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Thursday, 19 September, 2024
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चंद्रयान-3 से सफलतापूर्वक अलग हुआ प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल, 23 अगस्त को करेगा चांद पर लैंड

14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद चंद्रयान-3 ने पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया, जिसके बाद इसने छह, नौ और 14 अगस्त को चंद्रमा की अगली कक्षाओं में प्रवेश किया तथा उसके और निकट पहुंचता गया.

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नई दिल्ली: भारत के महत्वाकांक्षी तीसरे चंद्रमा मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने गुरुवार को एक और उपलब्धि हासिल की. इसरो ने जानकारी देते हुए कहा, चंद्रमा के और करीब पहुंचा चंद्रयान-3. लैंडर विक्रम प्रोपल्शन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग हो गया और अब 23 अगस्त को चंद्रमा पर करेगा लैंड.

इसरो ने जानकारी देते हुए कहा, लैंडिंग मॉड्यूल को प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है. कल लगभग 4 बजे के लिए नियोजित डीबूस्टिंग पर लैंडिंग मॉड्यूल थोड़ी निचली कक्षा में उतरने के लिए तैयार है.

चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर का नाम विक्रम साराभाई (1919-1971) के नाम पर रखा गया है, जिन्हें व्यापक रूप से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है.

बुधवार को चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की कक्षा में पांचवें और अंतिम चरण को सफलतापूर्वक पूरा किया, जिससे अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह के और भी करीब आ गया.

14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद चंद्रयान-3 ने पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया, जिसके बाद इसने छह, नौ और 14 अगस्त को चंद्रमा की अगली कक्षाओं में प्रवेश किया तथा उसके और निकट पहुंचता गया.

चंद्रयान-3 को चंद्रमा के ध्रुवों पर स्थापित करने का अभियान आगे बढ़ रहा है. इसरो चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचाने का प्रयास कर रहा है और चंद्रमा से उसकी दूरी धीरे-धीरे कम होती जा रही है.

चंद्रयान-3 के 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की उम्मीद है.

क्या है Chandrayaan-3 में खास

चंद्रयान-2 की असफलता को देखते हुए चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए हैं. चंद्रयान-3 में पिछले मिशन की तरह ऑर्बिटर के बजाय प्रोपल्शन मॉड्यूल का प्रयोग किया जाएगा. इस मिशन में लैंडर और रोवर को प्रोपल्शन मॉड्यूल के ज़रिए चंद्रमा से 100 किलोमीटर की दूरी तक लेकर जाया जाएगा. पिछले चंद्रयान-2 में यह काम ऑर्बिटर के ज़रिए किया गया था. दरअसल, ऑर्बिटर में जिस टेक्नॉलजी का प्रयोग किया जाता है उससे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने तक बीच में किसी खराबी के आने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं जबकि प्रोपल्शन मॉड्यूल में इसकी संभावना कम है.

इसके अलावा इस बार लैंडर में कुछ खास एक्विपमेंट्स भी लगाए गए हैं जिसकी वजह से चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की संभावना ज्यादा है.

इसके अलावा प्रोपल्शन मॉडयूल स्पेक्ट्रो-पोलैरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) पेलोड से लैस होगा. योजना के मुताबिक लैंडर और रोवर की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी जिसके बाद रोवर चंद्रमा के केमिकल स्ट्रक्चर के बारे में विश्लेषण करेगा. चंद्रयान-3 में प्रोपल्शन सिस्टम में कई बदलाव किए गए हैं और नए सेंसर्स भी लगाए गए हैं. पिछली असफलता को देखते हुए इसरो इस बार कोई भी कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता है.

लैंडर और रोवर दोनों में चंद्रमा की सतह को स्टडी करने के लिए स्पेसिफिक पेलोड डाले गए हैं. प्रोपल्शन मॉड्यूल का मुख्य काम लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा के 100 किलोमीटर की सर्कुलर पोलर ऑर्बिट में लेकर जाना होगा इसके अलावा उसमें एक साइंटिफिक पेलोड भी होगा जो कि लैंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद ऑपरेट करना शुरू करेगा.


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