीमित है, जहां वह 1999 से रह रही हैं. उम्र के इस पड़ाव पर आकर उनकी आंखों ने भी उनका साथ देना छोड़ दिया है.
एक सेवानिवृत्त स्कूल टीचर मुंजियाल ने कभी शादी नहीं की, और उनके परिवार के पास देहरादून में कभी कोई घर भी नहीं था—एक समृद्ध चाय व्यवसाय के बावजूद उनके पास किराये के घर में रहने का ही विकल्प था.

मुंजियाल बताती है, ‘मेरे बड़े भाई गिरधारीलाल मुंजियाल, जिनकी कैंसर से मृत्यु हुई, को हमेशा यही लगता था कि हमारा घर क्यों होना चाहिए, जब यह हमारे पास रहने वाला नहीं है. खासकर विभाजन के दंगों के दौरान क्वेटा में अपनी संपत्ति गंवा देने की वजह से उन्हें ऐसा लगता था.’

हालांकि, पिछले एक दशक से एकाकी और कठिन जीवन बिता रही मुंजियाल यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है कि वह जो कुछ भी छोड़कर जाएं, वह कांग्रेस नेता को मिले. ठीक उसी तरह जैसे माता-पिता या दादा-दादी अपने वारिस के लिए योजनाएं बनाते हैं.

मुंजियाल ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों के दौरान विभिन्न बैंकों में अपने सभी 16 एफडी एकाउंट, जिसमें उनकी वसीयत के मुताबिक कुल जमा 17,000 रुपये से अधिक है, में राहुल गांधी को नॉमिनी बनाया है. गांधी को वसीयत के तहत उनका 10 तोला (115 ग्राम से अधिक) सोना भी मिलेगा. इसके अलावा, मुंजियाल ने एक पूर्व वसीयत को रद्द कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपनी 25 लाख की संपत्ति दून अस्पताल प्रबंधन को दी थी और अब इसके बजाये उसे राहुल गांधी के नाम पर कर दिया है.

उन्होंने कहा कि उनके पास कुल 50 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति है, जो मुंजियाल की ‘नौकरी के दौरान की गई बचत और रिटायरमेंट के बाद पेंशन के जरिये जुटाई है.’ वसीयत, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है, में यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर भविष्य में वह किसी अन्य चल या अचल संपत्ति की मालिक पाई जाती है, जिसका उल्लेख इस वसीयत में नहीं है, तो वह भी राहुल गांधी को ही मिलेगी.


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‘उनके विचारों से प्रभावित’

राहुल गांधी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का कारण बताते हुए मुंजियाल ने वसीयत में उल्लेख किया कि वह गांधी के विचारों और सिद्धांतों से बेहद प्रभावित हैं और उम्मीद करती हैं कि ‘राहुल इस पैसे का उपयोग गरीबों और असहाय लोगों के कल्याण के लिए करेंगे. हालांकि अगर वह उनकी इस इच्छा का पालन नहीं करते तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.’

मुंजियाल ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान भी यही बात कही कि उन्होंने राहुल गांधी की ‘ईमानदारी और सच्चाई’, और उनकी ‘ईमानदार राजनीति’ से प्रभावित होकर ही अपनी वसीयत उनके नाम की है, और उनके परिवार ने राष्ट्र को ‘हमेशा कुछ दिया’ ही है.

हालांकि, उनका कहना है कि उन्हें यह उम्मीद नहीं है कि राहुल उनसे मिलने आएंगे या फिर उनके उपहार को स्वीकार ही करेंगे. उनका कहना है, ‘राहुल गांधी मेरे लिए समय क्यों निकालें? फिर भी अगर भाग्य ने साथ दिया और वह यहां आ जाए तो मेरे लिए तो यह भगवान के आने जैसा होगा. मेरी वसीयत का कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है.’

पिछले महीने ही वसीयत दर्ज कराने वाली मुंजियाल ने हालांकि स्पष्ट किया कि उन्होंने न तो राहुल गांधी से और न ही स्थानीय कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह की तरफ से कोई जवाब मिला है. राहुल गांधी को सौंपने के लिए कागजात प्रीतम सिंह को ही सौंपे गए थे.

इस बीच, बुधवार को दिप्रिंट से बातचीत में विधायक और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रमुख प्रीतम सिंह ने कहा कि वह मुंजियाल की वसीयत राहुल गांधी को उनके 10 जनपथ स्थित आवास पर दे चुके हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

प्रीतम सिंह ने कहा, ‘राहुल गांधी अभी शायद संगठनात्मक गतिविधियों में व्यस्त हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें समय मिलेगा, हमें जवाब देंगे और हम मुंजियाल को इसके बारे में बता देंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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