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Thursday, 25 April, 2024
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पृथ्वीराज चौहान एक महान हिंदू शासक थे लेकिन क्या वे भारत के अंतिम राजा थे? इतिहासकारों ने दिया जवाब

अक्षय कुमार की फिल्म का दावा है कि सम्राट पृथ्वीराज भारत के आखिरी हिंदू राजा थे लेकिन वह कृष्णदेवराय, शिवाजी और हेमू को कैसे भूल गए है?

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नई दिल्ली: अभिनेता अक्षय कुमार के मुताबिक ‘सम्राट पृथ्वीराज’ पर काम शुरू करने से पहले फिल्म निर्माताओं ने इस विषय पर शोध करने में एक दशक से अधिक समय बिताया है लेकिन उनके इस बयान के बावजूद फिल्म में एतिहासिक तथ्य के साथ की गई छेड़छाड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. फिल्म के पोस्टर बड़ी शान से घोषणा करते हैं कि पृथ्वीराज चौहान ‘भारत के अंतिम हिंदू राजा’ थे. हालांकि सभी शिक्षाविद और इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान न तो अंतिम ‘हिंदू’ राजा थे और न ही भारत के अंतिम शासक.

कोलकाता के लोरेटो कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर कृष्णकोली हाजरा कहते हैं, ‘इतिहास हमें बताता है कि पृथ्वीराज दिल्ली और आसपास के क्षेत्र के अंतिम हिंदू शासक थे लेकिन अन्य हिंदू शासकों ने भारत के दूसरे हिस्सों जैसे ओडिशा में शासन करना जारी रखा हुआ था. विजयनगर साम्राज्य भी बाद की तारीख में उभरा था.’

अजमेर के चौहान वंश के राजपूत योद्धा राजा 1177 कॉमन एरा (वर्तमान युग)के आसपास सिंहासन पर बैठे थे और 1192 सीई में उनकी मृत्यु हो गई. क्या उसके बाद कोई हिंदू राजा नहीं था? अली नदीम रिजवी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मध्यकालीन भारत के प्रोफेसर इस विषय पर अपनी बात रखने के लिए विजयनगर साम्राज्य और शिवाजी के उदाहरणों का इस्तेमाल करते हैं.

रिजवी पूछते हैं, ‘विजयनगर के शासक भी स्वयं को हिन्दू राजा कहते थे. क्या दिल्ली ही है जिसे भारत माना जाता है? शिवाजी के अनुयायियों की क्या प्रतिक्रिया होगी, अगर आप उन्हें बताएं कि वह हिंदू राजा नहीं थे? सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने दिल्ली क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया था? ब्राह्मणवादी साम्राज्य का दिल अभी भी मराठा भूमि में बसा हुआ है. तब क्या आप उन्हें हिंदू राजा कहलाने के अधिकार से वंचित कर देंगे?’

अन्य शिक्षाविद भी फिल्म के दावों पर इसी तरह की हैरानी जता रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फरत हसन ने कहा कि ऐतिहासिक शख्सियतों को आधुनिक धार्मिक पहचान देने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा ‘उस समय धार्मिक पहचान निश्चित नहीं थी’

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आखिरी हिंदू राजा हेमू के बारे में क्या?

हरियाणा सरकार भी अक्षय कुमार के इस दावे पर नाराजगी जता सकती है कि पृथ्वीराज अंतिम हिंदू राजा थे. पानीपत शहर की प्रशासनिक वेबसाइट 16वीं सदी के पूर्व जनरल और बाद के राजा हेमू को एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में वर्णन करती है- उन्होंने ‘भारत की नियति बदलने की पूरी कोशिश की’. यह हेमू या सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य को भारत के अंतिम हिंदू सम्राट के रूप में वर्णित करता है.

लोकप्रिय ऐतिहासिक संदर्भ यह भी बताते हैं कि क्यों हेमू को दिल्ली का अंतिम हिंदू शासक माना जाता था. हेमू ने 7 अक्टूबर 1556 से 5 नवंबर 1556 तक मुश्किल से एक महीने शासन किया था. दिल्ली की लड़ाई में अकबर की सेना को हराने के बाद उन्हें शासक का दर्जा दिया गया था लेकिन पानीपत की दूसरी लड़ाई में उन्हें पकड़ लिया गया और मार दिया गया.

एक इतिहासकार ने नाम जाहिर ने करने की शर्त पर कहा, ‘वह पूर्वी भारत में शासन करने वाले अफगान शासक आदिल शाह का एक बेहद काबिल और बहादुर वजीर (मंत्री) था. बदौनी के मुताबिक आगरा और दिल्ली पर कब्जा करने के बाद, उन्होंने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि ली और वहां अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की योजना बनाई. यह सत्ता के लिए संघर्ष था, न कि धार्मिक युद्ध. क्योंकि हेमू ने अपने मुस्लिम सम्राट के लिए अतीत में कई लड़ाइयां जीती थीं’

बार्डिक कविताओं पर आधारित पृथ्वीराज की कथा

हेमू के संक्षिप्त शासन से पृथ्वीराज चौहान का शासन काल कम से कम 380 साल पुराना था. रिजवी के अनुसार, हम चौहान के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह संदर्भ उनके शासनकाल के लगभग 400 साल बाद लिखी गई बार्डिक कविताओं से लिया गया है.

रिजवी ने कहा, ‘हेमू की तरह, वह भी एक शासकों के कुलीन वर्ग से थे, जो एक समय में दिल्ली पर कब्जा जमाए हुए थे. लेकिन तब दिल्ली राजधानी नहीं थी. आप कह सकते हैं कि यह क्षेत्र चाहमाना साम्राज्य के बाहरी शहरों में से एक था. पृथ्वीराज की पूरी कहानी बार्डिक कविताओं पर बनी है जो 16वीं शताब्दी के दौरान लिखी गई प्रतीत होती हैं. हो सकता है कि कुछ हिस्से ऐसे हों जो मूल रूप से पृथ्वीराज के काल में रहने वाले बार्ड ने लिखे हों लेकिन वो हिस्से या मूल छंद कौन से हैं, कोई भी इसे लेकर निश्चित नहीं है’

इन कविताओं को उनके अतिशयोक्ति के लिए जाना जाता है. ‘अगर आप शाहजहां के काल के किसी कवि का कोई छंद पढ़ते हैं और शाहजहांनाबाद के लाल किले की जानकारी पाने की कोशिश करते हैं तो आपको इमारतों का जिक्र बड़ी भव्यता के साथ पेश किया गया मिलेगा. मानों वे और दुनिया से हों. ऐसी कविताओं में हमेशा बढ़ा-चढ़ा कर चीजों को पेश किया जाता है. यहां तक कि पृथ्वीराज रासो के मामले में भी हम यह कह सकते हैं. क्योंकि जिस व्यक्ति के नाम पर यह लिखा गया है उसकी प्रशंसा की उम्मीद तो की ही जाएगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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