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Monday, 6 May, 2024
होमदेशआप सरकार की लापरवाही की वजह से निर्भया को करना पड़ रहा है इंसाफ का इंतजार- जावड़ेकर

आप सरकार की लापरवाही की वजह से निर्भया को करना पड़ रहा है इंसाफ का इंतजार- जावड़ेकर

जावड़ेकर ने कहा, निर्भया मामले में मौत की सजा के खिलाफ दोषियों की याचिका को उच्चतम न्यायालय द्वारा 2017 में खारिज किए जाने के ढाई साल बाद भी दिल्ली सरकार ने उन लोगों को नोटिस नहीं भेजा जिसकी वजह से आज यह देरी हो रही है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के दोषियों को फांसी देने में देरी का कारण ‘आप’ सरकार की लापरवाही बताया है. उन्होंने कहा कि निर्भया मामले में मौत की सजा के खिलाफ दोषियों की याचिका को उच्चतम न्यायालय द्वारा 2017 में खारिज किए जाने के ढाई साल बाद भी दिल्ली सरकार ने उन लोगों को नोटिस नहीं भेजा जिसकी वजह से आज यह देरी हो रही है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पत्रकारों से कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के एक हफ्ते के भीतर सभी दोषियों को अगर आप सरकार ने नोटिस दे दिया होता तो अब तक उन्हें फांसी हो चुकी होती और देश को इंसाफ मिल चुका होता.

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली सरकार ने बुधवार को निर्भया दुष्कर्म और हत्या मामले में मौत की सजा पाए चार दोषियों में से एक मुकेश की दया याचिका खारिज करने की सिफारिश की और उसे ‘बिजली की गति’ से उपराज्यपाल के पास भेज दिया.

दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय को यह भी सूचित किया कि दोषियों को 22 जनवरी को फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा क्योंकि उनमें से एक मुकेश ने दया याचिका दायर की है.

चारों दोषियों मुकेश (32), विनय शर्मा (26), अक्षय कुमार सिंह (31) और पवन गुप्ता (25) को तिहाड़ जेल में 22 जनवरी की सुबह सात बजे फांसी दी जानी थी. चारों दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा पर अमल के लिए दिल्ली की एक अदालत ने सात जनवरी को आदेश जारी किया था.

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फांसी टालने की दोषियों की तिकड़मों पर अदालत नाराज

बता दें कि बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या कांड के चार दोषियों द्वारा उन्हें फांसी पर लटकाए जाने की प्रक्रिया को टालने के लिए अपनाई गई रणनीति पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी और कहा था कि तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है.

न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा की पीठ ने दोषी मुकेश कुमार के अधिवक्ता से सवाल किया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज किए जाने और सत्र अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखने के बावजूद वह ढाई साल तक इंतजार क्यों कर रहा था? उसने सुधारात्मक और दया याचिकाएं दायर क्यों नहीं की?

अदालत ने सात जनवरी को सत्र अदालत की ओर से जारी मौत के वारंट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए कहा कि निचली अदालत के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं है क्योंकि आदेश की तारीख तक किसी दोषी ने सुधारात्मक या दया याचिका दायर नहीं की थी.

दोषी मुकेश ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि मौत के वारंट को पालन के लिए अयोग्य करार दिया जाए क्योंकि उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है.

पीठ ने कहा कि यह दोषियों की तिकड़म है कि वह उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी अपील खारिज होने के बावजूद चुप करके बैठे रहे.

पीठ ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने पांच मई, 2017 को आपकी विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी और मौत की सजा पर मुहर लगा दी थी. फिर आपको सुधारात्मक याचिका दायर करने से किसने रोका? आप चुप बैठ कर ढाई साल से इंतजार कर रहे थे?’

उसने कहा, ‘ऐसा सिर्फ चालाक कैदी करते हैं. वह मौत का वारंट जारी होने तक इंतजार करते रहते हैं और जैसे ही वारंट जारी होता है उसे चुनौती दे देते हैं. याकुब अब्दुल रज्जाक मेमन मामले के फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि दोषी को तर्क पूर्ण समय सीमा में सुधारात्मक याचिका दायर करनी चाहिए.’

पीठ ने कहा कि सुधारात्मक याचिका दायर करने की आपकी तर्कपूर्ण समय की सीमा पांच मई, 2017 को उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी याचिकाएं खारिज किए जाने के साथ शुरू हो गई थी. ना कि 18 दिसंबर, 2019 से जब तिहाड़ जेल प्रशासन ने चारों दोषियों को दया याचिका दायर करने का नोटिस भेजा.

पीठ ने कहा कि जुलाई 2019 में ही शीर्ष अदालत ने मुकेश की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन आगे के कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल अब किया जा रहा है.

जेल अधिकारियों की खिंचाई करने के अलावा अदालत ने मुकेश द्वारा देर से सुधारात्मक और दया याचिका दायर किए जाने पर अप्रसन्नता जताई. उसने कहा कि मई 2017 में ही सभी याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं, ऐसे में देरी क्यों?

पीठ ने दोषियों को दया याचिका के विकल्प के संबंध में देर से सूचित करने को लेकर जेल अधिकारियों की खिंचाई की.

जेल अधिकारियों ने दोषियों को 29 अक्टूबर और 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर सूचित किया था कि अब वे दया याचिका दायर कर सकते हैं.

अदालत ने कहा, ‘अपने घर को दुरुस्त करें.’

पीठ ने कहा, ‘आपके घर की हालत ठीक नहीं है. दिक्कत यह है कि लोगों का तंत्र से भरोसा उठ जाएगा. चीजें सही दिशा में नहीं जा रही हैं. तंत्र का दुरुपयोग किया जा सकता है और हम व्यवस्था का दुरुपयोग करने का तिकड़म देख रहे हैं, जिसे इसकी खबर ही नहीं है.’

इस पर दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पीठ को बताया कि चूंकि दोषियों में से एक अक्षय ने 2019 तक अपनी समीक्षा याचिका दायर नहीं की थी और उस पर 18 दिसंबर को फैसला हुआ, इसलिए देरी हुई.

अन्य तीन दोषियों की समीक्षा याचिकाएं जुलाई 2018 में ही खारिज हो चुकी थीं.

अदालती सुनवाई पूरी होने के बाद मुकेश की वकील रेबेका जॉन्सन ने कहा,‘मैं कोई खेल नहीं खेल रही. मैं किसी मंच का चुनाव नहीं कर रही हूं. मैं अन्य तीन दोषियों के बारे में कुछ नही कह सकती.’

(भाषा के इनपुट्स के साथ)

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