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Saturday, 30 November, 2024
होमदेशपंजाब के किसानों की शिकायत ‘केंद्र सरकार दे रही सज़ा’, मान प्रशासन ने कहा — राज्य में सब ठीक

पंजाब के किसानों की शिकायत ‘केंद्र सरकार दे रही सज़ा’, मान प्रशासन ने कहा — राज्य में सब ठीक

किसानों का कहना है कि वह 15-20 दिनों से मंडियों में डेरा डाले हुए हैं, लेकिन कोई खरीदार नहीं है. चावल की मिलें खरीद में देरी के लिए भंडारण स्थान की कमी को जिम्मेदार ठहराती हैं क्योंकि गोदामों में अभी भी पिछले साल का स्टॉक रखा हुआ है.

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पंजाब (मानसा): पंजाब के मानसा जिले के खैरा कलां गांव के बच्चे स्थानीय खेल मैदान में नहीं खेल पा रहे हैं, क्योंकि अब यह मंडी बन गया है, जहां किसानों के बिना बिके धान के भंडार लगे हैं.

मंडी के एक बिचौलिए ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “चूंकि, हम पिछले कुछ दिनों से चावल मिल मालिकों को धान नहीं बेच पाए हैं, इसलिए मंडी में इसे रखने के लिए जगह नहीं है. लिहाज़ा हमें पास के खेल के मैदान को किराए पर लेना पड़ा है.”

इस साल पंजाब के धान को कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. भले ही चावल पंजाब के खाद्य पदार्थों में खासतौर पर शामिल नहीं है, लेकिन यह राज्य देश के सबसे बड़े चावल उत्पादक राज्यों में से एक है. पानी की अधिक खपत वाली इस फसल को राज्य में तेजी से घटते भूजल स्तर के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाता है और हर साल दिल्ली और अन्य राज्यों में इसके पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है. फिर भी, चावल अपनी निरंतरता और हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर केंद्र द्वारा लगभग 100 प्रतिशत खरीद के कारण पंजाब के किसानों के लिए एक लोकप्रिय फसल बनी हुई है.

इस साल, खरीद की समस्या के लिए मुख्य रूप से पंजाब के गोदामों में जगह की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है, जहां पिछले साल का स्टॉक अभी तक नहीं निकाला जा सका है, लेकिन चावल मिलर्स, बिचौलियों और किसानों सहित हितधारक और यहां तक ​​कि अर्थशास्त्री भी केंद्र सरकार पर पंजाब के किसानों के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रहे हैं.

किसान अपने धान पर एमएसपी पाने में असमर्थ होने के कारण 2 सप्ताह से अधिक समय से मानसा मंडी में डेरा डाले हुए हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
किसान अपने धान पर एमएसपी पाने में असमर्थ होने के कारण 2 सप्ताह से अधिक समय से मानसा मंडी में डेरा डाले हुए हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

राइस मिलर्स एसोसिएशन के मानसा जिला अध्यक्ष शामलाल धलेवान ने दिप्रिंट से कहा, “इस साल सितंबर तक भी वह पिछले साल का स्टॉक गोदामों से नहीं निकाल पाए…केंद्र नहीं चाहता कि राज्य समृद्ध हो.”

किसानों और किसान यूनियनों के बीच यह भावना है कि यह केंद्र सरकार का पंजाब के किसानों को कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध करने के लिए ‘दंडित’ करने का तरीका है. उन्होंने मंत्रियों और विधायकों के घरों पर विरोध प्रदर्शन किया है, 13 अक्टूबर को ‘रेल रोको’ आंदोलन किया और वर्तमान में राज्य भर में 25 टोल बूथों पर कब्ज़ा कर लिया है.

अमृतसर में भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) के जिला अध्यक्ष परविंदर सिंह ने एक टोल बूथ जिसे यूनियन ने विरोध प्रदर्शन के तहत कब्ज़ा कर लिया है, वहां दिप्रिंट को बताया, “पंजाब ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया था और केंद्र अब बदला ले रहा है. सरकार कॉरपोरेट से प्यार करती है और चाहती है कि हम खेती छोड़ दें…इसलिए वह हमारी फसल नहीं खरीद रहे हैं. वह हमें खाद, बिजली, मंडियों में परेशान कर रहे हैं…वह चाहते हैं कि हम चले जाएं और कॉरपोरेट हम पर कब्ज़ा कर लें.”

अर्थशास्त्री सिराज हुसैन का कहना है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में खरीद बिना किसी समस्या के हो रही है. उन्होंने कहा, “केंद्र को जवाब देना चाहिए कि उन राज्यों में खरीद 3,100 रुपये क्यों है और पंजाब में नहीं. पीआर 126 के लिए एमएसपी 2350 रुपये है.”


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देरी के कारण

किसानों और बिचौलियों ने दिप्रिंट को बताया, इस साल धान की खरीद प्रक्रिया दो सप्ताह देरी से शुरू हुई. यह प्रक्रिया आमतौर पर अक्टूबर के पहले सप्ताह में शुरू होती है, लेकिन इसे 25 अक्टूबर तक टाल दिया गया और पूरे राज्य में किसान यूनियनों के विरोध के बाद ही इसे पूरी तरह से शुरू किया गया.

देरी पंजाब में राइस मिलर्स एसोसिएशन की हड़ताल के कारण हुई, जिन्होंने कम पैदावार, बाज़ार में हाइब्रिड किस्मों की बाढ़ और मिलों में सीमित भंडारण क्षमता के कारण नुकसान के कारण चावल खरीदने का विरोध किया. यह हड़ताल 5 अक्टूबर को वापस ले ली गई.

पंजाब के मानसा में एक चावल मिल में चावल की बोरियों पर खड़े किसान | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
पंजाब के मानसा में एक चावल मिल में चावल की बोरियों पर खड़े किसान | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

किसानों ने कहा कि वह पिछले 15 से 20 दिनों से मंडियों में डेरा डाले हुए हैं और उनकी फसल के लिए कोई खरीदार नहीं है.

खैरा मंडी के एक किसान लाल सिंह ने धान को अपनी हथेलियों में पकड़े हुए कहा, “इस चावल को देखिए, यह बिल्कुल बढ़िया है, वह (सरकार) इसे क्यों नहीं खरीदेंगे? उन्हें क्या दिक्कत है?”

किसानों ने धान की फसल को मंडियों में इस उम्मीद से रखा है कि इसकी नमी कम हो जाएगी. बिचौलिए किसानों से कह रहे हैं कि 17 प्रतिशत से अधिक नमी वाली फसलें स्वीकार नहीं की जाएंगी, क्योंकि यह सरकार द्वारा निर्धारित मानदंड है.

किसानों ने बताया, हालांकि, 17 प्रतिशत नमी का पैमाना मौजूद है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर नमी की मात्रा को लेकर ऐसी सख्ती अभूतपूर्व है. लाल सिंह ने स्पष्ट रूप से उत्तेजित होकर कहा, “पिछले साल उन्हें 25 प्रतिशत नमी वाले चावल खरीदने में कोई समस्या नहीं हुई थी.”

बिना बिके अपने धान का कुछ हिस्सा हाथ में पकड़े एक किसान | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
बिना बिके अपने धान का कुछ हिस्सा हाथ में पकड़े एक किसान | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

शामलाल धलेवान के अनुसार, इस साल कम मांग के कारण बिचौलिए नमी की मात्रा को लेकर सख्त हैं. उन्होंने कहा, “बीते सालों में किसी ने भी इसकी इतनी परवाह नहीं की.”

चावल मिल मालिक भी किसानों से अनाज की किस्म पीआर 126 खरीदने से कतरा रहे हैं — एक सरकारी अनुशंसित किस्म — उनका आरोप है कि ये ‘हाइब्रिड’ किस्में हैं. इन चावल किस्मों की खरीद को लेकर भी बहस चल रही है, क्योंकि आउटटर्न रेशियो लक्ष्य बढ़ा हुआ है. आउटटर्न रेशियो यह बताता है कि प्रति क्विंटल धान से कितने किलो चावल प्रोसेस किया जाता है.

पंजाब के आढ़ती एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अमनदीप सिंह चिन्ना ने कहा, “सरकार 67 किलो प्रति क्विंटल चावल खरीदती है, जबकि इन अनाज किस्मों से प्रति क्विंटल धान से केवल 62 किलो चावल प्रोसेस किया जाता है. चावल मिल मालिकों को 5 किलो का घाटा होता है और वह इन किस्मों को खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं.”

हालांकि, किसानों का तर्क है कि उन्हें 8 साल में इस किस्म के अनाज को बेचने में कोई समस्या नहीं आई है और यह मुद्दा अचानक सामने आया है.

खेत से गोदाम तक

धान की फसल की आपूर्ति श्रृंखला में चार चरण शामिल हैं. किसान इसे बाज़ार में लाते हैं, जहां बिचौलिए उनसे इसे खरीदकर चावल मिलों को आपूर्ति करते हैं और फिर सरकार को बेचते हैं. चावल में प्रोसेस होने के बाद, फसल को भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा नियंत्रित या भागीदारी वाले गोदामों में स्थानांतरित कर दिया जाता है और FCI द्वारा इसे स्थानांतरित किए जाने तक वहां संग्रहीत किया जाता है.

इस साल गोदामों में जगह की कमी की खबरें सामने आ रही हैं. मानसा के बेरा गांव में सोमा गोदाम के अधिकारियों ने कहा कि पहले FCI द्वारा चावल को दशहरा के बाद किसी भी समय गोदामों से ले जाया जाता था ताकि नई फसलों के लिए जगह बनाई जा सके, लेकिन पिछले दो साल से यह प्रक्रिया विलंबित हो गई है और उन्हें जनवरी में ही मिलों से चावल मिलना शुरू होता है.

मंडियों में धान बिना उठाए पड़ा है, धूप में सड़ रहा है, जहां किसान अपनी फसल बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मिल मालिक भी क्षमता से अधिक उत्पादन कर रहे हैं और मंडियों से धान की फसल उठाने के लिए ट्रक भेजने से इनकार कर रहे हैं.

मांग में कमी ने किसानों के लिए मूल्य समस्या पैदा कर दी है, जिनका कहना है कि उन्हें अपनी उपज पर एमएसपी नहीं मिल पा रहा है.

मानसा मंडी में एक किसान ने पूछा, “वह (मिल मालिक) प्रति क्विंटल 3-4 किलो कट्ट (छूट) मांगते हैं. यह गलत है. हम अपनी फसल कैसे बेचेंगे?”

इस साल, उन्हें अभी तक चावल की एक भी खेप नहीं मिली है और वर्तमान में वह 116 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहे हैं.

भंडारण गोदाम में रखा अनाज | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
भंडारण गोदाम में रखा अनाज | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

बेरा गांव के सोमा गोदाम के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, “2022-2023 के लिए 11 लाख बोरी चावल हमारे गोदाम में पड़े हैं और 2023-2024 के लिए 13 लाख बोरी और हैं, हम पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं.”

गोदाम से चावल की बोरियां क्यों नहीं हटाई गईं, इस बारे में पूछे जाने पर अधिकारियों ने कहा: “इसका जवाब केवल भारतीय खाद्य निगम ही दे सकता है.”

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रहलाद जोशी ने 27 अक्टूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि सितंबर में बारिश और धान में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण फसल की कटाई और खरीद दोनों में देरी हुई है.

केंद्र ने कहा कि पंजाब अब 185 लाख टन धान खरीद के लक्ष्य को हासिल करने की ओर अग्रसर है.

जबकि मंडियों में बिना बिके धान पड़ा हुआ है, पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य ने इस साल अधिकांश चावल की खरीद की है.

पंजाब के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री लाल चंद कटारूचक ने बुधवार रात एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हमने पंजाब में कुल 111 लाख मीट्रिक टन धान में से 105 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा है और किसानों को 22,000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया है. 4,759 मिलों को धान आवंटित किया गया है, जबकि 4,439 मिलें धान उठाने में लगी हुई हैं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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