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Monday, 4 November, 2024
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मानसून पूर्व बारिश और लॉकडाउन ने सब्जियों की आवक घटाई, 50 रुपये/किलो तक उछल सकते हैं आलू, टमाटर के दाम

दिल्ली की आजादपुर मंडी में आलू की आवक पिछले 10 दिनों में घटकर महज 20 फीसदी रह गई है—10 जुलाई को 548 टन की तुलना में 20 जुलाई को मात्र 101 टन.

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नई दिल्ली : रसोईघर की प्रमुख सब्जियों में शुमार आलू और टमाटर की कीमतें, जो पिछले कुछ हफ्तों में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं, हाल-फिलहाल नीचे आती नहीं दिख रही हैं, बल्कि अगले कुछ महीनों में इनके दाम 50/किलोग्राम से अधिक तक बढ़ सकते हैं.

पिछले कुछ हफ्तों में आलू के दाम करीब 50 रुपये/किलो तक पहुंच गए हैं, जबकि लॉकडाउन, प्रतिकूल मौसम और अन्य कारणों से टमाटर की कीमतें भी 70 रुपये प्रतिकिलो के आसपास चल रही हैं.

दिल्ली की आजादपुर मंडी में आलू की आवक पिछले 10 दिनों में घटकर महज 20 फीसदी रह गई है—10 जुलाई को 548 टन की तुलना में 20 जुलाई को मात्र 101 टन. इस अवधि में मंडी में आलू के थोक दाम भी बढ़े हैं-18 रुपये/किलोग्राम से लेकर 30 रुपये किलो तक.

पूरे भारत में थोक मंडियों के व्यापारियों ने इन सब्जियों की कीमतों में इतनी तेज वृद्धि के कई कारण गिनाए हैं.

उनके मुताबिक प्रमुख कारणों में से एक आपूर्ति में कमी आना है, जो कि लॉकडाउन के बाद बढ़ी मांग के कारण अचानक प्रभावित हो गई है.

व्यापारियों के अनुसार, आपूर्ति में यह अंतर आया है, भारी मानसूनी बारिश और बेंगलुरु, पुणे जैसे कुछ शहरों और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में लगे लॉकडाउन के कारण.

आपूर्ति में कमी का एक और प्रमुख कारण यह भी बताया जा रहा है कि कई किसानों ने लॉकडाउन के दौरान दामों में भारी कमी के बाद इन सब्जियों की बुवाई नहीं की.


यह भी पढ़ें: सितंबर-दिसंबर में फिर बढ़ सकती हैं प्याज की कीमतें, बफर स्टॉक खरीद के लक्ष्य से पीछे चल रही है सरकार


आजादपुर मंडी में केवल 10-15 ट्रक आ रहे

दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जियों के थोक व्यापारी बुद्धिराजा सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘आम तौर पर हर रोज आलू और टमाटर के करीब 100-125 ट्रक मंडी आते थे—प्रत्येक में 40-50 टन तक ये सब्जियां होती थीं. अब आवक घटकर सिर्फ 10-15 ट्रक रह गई है और इस महीने मांग बढ़ जाने के साथ सारा माल कुछ ही मिनटों में बिक जाता है.’

सिंह ने आगे कहा, ‘लॉकडाउन में, आलू, टमाटर और प्याज की कीमतें 1 से 5 रुपये/किलो तक गिर गई थीं. आलू और टमाटरों की आपूर्ति नजदीकी राज्यों हरियाणा, हिमाचल और यूपी से की जाती है. इन राज्यों के किसानों ने गिरती कीमतें ध्यान में रखकर ही फसलों की बुवाई की क्योंकि वे बुवाई, श्रम और परिवहन की लागत भी नहीं निकाल पा रहे थे इसलिए धान, मक्का और कपास जैसी फसलें बोईं जिनकी खरीद सरकार की तरफ से की जाती है और न्यूनतम मूल्य मिलना तय होता है.’

उन्होंने कहा कि कुछ महीने बाद ही कीमतें नीचे आने की उम्मीद है जब ताजा फसलें आएंगी, जो कि जून के आसपास बोई गई थीं. ये फसलें तैयार होने में 100-140 दिन लगते हैं.

सिंह ने कहा कि तब तक आलू और टमाटर के दाम 50 रुपये किलो से ऊपर बने रहेंगे.

टमाटर, प्याज और आलू उगाने पर किसानों की औसत उत्पादन लागत लगभग 9-10 रुपये प्रति किलोग्राम आती है. यदि भंडारण, श्रम, परिवहन और अन्य बाजार शुल्क जैसे अन्य मद जोड़ दें तो कुल लागत 15-17 रुपये प्रति किलो पहुंच जाती है. कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कीमतें तेजी से गिरने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था.

कर्नाटक, जो एक प्रमुख टमाटर उत्पादक राज्य है, के कनकपुरा बाजार में थोक सब्जी विक्रेता प्रदीप कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘टमाटर और आलू जैसी सब्जियों के दामों में बड़ी तेजी देखी गई है क्योंकि मंडी में टमाटर की दरें एक हफ्ते में 15 रुपये प्रति किलो से 38 रुपये प्रतिकिलो तक बढ़ गई हैं. वहीं पिछले कुछ दिनों में आलू की कीमत 10 रुपये/किलो से बढ़कर 35 रुपये/किलोग्राम हो गई हैं.’

कुमार ने आगे कहा कि मूल्यवृद्धि इसलिए हुई क्योंकि कुछ राज्यों में लॉकडाउन के कारण देशभर में कोल्ड स्टोरेज से आलू की आपूर्ति बाधित हुई है.

उन्होंने कहा, ‘…आलू की कीमतों में कमी अगस्त या सितंबर तक आने के आसार हैं. भारी बारिश के कारण टमाटर की फसल खराब हो गई है और नई फसल अब अक्टूबर में ही आ पाएगी, जिससे कीमतें घट पाएंगी.’

प्याज के दाम साल के आखिर तक बढ़ने के आसार

रसोईघर की एक अन्य प्रमुख सामग्री प्याज की कीमतें हालांकि, पिछले साल की तुलना में काफी स्थिर हैं, जो उस समय 150 प्रति किलो से ऊपर पहुंच गई थीं. प्याज का खुदरा मूल्य अभी 20 रुपये किलो है.

2019-20 के रबी सीजन में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बंपर पैदावार के कारण बाजार में आवक बढ़ने से प्याज की कीमतें कम बनी हुई हैं.

हालांकि, प्याज के सर्वाधिक उत्पादन वाले क्षेत्र नासिक के प्याज व्यापारियों ने आगाह किया है कि भारी बारिश और सरकार द्वारा व्यापक खरीद के कारण साल के अंत में फिर इसके दामों में तेजी आ सकती है.

नासिक की लासलगांव मंडी में थोक प्याज व्यापारी दीपक काले ने दिप्रिंट को बताया, ‘लॉकडाउन की अवधि के दौरान इस वर्ष प्याज की फसल एक रुपये/किलोग्राम से भी कम पर बिकी क्योंकि सरकार इसकी खरीद और सितंबर से जनवरी तक लीन सीजन के लिए इसका बफर स्टॉक बनाने में नाकाम रही. वहीं, किसानों ने घरेलू स्तर पर जो भंडारण किया उसे भारी बारिश ने खराब कर दिया.’

दिप्रिंट ने इस महीने की शुरुआत में ही बताया था कि सरकार ने पिछले साल मूल्यवृद्धि के बाद अपना बफर स्टॉक लक्ष्य लगभग 1 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया था, लेकिन अब तक, यह केवल 45,000 मीट्रिक टन की ही खरीद कर पाई है.

महाराष्ट्र में नेफेड (नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया) के निदेशक नाना साहेब पाटिल ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल कोविड-19 के कारण लॉकडाउन ने खरीद प्रक्रिया को प्रभावित किया है.

उन्होंने बताया, ‘बफर स्टॉक में रखी जाने वाली प्याज की फसल मार्च-अप्रैल में तैयार होती है, और उस दौरान, श्रमिकों की कमी और लॉकडाउन के कारण बाजारों की बंदी ने खरीद प्रक्रिया को प्रभावित किया.’


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पाटिल ने यह भी कहा कि सरकार का एक लाख मीट्रिक टन प्याज खरीदने का लक्ष्य पूरा होने की संभावना ‘धूमिल’ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘मानसून शुरू होने के बाद प्याज की गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है जिससे यह खरीद और भंडारण के लायक नहीं रहता. ऐसे में इस साल 1 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य पूरा होने की संभावना कम है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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