लुधियाना: भारत के कोरोनावायरस प्रेरित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान ई-फार्मेसियों को सोशल डिस्टेंसिंग के समय में गति मिली लेकिन दवा के दुकानदारों को एक मुश्किल काम सौंपा गया. पिछले मार्च महीने में पंजाब में अथॉरिटीज़ ने मेडिकल शॉप्स और फार्मेसियों से कहा था कि वे बुखार, खांसी और जुकाम के लिए दवाएं खरीदने के लिए आने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखें. दरअसल ये लक्षण कोविड-19 के प्रमुख लक्षण है.
पंजाब के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा राज्य के सभी जोनल लाइसेंसिंग प्राधिकरणों को स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) जारी किया गया कि जब भी कोई बुखार, खांसी और सर्दी के लिए दवा खरीदने आए तो वे ‘अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले केमिस्टों सलाह दें कि वे गोपनीय रूप से संबंधित सिविल सर्जन को दैनिक आधार पर रिपोर्ट भेजें.’ जब कोई बुखार, खांसी या जुकाम के लिए दवा खरीदता है.
एसओपी में कहा गया, ‘इसे जनता के हित में सबसे जरूरी माना जाना चाहिए.’ लेकिन एक साल बाद पंजाब में जहां करीब 26 हज़ार फार्मेंसी हैं, वहां यह अभी ठीक से शुरू भी नहीं हो पाया है.’
इस सप्ताह की शुरुआत में, पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने घोषणा की थी कि ‘कोरोना की रोकथाम के लिए सभी लैब्स और अस्पतालों को अपने संबंधित सिविल सर्जन के कार्यालयों में कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति के बारे में सूचना देना अनिवार्य होगा.’
पंजाब के स्वास्थ्य विभाग में एक महामारी विशेषज्ञ ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्हें सिर्फ कस्टमर का नाम, फोन नंबर और पता लिखना है. लेकिन इतना भी नहीं हो रहा है. कोरोना महामारी से निपटने का पंजाब का यह एक तरीका है जो कि अब भी काफी कमजोर है.’
जबकि राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के एक वर्ग का मानना था कि इस प्रेक्टिस से संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरे वर्ग को लगता है कि यह निरर्थक है और पिछले साल जब इस बीमारी के बारे में कम पता था तब इसकी ज्यादा उपयोगी था.
इस बीच, दवा बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि इस प्रक्रिया से उनके बिजनेस पर काफी बुरा असर पड़ा है क्योंकि कोविड-19 को लेकर लोगों में काफी पूर्वाग्रह हैं.
पिछले कुछ हफ्तों से पंजाब में कोरोनावायरस के मामले खतरनाक तरीके बढ़ रहे हैं. 1 अप्रैल तक पंजाब में 23,832 सक्रिय मामले दर्ज किए गए और 6,868 मौतें हुईं. इन मामलों में मृत्यु दर 2.94 प्रतिशत था, जो राष्ट्रीय औसत 1.35 प्रतिशत से काफी अधिक है. राज्य, केंद्र सरकार के लिए भी एक ‘गंभीर चिंता‘ का विषय बन गया है.
राज्य के स्वास्थ्य सचिव हसन लाल ने कहा बताया कि पंजाब ने टेस्टिंग की संख्या बढ़ाकर प्रतिदिन औसतन 35 हजार कर ली है जो कि काफी है.
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‘पहले से ही मैनपावर की कमी’
पटियाला के एक सरकारी स्वास्थ्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड लक्षणों वाले ग्राहकों की जानकारी लेने वाली फार्मेसियों की प्रेक्टिस का फायदा नहीं हुआ क्योंकि इसके लिए कोई निर्धारित प्रोटोकॉल नहीं है.
‘पिछले साल मार्च-अप्रैल के दौरान, कुछ दुकानों ने हमें डेटा भेजा था, लेकिन वह बहुत उपयोगी नहीं था. आधे मामलों में नंबर गलत था या पता अधूरा था.’
एसएएस नगर के एक अन्य स्वास्थ्य अधिकारी का भी मानना है कि यह प्रेक्टिस किसी काम की नहीं है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘डॉक्टर अन्य बीमारियों के लिए भी पैरासिटामोल लिखते हैं. मुझे नहीं लगता कि कोविड-19 मामलों को ट्रैक करने के लिए यह सबसे अच्छा तरीका है.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास पहले से ही लोगों की कमी है- वैक्सिनेशन और टेस्टिंग पर हमारा ध्यान रहता है.’
हालांकि, नाम न बताए जाने की शर्त पर स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि यह प्रेक्टिस कोविड-19 इंफेक्शन की चेन को ब्रेक कर सकती है.
उन्होंने कहा, ‘Covid-19 बहुत आसानी से फैलता है, तो इसे रोकने के लिए हमारी आधारभूत चीज़ें मज़बूत होनी चाहिए. बुखार या खांसी होने पर व्यक्ति सबसे पहले क्या काम करता है? निकटतम फार्मेसी में जाता है. यदि हम किसी आदमी को हल्के लक्षणों के साथ ट्रैक कर सकें, तो इस श्रृंखला को तोड़ना संभव है.’
आगे उन्होंने कहा, ‘गंभीर मामलों को पता चल जाता है क्योंकि वे सीधा अस्पताल जाते हैं लेकिन हल्के लक्षणों वाले लोग हमसे छूट जाते हैं, और यह वही लोग हैं जो वायरस फैलाते हैं.’
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‘हमारे बिज़नेस में कमी आ रही है’
दिप्रिंट ने चंडीगढ़, लुधियाना, पटियाला और होशियारपुर में कई फार्मेसियों का दौरा किया, इनमें से कोई भी वर्तमान में इस प्रेक्टिस को फॉलो नहीं कर रहा है. कुछ ने पिछले साल इसका पालन किया था लेकिन वो भी थोड़ा बहुत.
पहचान ज़ाहिर न किए जाने की शर्त पर एक फार्मेसिस्ट ने दिप्रिंट को बताया, ‘महामारी के शुरुआती दिनों में इन दवाओं को लेने वाले रोगियों के डिटेल्स हम नोट करते थे कोरोनावायरस संक्रमण का इतना डर है कि लोग हमसे दूर भागने लगे और हमारा बिजनेस खराब होने लगा.
चंडीगढ़ के केमिस्ट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष परविंदर जीत सिंह ने पिछले 15 दिनों में फ्लू की दवा की बिक्री में बढ़त के बारे में बताया. उन्होंने कहा, ‘जब लोग इन दवाओं के लिए पूछने आते हैं, हम उनसे कोरोनावायरस का टेस्ट कराने का अनुरोध करते हैं. हालांकि, हमें कोई भी डेटा इकट्ठा करने का कोई निर्देश नहीं मिला है.’
फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के ज्वाइंट कमिश्नर संजीव गर्ग ने कहा कि जब कोरोना के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था तो यह इसे रोकने के लिए किए जाने वाले कई उपायों में से एक उपाय था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जिन फार्मेसीज़ ने कोई भी डेटा कलेक्ट नहीं किया उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. यह लोगों के लिए काफी अच्छी प्रेक्टिस है. लेकिन इससे कोविड-19 मामलों की मॉनीटरिंग में मदद मिली.
गर्ग ने यह भी कहा कि यह प्रेक्टिस ‘पिछले साल अधिक महत्वपूर्ण था जब महामारी शुरू हुई थी और इसे बढ़ने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘इस बार हम कहीं अधिक परीक्षण कर रहे हैं और अधिक जागरूक भी हैं.’
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