scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशपोरबंदर के गैंगस्टरों के लिए सत्ता ही एकमात्र स्थाई चीज़ है- पहले यह बंदूकों से मिलती थीं, अब राजनीति से

पोरबंदर के गैंगस्टरों के लिए सत्ता ही एकमात्र स्थाई चीज़ है- पहले यह बंदूकों से मिलती थीं, अब राजनीति से

पोरबंदर के गैंग वार ने हमेशा के लिए इस तटीय शहर के साथ एक ऐसी विडंबना को जोड़ दिया जो अब एक घिसी पिटी सी बात बन गयी है- महात्मा गांधी के जन्मस्थान के पास सुनाने के लिए अपनी एक हिंसक गाथा है.

Text Size:

कमर से लटकी हुई एक तीन फुट की तलवार लेकर कमरे में एक भीमकाय सा शख़्श प्रवेश करता है. उनका नाम – भीमा दुला – उनके शरीर का पर्यायवाची ही लगता है.

लेकिन डरिये मत. यह सच है कि इस शख्स को एक दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया गया था और उसे 44 अन्य मामलों में भी आरोपी बनाया गया था, लेकिन गुजरात के पोरबंदर के इस ‘डरावने’ गैंगस्टर का दावा है कि वह अब एक सुधरे हुए व्यक्ति हैं. उनका कहना है कि वह अपने जीवन के आख़िरी सालों को एक भगवान से डरने वाले व्यक्ति के रूप में बिता रहे हैं, मगर गुजरात में आगामी विधानसभा चुनाव सहित कई मामलों में अब भी उनकी पूरी-पूरी दखल है.

दुला, पोरबंदर, जो 80 और 90 के दशक के दौरान गिरोहों के बीच होने वाले युद्ध (गैंग वार) का मैदान बन गया था, के अभी भी जीवित बचे कुछ गैंगस्टरों में से एक है. यह गैंग वार मुख्य रूप से वाघेर (कच्छ से आने वाले) और मेरो (राजपूतों) के बीच के एक जातीय संघर्ष की वजह से उभरा था.

और हालांकि इस तटीय शहर में अब उस तरह से गोलियां नहीं चलती, मगर पूर्ववर्ती आपराधिक परिवारों का यहां होने वाले हर चुनाव पर प्रभाव पड़ता है. यह एक बड़े-दांव वाला खेल है, जिसमें अपने गले में रुद्राक्ष की माला लपेटे और राम और कृष्ण की भक्ति के उनके दावों के बावजूद दुला का भी बहुत कुछ हिस्सा है.

दुला इकलौता ऐसा रिटायर्ड गैंगस्टर नहीं हैं, जिसका इस चुनाव के नतीजों में कुछ दांव पर लगा है. पोरबंदर में ‘गैंगस्टर संस्कृति’ की स्थापना करने वाले शख्सों में से एक सरमन मुंजा के बेटे कंडल जडेजा फिलहाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की तरफ से कुटियाना से विधायक हैं. कुटियाना विधानसभा सीट पहले साल 1998 से लेकर साल 2008 तक दुला के भाई के पास थी. दुला का परिवार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़ा है.

बीजेपी सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री और 54 करोड़ रुपये के अवैध चूना-पत्थर खनन मामले में दोषी ठहराए गए पोरबंदर विधायक बाबूभाई बोखिरिया रिश्ते में दुला के साले हैं.

पोरबंदर में गरजती बंदूकें भले ही खामोश हो गयी हों, लेकिन अभी भी जबर्दस्त आपसी रंजिश है जो राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्र में सामने आती रहती है. हालांकि, इन पूर्व गैंगस्टरों में राजनेताओं जैसी चालबाजी की कमी है.

बोखिरिया ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘मैंने पहले ही पोरबंदर में सभी मुद्दों का बखूबी ध्यान रखा है, यहां किसी भी चीज़ को हल करने की आवश्यकता नहीं है.’

कांधल जडेजा के कुटियाना निर्वाचन क्षेत्र में ही एक मुस्लिम बहुल गांव गोसाबारा पड़ता है, जहां के निवासियों का आरोप है कि धार्मिक भेदभाव, आस्था और मछली का पकड़ने का व्यवसाय आपस में टकरा रहे हैं. मुस्लिम ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें मछली पकड़ने के लिए जाने नहीं दिया जाता. इस बारे में जडेजा कहते हैं कि उन्होंने गांव के प्रतिनिधियों से बात की थी, लेकिन अब उन्होंने इस मुद्दे से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं. वे कहते हैं – ‘आपको डीएम (जिलाधिकारी) से ये सारे सवाल पूछने चाहिए. इनमें मैं क्या कर सकता हूं?’

यही सारे टकराव चुनावी मौसम में एक बार फिर वापस आएंगे और पोरबंदर के गैंगस्टर से राजनेता बने शख़्शों को बाहुबल से भी ज्यादा मजबूत एक चीज़ का सामना करना पड़ेगा, और वह है लोगों के वोट.


यह भी पढ़ें: टूटी सड़कें, गंदी नालियां- गुजरात में नहीं बदल पाई ‘सूरत’ तो दिल्ली मॉडल का राग अलाप रही है AAP


गैंगस्टर और लैंडमार्क्स

पोरबंदर में, भूतपूर्व डॉनस के आवास स्थानीय लैंडमार्क्स की तरह हैं. अपने एकांत में बने घर के भीतर नारियल के पेड़ों से घिरे हुए दुला ताज़े आम से बने मिल्कशेक के गिलास का घूंट भरते हुए एक गैंगस्टर के रूप में अपने उन दिनों को याद करते हैं, जब वह अवैध शराब की तस्करी और भूमि विवादों को सुलझाने जैसे काम किया करते थे.

हालांकि, उनके रिटायर (सेवानिवृत्त) होने और सुधर जाने के बाद से उन्होंने खुद को एक परोपकारी ‘बड़े भाई’ के रूप में फिर से स्थापित किया है जिसके पास मेर समुदाय के लोग सलाह के लिए आते हैं. वह थोड़े-थोड़े मार्लन ब्रैंडो के निभाए पात्र ‘डॉन कोरलियोन’, एक ऐसा गॉडफादर जिस पर उसके लोगों द्वारा सब कुछ सही करने के लिए भरोसा किया जा सकता था, की तरह लगते हैं. लेकिन असली डॉन की तरह उनके पास कोई बिल्ली नहीं है.

दुला याद करते हुए कहते हैं कि उनके सुनहरे दिनों में पोरबंदर चूना-पत्थर, सोना और कोयले के साथ-साथ अन्य वस्तुओं की तस्करों का अड्डा था, जिनकी स्थानीय गिरोह निगरानी और व्यवस्था करते थे.

पोरबंदर के गैंग वार ने हमेशा के लिए इस तटीय शहर के साथ एक ऐसी विडंबना को जोड़ दिया जो अब एक घिसी पिटी सी बात बन गयी है- महात्मा गांधी के जन्म स्थान के पास सुनाने के लिए अपनी एक हिंसक गाथा है.

पोरबंदर के गैंग वॉर

ये गैंग वार एक जातीय संघर्ष के साथ शुरू हुए थे, जिसकी शुरुआत उस घटना से जोड़ी जा सकती है जिसके तहत 1960 के दशक में महाराणा मिल्स के मालिक नंजीभाई कालिदास मेहता ने पोरबंदर में बग़ावत पर उतारू मजदूरों को काबू में लाने के लिए दो भाइयों, देवू और करसन वाघेर, को काम पर रखा था. द्वारका और ओचा में केंद्रित कच्छी वाघेर समुदाय के इन दो प्रवासी भाइयों को पोरबंदर की श्रम शक्ति माने जाने वाले स्थानीय निवासी मेर समुदाय द्वारा तिरस्कृत भाव से देखा जाता था.

हालात इतने खराब हो चुके कि एक परिवहन कर्मचारी और दूधिए के रूप में काम करने वाला सरमन मुंजा हिंसक पोरबंदर को हमेशा के लिए छोड़ने के लिए तैयार हो चुका था. लेकिन किस्मत ने तो उसके लिए कुछ और ही तय कर रखा था. एक दिन उसका देवू से झगड़ा हो गया और उसने अपने चाचा की मदद से उसे मार डाला. कुछ दिनों बाद देवू का दूसरे भाई करसन एक पेड़ से लटका पाया गया.

इसके साथ ही एक दूधवाले से एक डॉन के रूप में मुंजा के कायापलट का काम पूरा हो गया था. उसने पूरी दबंगई के साथ शासन किया, पोरबंदर में एक समानांतर न्याय प्रणाली चलाई और मेर समुदाय के बीच उसका रॉबिनहुड के रूप में जयजयकार किया गया. उसने कथित तौर पर 47 लोगों की हत्या की थी.

इसी हिंसक रास्ते के किसी मोड़ पर उसकी मुलाकात स्वाध्याय परिवार के संस्थापक पांडुरंग शास्त्री से हुई. मुंजा ने हिंसा छोड़ने का संकल्प लिया. लेकिन कुछ ही समय बाद 1986 में उसे मार गिराया गया.

लेकिन अपने लगभग अशोक जैसे ज्ञानोदय(एनलाइटनमेंट) से पहले किए गये मुंजा के कारनामों ने एक और सरगना, मम्मुमियन पंजुमियान को जन्म दिया, जिसे बाद में पोरबंदर बंदरगाह पर आरडीएक्स और हथियारों की तस्करी के लिए दोषी ठहराया गया और साढ़े बारह साल जेल की सजा सुनाई गई. इसी आरडीएक्स का इस्तेमाल 1993 के मुंबई (तब बॉम्बे) सीरियल बम विस्फोट को अंजाम देने के लिए किया गया था.

मम्मुमियन मुस्कुराते हुए कहता है, ‘सरमन मुंजा ने मेरे भाई को मार डाला था. मैं अपने भाई के साथ जो कुछ हुआ उसका बदला लेना चाहता था, लेकिन अल्लाह बड़े ही मजाकिया तरीके से काम करता है. मेरे उस तक पहुंचने से पहले ही सरमन को गोली मार दी गई.’

पंजुमिया का कहना है कि गैंगस्टर वाले जीवन में आने के कुछ समय बाद ही वह दाऊद इब्राहिम के संपर्क में आया और इसी डॉन के इशारे पर उसने शराब की तस्करी शुरू कर दी.

आरडीएक्स मामले – जिसके बारे में उसका दावा है कि उसे इसमें फंसाया गया था – में अपनी सजा पूरी करने के बाद, अब 68 वर्षीय पंजुमिया का भी कहना है कि उसने हिंसा छोड़ दी है. यह उसके रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) के लिए बुरा है. इसके बजाय, वह दिन में पांच दफे नमाज़ पढ़ता है और रोजाना हाज़िरी लगाने के लिए पुलिस स्टेशन जाता है.

हालांकि मुंजा की हत्या से पोरबंदर में बदला लेने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ था. बल्कि यह तो वह चिंगारी थी जिसने पोरबंदर को आग की लपटों में धकेल दिया था. उसकी जगह उसकी विधवा पत्नी संतोकबेन ने कमान संभाली और उसकी क्राइम सिंडिकेट चलाई. इसके बाद 30 लोग मारे गए थे. बदले की भावना ने आग को हवा दी और एक दशक के भीतर संतोकबेन के आदमियों ने उसके पति की हत्या के सभी छह आरोपियों, जिसमें प्रतिद्वंद्वी गिरोह का मालिक कला केशव भी शामिल था, को मार डाला.

संतोकबेन, जिसकी जीवन गाथा को 1999 की बायोपिक गॉडमदर (शबाना आज़मी द्वारा अभिनीत) में नाटकीय रूप से चित्रित किया गया था, कोई डरपोक विधवा नहीं थी. वह एक चतुर प्रशासक थीं, जिसने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राजनीति में भी प्रवेश किया था.

90 के दशक में उसके राज के दौरान उसका गिरोह 900 से अधिक मामलों में वांछित था, मगर इनमें से सिर्फ़ नौ मामलों में उसे आरोपी बनाया गया था.


यह भी पढ़ें: अजमल कसाब को तो 10 साल पहले फांसी हो गई, पर MV कुबेर नौका आज भी मालिक के गले की फांस बनी है


1995 में क्या हुआ था?

साल 1995 पोरबंदर की आपराधिक दुनिया (अंडरवर्ल्ड) के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ (टर्निंग पॉइंट) था. एक बाद एक आने जाने वाली कांग्रेस और जनता पार्टी की सरकारों के बाद गुजरात में बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ, और प्रदेश को पहली बार भाजपा का मुख्यमंत्री मिला.

जैसे-जैसे राजनीतिक संरक्षण कम होता गया, संतोकबेन ने अपना सारा कारोबार राजकोट में स्थानांतरित कर दिया. उनके द्वारा छोड़े गए शून्य को भीमा दुला ने भरा, जिसे भाजपा का समर्थन प्राप्त था. जब भाजपा ने ‘गॉडमदर’ संतोकबेन की काट ढूंढ़नी चाही तो वह सत्ता में उभर कर आया. सरमन मुंजा के बेटे कंधल जडेजा ने भी अपने आप से काफ़ी अच्छा किया है. वह राइफलधारी पुरुषों द्वारा संरक्षित एक भव्य घर में रहते हैं, और 2012 से ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर कुटियाना के विधायक हैं. अपने परिवार की विरासत के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, ‘मेरा एक सामान्य सा परिवार था.’

दुला उन मुट्ठी भर गैंगस्टरों में से एक है जो बिना किसी दिखाई देने वाले जख्म के निशान के बुढ़ापे तक बचे हुए हैं. उनके कई साथी जेल में हैं या इसके बाहर बढ़ती उम्र के कहर से जूझ रहे हैं. नरेन सुदा वाघेर, एक अन्य गिरोह का पूर्व मालिक, आंशिक रूप से लकवाग्रस्त है. आज, वह अपने परिवार और दो कुत्तों के साथ एक घर में रहता है, जो महात्मा गांधी के घर कीर्ति मंदिर से कुछ ही दूरी पर है.

उसका परिवार वर्तमान में पोरबंदर बंदरगाह पर खनिजों, विशेष रूप से चूना-पत्थर के लादने और उतारे जाने (लोडिंग आंड अनलोडिंग) की देख-रेख करता है. नरेन सुदा ने अपने चाचा के साथ मिलकर पोरबंदर में शराबबंदी के मद्देनज़र अवैध शराब की तस्करी करने वाला पहला खारवा गिरोह खड़ा किया था.

उम्र की वजह से कमजोर हो चुके सुदा की इस इलाक़े के सबसे क्रूर गिरोहों में से एक के नेता के रूप में कल्पना करना भी कठिन है. उन्हें नगर निगम का पार्षद भी चुना गया था, और कहा जाता है कि उनके लोगों ने पोरबंदर के स्थानीय शासन निकाय पर एकाधिकार जमा लिया था. कड़क सफेद कमीज और बेल-बॉटम पैंट पहने, सुदा ने अपने आदमियों पर बड़ी कड़ाई के साथ शासन किया था. उसकी यह सार्टोरियल स्टाइल (वेश-भूषा की शैली) दिवंगत अभिनेता विनोद खन्ना से प्रेरित थी.

आज के दिन सुदा पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ हिरासत में यातना का एक मामला लड़ रहे है. यह वही संजीव भट्ट हैं जिन्होने 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. सुदा को साल 1998 में तस्करी के आरडीएक्स और हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे इस मामले में बरी कर दिया गया था. उसने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे बेटे और मुझे पुलिस ने उठाया और जानकारी के लिए प्रताड़ित किया. उन्होंने हमें नंगे बदन पीटा और हाई-वोल्टेज बिजली के झटके दिए.’

पोरबंदर के गैंगस्टर परिवारों के बीच पुरानी यादें अभी भी गहरी हैं, और हालांकि इस तटीय शहर में फिलहाल शांति है, फिर जो इसे वहन कर सकते हैं, वे सुनिश्चित करते हैं कि वे अच्छी तरह से संरक्षित रहें और राजनीतिक संरक्षण की चाह में रहते हैं.

लोकनीति सीएसडीएस की गुजरात राज्य समन्वयक महाश्वेता जानी का मानना है कि माफिया केवल निष्क्रिय हुआ है, उसे अभी मिटाया नहीं जा सका है. पुलिस भी इस ‘शांति’ को लेकर चौकस है. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘इस तरह के एक शहर में, इसके हिंसक इतिहास और व्यापार के अनुकूल स्थान होने की वजह से, मुझे विश्वास नहीं है कि यह इतना शांत हो सकता है. शायद कोई तूफान आ रहा है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: खुद से शादी करने को तैयार गुजरात की क्षमा बिंदु लेकिन पुजारी, परिवार और नेता नाराज


 

share & View comments