नई दिल्ली: राहुल बजाज भारतीय उद्योग की एक निडर और मुखर आवाज थे, उनका स्वदेश निर्मित चेतक स्कूटर 1970 के दशक में हर घर, खासकर मध्यम वर्ग के लिए अपरिहार्य जरूरत बन गया था. राहुल बजाज जरूरत पड़ने पर अपने मन की बात कहने से कतई नहीं हिचकिचाते थे, जबकि उन्हें अच्छी तरह पता होता था कि इसके नतीजे क्या हो सकते हैं.
निमोनिया और स्वास्थ्य संबंधी अन्य जटिलताओं के कारण शनिवार को 83 वर्षीय बजाज का निधन, एक ऐसे युग के अंत का प्रतीक है जिसमें बिजनेसमैन सत्ता के खिलाफ भी डटकर खड़े हो जाते थे.
बजाज 2019 में दिल्ली में एक पुरस्कार समारोह के दौरान गृहमंत्री अमित शाह, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में अपनी चिंता जाहिर करने के लिए उठ खड़े हुए और उन्होंने कहा कि देश में ‘डर का माहौल’ है, और उद्योगपतियों को लगता है कि अगर वे खुले तौर पर सरकार की आलोचना करेंगे तो इसे पसंद नहीं किया जाएगा. बजाज का कद ऐसा था कि उनकी यह छोटी-सी लेकिन कड़ी टिप्पणी कई दिनों तक सोशल मीडिया पर गूंजती रही और देश में असहिष्णुता को लेकर एक नई बहस छिड़ गई.
अमेरिका में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से प्रबंधन की डिग्री हासिल करने के बाद बजाज ने 1965 में बजाज समूह का कामकाज संभाला. वह क्षेत्र के पिछड़े इलाके में दो और तिपहिया वाहनों के निर्माण के इरादे के साथ मुंबई से पुणे चले गए, लेकिन फिर यही जगह समूह की एक प्रमुख कंपनी बजाज ऑटो के विकास का हब साबित हुई. उनके नेतृत्व में बजाज ऑटो का कारोबार केवल 7.2 करोड़ रुपये (कंपनी की तीसरी वार्षिक रिपोर्ट 2009-10 के मुताबिक) से बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो गया, जिसमें कंपनी का स्कूटर मुख्य आधार बना.
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‘उद्योग भवन के गलियारों के चक्कर लगाए’
लेकिन बजाज ऑटो की स्थापना के बाद से यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. बजाज को कभी-कभी निर्धारित क्षमता से ज्यादा दोपहिया वाहनों के निर्माण का परमिट हासिल करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था.
एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 के नियमों के तहत कोई कंपनी अपनी लाइसेंस क्षमता से केवल 25 प्रतिशत ही ज्यादा उत्पादन कर सकती है. बजाज ने 2014 में एक पत्रिका के कॉलम में लिखा था, ‘मैं अपना समय कारखाने से ज्यादा उद्योग भवन के गलियारों में बिताता था.’
उद्योग भवन में वाणिज्य एवं उद्योग, इस्पात, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और भारी उद्योग मंत्रालय आदि हैं.
आज बजाज ऑटो का बाजार पूंजीकरण एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है. बजाज समूह ने बीमा, वित्तीय सेवाओं और घरेलू उपकरणों, बिजली के लैंप, पवन ऊर्जा, विशेष मिश्रित धातु और स्टेनलेस स्टील आदि के क्षेत्र में कदम रखकर अपने व्यवसाय को विविधता प्रदान की है.
‘हमारा बजाज’
एक समय बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ा उनका विज्ञापन ‘हमारा बजाज’ वैसे तो मुख्यत: यामाहा, सुजुकी और होंडा जैसे विदेशी मोटरसाइकिल ब्रांडों के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए शुरू हुआ था लेकिन इसने भारतीय विज्ञापन उद्योग के लिए भी नए मानदंड स्थापित कर दिए. इस तरह के विज्ञापन के जरिये वह समय बेहद मुफीद था क्योंकि 1980 के दशक के अंत में भारत दोपहिया बाजार में विदेशी खिलाड़ियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहा था और स्कूटर की तुलना में मोटरबाइक की मांग बढ़ रही थी.
बजाज ने 2005 में समूह का प्रबंधन अपने दो बेटों राजीव और संजीव को सौंप दिया और एक मार्गदर्शक के तौर पर व्यवसाय में बड़ी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी संभाल ली. जाने-माने राजनेता प्रमोद महाजन के निधन के बाद 2006 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए और चार साल तक संसद सदस्य रहे. कई यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद उपाधि के अलावा बजाज को 2001 में भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण मिला था.
बजाज ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए पिछले साल अप्रैल में बजाज ऑटो के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद उनके चचेरे भाई नीरज बजाज कंपनी के अध्यक्ष बने.
शनिवार को जैसे ही राहुल बजाज के निधन की खबर आई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य कैबिनेट मंत्रियों से लेकर भारतीय उद्योग के हर दिग्गज की तरफ से श्रद्धांजलि देने का तांता लगा गया. प्रधानमंत्री ने शनिवार को ट्वीट किया, ‘श्री राहुल बजाज जी को वाणिज्य एवं उद्योग जगत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा. व्यवसाय से इतर वह सामुदायिक सेवा के प्रति भी समर्पित थे और एक महान वक्ता थे. उनके निधन से बेहद दुख हुआ. उनके परिवार और मित्रों के लिए संवेदनाएं. ओम शांति.’
न केवल अपनी बेबाकी के लिए बल्कि अपने व्यावसायिक कौशल के लिए भी ख्यात बजाज ने 2016 के एक इंटरव्यू में कहा था, ‘यदि आपमें कोई जुनून नहीं है, कोई आग नहीं है, तो आप शीर्ष पर नहीं पहुंच पाएंगे.’
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