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Friday, 22 November, 2024
होमदेशप्रमोद महाजन अमित शाह से पहले बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार और संकटमोचक थे

प्रमोद महाजन अमित शाह से पहले बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार और संकटमोचक थे

प्रमोद महाजन महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन के पीछे के व्यक्ति थे और माना जाता था कि पार्टी में बाल ठाकरे के एकमात्र विश्वासपात्र व्यक्ति थे.

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गृहमंत्री अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के मास्टर रणनीतिकार या आधुनिक-चाणक्य के रूप में जाना जाता है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने प्रभावी वक्तृत्व कौशल और दर्शकों को आकर्षित करने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं. हालांकि, लगभग दो दशक पहले एक व्यक्ति को दोनों का श्रेय एक साथ दिया गया था – एक मास्टर रणनीतिकार और एक सम्मोहक वक्ता.

यह प्रमोद महाजन थे, जो 2004 के राष्ट्रीय चुनाव अभियान में भाजपा के चुनाव प्रबंधक थे और महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन के पीछे का दिमाग भी थे साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी की दोनों सरकारों में केंद्रीय मंत्री थे. प्रमोद महाजन की उनके भाई प्रवीण ने 2006 में गोली मारकर हत्या कर दी थी.

उनकी 14वीं पुण्यतिथि पर दिप्रिंट याद कर रहा है कि आरएसएस के प्रचारक से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार के पद पर कैसे पहुंचे और कैसे उन्होंने पार्टी को डिजिटल युग में लाने में मदद की.

आरएसएस प्रचारक से केंद्रीय मंत्री तक

प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (वर्तमान तेलंगाना) में हुआ था, वे कम उम्र से ही आरएसएस के सदस्य थे, लेकिन 1970 और 1971 में इसके मराठी समाचार पत्र तरुण भारत  के उप-संपादक बनने पर सक्रिय रूप से शामिल हुए. महाजन ने पुणे में पत्रकारिता में अपने स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया.

1974 में, उन्होंने एक स्कूल शिक्षक के रूप में अपनी नौकरी छोड़ दी और एक पूर्णकालिक आरएसएस प्रचारक बन गए. आरएसएस में ही उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ, क्योंकि वह उस बैच का हिस्सा थे जिसे 1979 में भाजपा में शामिल होने के लिए चुना गया था और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.

1983 से 1985 तक वह पार्टी के अखिल भारतीय सचिव थे और फिर 1986 में अखिल भारतीय भारतीय युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने, यह पोस्ट अभी उनकी बेटी पूनम महाजन के पास है.

हालांकि, उनकी राष्ट्रवादी आकांक्षाएं थीं और उन्होंने एलके आडवाणी की रथ यात्रा में में मदद की. 1990 में आडवाणी की रथयात्रा ने उनके गृह राज्य महाराष्ट्र की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह महाजन ही थे, जो 1995 में शुरू हुए शिवसेना-भाजपा गठबंधन के पीछे मास्टरमाइंड थे. उन्होंने यह गठबंधन सुनिश्चित किया कि इसने कई राजनीतिक तूफानों का सामना किया. एक रिपोर्ट के अनुसार वह भाजपा में एकमात्र व्यक्ति थे जिस पर बाल ठाकरे ने भरोसा किया था.

‘ऑल-पर्पस मैन’ और पार्टी के व्यावहारिक चेहरे के रूप में संदर्भित महाजन को 1996 में वाजपेयी की 13-दिन की सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया और जब 1998 में पार्टी सत्ता में लौटी तो उन्हें सूचना और प्रसारण और खाद्य प्रसंस्करण विभाग दिया गया. एक साल बाद उन्हें संसदीय मामलों और जल संसाधन में ले जाया गया और फिर अंततः संसदीय मामलों के साथ-साथ केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला.

मास्टर रणनीतिकार और डिजिटल के अनुकूल

एक ऐसी पार्टी जिसमें कई पुराने नेता थे, उसमें महाजन को बीजेपी का टेक्नोक्रेट कहा जाता था. महाजन ने उन लोगों को डिजिटल युग को अपनाने में मदद की. इंडिया टुडे के एक लेख में कहा गया है, ‘विवादों से उनका नाता नहीं था, व्यक्तिगत खामियां उन्हें रोक नहीं कर सकती थी, राजनीतिक विफलताएं उन्हें रोक नहीं सकती हैं और मीडिया के अनुकूल विनम्रता निश्चित रूप से उनका ट्रेडमार्क नहीं है. उन्होंने राजनीति को दिलचस्प बना दिया है और भाजपा को डिजिटल युग के साथ और अधिक सुसंगत बना दिया था.’

2004 के राष्ट्रीय चुनावों में पार्टी की हार के तुरंत बाद महाजन महाराष्ट्र के लिए चुनाव प्रचार में वापस आ गए थे. उन्होंने एक टेक्नोक्रेट के रूप में अपनी छवि को बनाया और डोर-टू-डोर अभियान पर चले गए और उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिस तरह से लोग आज नरेंद्र मोदी के बारे में बोलते हैं. उस समय बरखा दत्त के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनके पास ‘हिम्म्त मत हारो’ वाला रवैया है और पेशेवर रूप से चुनावों का सामना किया, जिस तरह से एक चुनाव लड़ने वाला करता है.

साक्षात्कार में यह भी दिखाया गया कि पत्रकारिता में उनकी डिग्री ने उनकी राजनीति को कैसे प्रभावित किया और वह कितना डिजिटल रूप से जानकार थे, जब उन्होंने अपने कर्मचारियों को पोहा बॉक्स को फेंकने के लिए नहीं कहा, तो उन्होंने उसे अपने शॉट (वीडियो पैकेज) की आवश्यकता के रूप में पेश किया.

दुखद अंत

महाजन उन कुछ राजनेताओं में से एक थे, जिन्होंने 2004 के हार की पूरी जिम्मेदारी ली थी, फिर भी उन्हें संकटमोचक के रूप में देखा गया और वाजपेयी और आडवाणी दोनों के करीबी सहयोगी थे. 2003 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के लिए उन्हें पहले ही श्रेय दिया गया था और एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सर्वसम्मति बनाने का श्रेय दिया गया था.

22 अप्रैल 2006 को महाजन के बड़े भाई प्रवीण ने उनके अपार्टमेंट में प्रवेश किया और उन्हें तीन बार गोली मारी. वह नौ गोलियों को चला नहीं सके क्योंकि चौथी गोली जाम हो गई थी. झगड़े का कारण एक व्यक्तिगत विवाद था- प्रवीण ने पुलिस को बताया कि उसने प्रमोद को उसके द्वारा किए गए अपमान का बदला लेने के लिए गोली मार दी. उन्होंने महाजन को अपने जीवन का अभिशाप भी कहा और कहा कि उन्होंने आर्थिक रूप से उनका समर्थन करने के लिए कुछ नहीं किया. महाजन लगभग एक 15 दिन तक जूझते रहे लेकिन 3 मई को उनकी मृत्यु हो गई. उस समय उनकी उम्र 56 साल थी.

उनकी मृत्यु के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘देश ने एक कुशल संगठनकर्ता , वक्ता और अपने युवाओं का एक प्रतिभावान प्रतिनिधि खो दिया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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1 टिप्पणी

  1. बेहद घटिया अनुवाद….

    what the meaning….one can get from these lines
    इंडिया टुडे के एक लेख में कहा गया है, ‘विवादों से उनका नाता नहीं था, व्यक्तिगत खामियां उन्हें रोक नहीं कर सकती थी, राजनीतिक विफलताएं उन्हें रोक नहीं सकती हैं और मीडिया के अनुकूल विनम्रता निश्चित रूप से उनका ट्रेडमार्क नहीं है. उन्होंने राजनीति को दिलचस्प बना दिया है और भाजपा को डिजिटल युग के साथ और अधिक सुसंगत बना दिया था.’

    राष्ट्रीय राजनीति में आने की आकांक्षा और राष्ट्रवादी आकंक्षा में फर्क नहीं पता….अरे राष्ट्रवादी होने का दावा तो पूरी BJP का है…..Without this u can’t survive in BJP…..Well someone has to monitor…

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