नई दिल्ली: हरियाणा और पंजाब, जो पहले से ही सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर और रावी-ब्यास जल के बंटवारे को लेकर विवाद में फंसे हुए हैं, अब एक और मुद्दे पर आमने-सामने हैं जिसे राज्य वर्षों से हल करने में विफल रहे हैं और वो है पंजाब विश्वविद्यालय.
हरियाणा, जिसे 1966 में पंजाब से अलग किया गया था, 1976 तक प्रतिष्ठित चंडीगढ़ स्थित विश्वविद्यालय में हिस्सेदारी रखता था, लेकिन बाद में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने इससे अपना हाथ खींच लिया था.
2018 के बाद से, राज्य संस्था में अपनी हिस्सेदारी को पुनः प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है – हरियाणा के कॉलेजों के लिए संबद्धता की मांग की है लेकिन पंजाब ने इसे अपना बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का जोड़ लगा रहा है.
वर्तमान में एक बार फिर दोनों राज्यों में इसके अधिकार को लेकर बहस शुरू हो गई है. पुनरावृत्ति में, पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने गुरुवार को पूर्व की मांग को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और आप के पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच एक बैठक की अध्यक्षता की.
एक प्रेस नोट में, हरियाणा ने बैठक के बाद दावा किया कि पंजाब विश्वविद्यालय पर राज्य के अधिकारों की बहाली की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए गए हैं.
हालांकि, पंजाब ने अपने प्रेस नोट के जरिए यूनिवर्सिटी पर हरियाणा के दावे को खारिज करते हुए कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी राज्य की धरोहर है और इसमें किसी भी तरह का बदलाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
दोनों राज्यों के रुख सख्त होने के बीच राज्यपाल ने अंतिम फैसला लेने के लिए 5 जून को एक और बैठक तय की है.
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एक प्रतिष्ठित संस्थान
पंजाब विश्वविद्यालय पंजाब सरकार और केंद्र दोनों द्वारा वित्त पोषित एक राज्य विश्वविद्यालय है. इसके पूर्व छात्रों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दिवंगत पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सहित कई प्रमुख हस्तियां शामिल हैं.
सूची में अन्य लोगों में हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अभिनेता और सांसद किरण खेर, हरियाणा के मंत्री अनिल विज, उद्योगपति सुनील मित्तल, पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी और दिवंगत हास्य कलाकार जसपाल भट्टी शामिल हैं.
विश्वविद्यालय की वेबसाइट के अनुसार, विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए केंद्र सरकार की राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा ग्रेड ‘ए’ के साथ चार-बिंदु पैमाने पर 3.35 सीजीपीए के साथ मान्यता प्राप्त है.
इसमें 188 संबद्ध कॉलेज शामिल हैं, और विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) 2022 के क्रमशः ‘विश्वविद्यालय’ और ‘समग्र’ श्रेणियों के तहत 25 और 41 वें स्थान पर रखा गया है.
पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना 1882 में लाहौर में हुई थी, जो अब पाकिस्तान में है.
विभाजन के बाद, विश्वविद्यालय का प्रशासनिक कार्यालय पहले सोलन में खोला गया जबकि होशियारपुर, जालंधर, अमृतसर और दिल्ली में शिक्षण विभागों के साथ स्थापित किया गया था.
इसे 1956 में चंडीगढ़ में स्थानांतरित कर दिया गया था. वर्तमान परिसर शहर के सेक्टर 14 और 25 में 550 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी के रूप में कार्य करता है.
विश्वविद्यालय के शुरू में रोहतक, जालंधर और शिमला में क्षेत्रीय केंद्र थे. 1966 में पुनर्गठन के बाद, जब पंजाब को हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में विभाजित किया गया, तो पूर्व के दो को भी विश्वविद्यालय पर अधिकार दिया गया.
हालांकि, हरियाणा ने 1975-76 में एकतरफा रूप से अपने कॉलेजों को पंजाब विश्वविद्यालय के दायरे से हटा दिया और उसे सहायता देना बंद कर दिया. वर्तमान में केवल पंजाब और चंडीगढ़ के कॉलेज ही विश्वविद्यालय के दायरे में आते हैं.
2018 में, हरियाणा के दावे को बहाल करने की मांग करते हुए, मनोहर लाल खट्टर ने केंद्रीय गृह मंत्री को लिखा.
पत्र के माध्यम से, हरियाणा ने विश्वविद्यालय को अनुदान देने की पेशकश की और बदले में कुछ जिलों में कॉलेजों की संबद्धता मांगी.
हालांकि, इस कदम का पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विरोध किया था, जिन्होंने कहा था कि हरियाणा को “पंजाब विश्वविद्यालय के साथ दखल देने” की अनुमति नहीं दी जाएगी.
10 अगस्त 2022 को, हरियाणा विधानसभा ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सिफारिश की गई कि सरकार पंजाब विश्वविद्यालय में हिस्सेदारी चाहती है.
हरियाणा की मांग पंचकुला विधायक (अब विधानसभा अध्यक्ष) ज्ञान चंद गुप्ता, संस्था के पूर्व छात्र द्वारा की गई एक पहल पर आधारित है.
गुरुवार को दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर, गुप्ता ने कहा कि उनके “वर्षों के प्रयास अब फलीभूत होते दिख रहे हैं”.
उन्होंने कहा कि इस मामले में पंजाब के राज्यपाल की राय बिल्कुल स्पष्ट है कि हरियाणा के अपने कॉलेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी से संबद्ध करने के दावे में कुछ भी गलत नहीं है.
गुप्ता ने कहा, “गुरुवार की बैठक के बाद मैं सीएम मनोहर लाल खट्टर से मिला, और उन्होंने कहा कि उन्होंने पंजाब के सीएम भगवंत मान को हरियाणा के किसी भी राज्य के विश्वविद्यालयों के साथ अपने राज्य के कॉलेजों को संबद्ध करने की पेशकश की थी.” पंजाब विश्वविद्यालय के साथ पंचकुला, अंबाला और यमुनानगर जिलों में स्थित कॉलेजों को संबद्ध करना चाहता है.
गुप्ता के मुताबिक, पंजाब यूनिवर्सिटी पर हरियाणा का दावा उतना ही जायज है, जितना चंडीगढ़ पर उसका दावा.
उन्होंने कहा, “पंजाब के पुनर्गठन के समय… जिस तरह हरियाणा को हाईकोर्ट, विधानसभा, सचिवालय और चंडीगढ़ में हिस्सा मिला, उसी तरह पंजाब विश्वविद्यालय में भी उसे हिस्सा मिला.”
1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने निजी कारणों से इस विश्वविद्यालय से हरियाणा के कॉलेजों को वापस ले लिया था. अब हम चाहते हैं कि हरियाणा को उसका वैध हिस्सा मिले.
यह पूछे जाने पर कि वास्तव में हरियाणा क्यों पीछे हट गया, गुप्ता ने कहा, “मुझे बताया गया कि पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था. जहां पंजाब के मुख्यमंत्री को मंच पर एक सीट दी गई, वहीं बंसीलाल को दर्शकों के बीच आगे की पंक्ति में बैठने की पेशकश की गई. इसने हरियाणा के नेता को नाराज कर दिया, जिससे वापसी हुई.
बैठक में क्या हुआ
प्रेस नोट के अनुसार, खट्टर ने बैठक में कहा कि “आज के युग में, राज्यों के कॉलेजों को भी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से संबद्ध किया जा रहा है”.
उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य है कि सभी शिक्षण संस्थान देश की प्रगति में सहयोग करें और सभी राज्यों के आपसी संबंध और मजबूत हों.” इसलिए हरियाणा के कॉलेजों की संबद्धता पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से की जाए.
हरियाणा के सीएम ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय एक राज्य और केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित विश्वविद्यालय है जहां हरियाणा के कॉलेजों की भी संबद्धता होनी चाहिए.
“हरियाणा सरकार, केंद्र के साथ, पंजाब विश्वविद्यालय को आगे ले जाएगी, ताकि विश्वविद्यालय समृद्ध हो और इसकी जरूरतें पूरी हों.”
प्रेस नोट के मुताबिक, पंजाब के सीएम मान ने इन विषयों को अंतिम रूप देने के लिए कुछ समय मांगा, जबकि पुरोहित ने पंजाब विश्वविद्यालय के साथ हरियाणा के कॉलेजों की संबद्धता का समर्थन किया.
हरियाणा सरकार के प्रेस नोट में कहा गया है, ‘पंजाब के राज्यपाल ने दोनों मुख्यमंत्रियों को नसीहत दी कि पंजाब यूनिवर्सिटी से जुड़े मामलों को आपसी सहमति से आगे बढ़ाया जाना चाहिए.’ “हरियाणा के कॉलेजों को पंजाब विश्वविद्यालय से संबद्धता का मुद्दा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है; ऐसा करना संभव है. हरियाणा और पंजाब का यह सहयोग निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत होगी.
इस बीच, पंजाब सरकार ने कहा कि “मुख्यमंत्री (भगवंत सिंह मान) ने [बैठक के दौरान] कहा कि पंजाब सरकार राज्य और उसके लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.”
भगवंत मान, जिन्होंने विश्वविद्यालय से संबंधित तथ्यों को दृढ़ता से रिकॉर्ड पर रखा है, ने कहा कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्रांतीय कारणों से पंजाब के लोगों के दिलों में इस प्रमुख शैक्षणिक संस्थान का एक भावनात्मक स्थान है. उन्होंने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय पंजाब की विरासत का प्रतीक है और राज्य के नाम का पर्याय है.
नोट में कहा गया है कि मान ने स्पष्ट रूप से यह स्पष्ट कर दिया है कि विश्वविद्यालय केवल पंजाब राज्य और उसकी राजधानी चंडीगढ़ की जरूरतों को पूरा करता है. विश्वविद्यालय के इतिहास का हवाला देते हुए, “इसका संविधान, इसकी जातीय, सामाजिक-सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों के साथ-साथ इसके संकाय और छात्र, जो मुख्य रूप से राज्य से आते हैं”, मान ने कहा कि यह महत्वपूर्ण था “कि वर्तमान कानूनी और प्रशासनिक स्थिति पंजाब विश्वविद्यालय को संरक्षित किया जाना चाहिए”.
(अनुवाद एवं संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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