चंडीगढ़: पंजाब एक गंभीर बिजली संकट की ओर बढ़ता दिख रहा है, चूंकि एक महीने से सूबे में मालगाड़ियां न चलने से, बिजली घरों में कोयले का स्टॉक ख़त्म हो रहा है.
इसके अलावा, गेंहूं और आलू की फसल बोने के लिए, राज्य के सामने फर्टिलाइज़र्स की भी भारी कमी है.
पिछले एक महीने से राज्य में, यूरिया या डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) न आने से, जो सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला फॉस्फोरस फर्टिलाइज़र है, कृषि अधिकारियों को डर है कि शुरू दिसंबर में, नई फसल को पानी देने के बाद, जब पहली बार फर्टिलाइज़र देने का समय होगा तो इसकी भारी क़िल्लत हो सकती है.
मालगाड़ियों के न चलने से धान और चावल के ख़ोल के भंडारण के लिए, जूट के बोरों की भी कमी हो गई है और साथ ही अनाज के विशाल ढेर खड़े हो गए हैं, जिसे राज्य से बाहर भेजा जाना है.
स्थिति ‘चिंताजनक’ क्यों है
लगभग एक महीने से राज्य के अंदर कोयला बिल्कुल न आने से, दो सरकारी और तीन निजी पावर प्लांट्स, जो तकरीबन 5,000 मेगावॉट बिजली पैदा करते हैं, कोयले की गंभीर कमी से दो-चार हैं.
पंजाब स्टेट पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक, ए वेणुप्रसाद ने दिप्रिंट को बताया, ‘निजी प्लांट जीवीके की अकेली और आख़िरी यूनिट, जो अभी तक चल रही थी, मंगलवार को बंद हो जाएगी, जिसके बाद हम अपने दो सरकारी प्लांट्स चलाएंगे. लेकिन हमारे पास जो कोयला है वो ज़्यादा दिन नहीं चलेगा. आज 1,000 मेगावॉट बिजली की कमी है, और हमने एक पावर कट ऑर्डर किया है’.
उन्होंने ये भी कहा कि संकट से निपटने के लिए, पिछले तीन दिन से उनका सूबा केंद्रीय ग्रिड से बिजली ख़रीद रहा है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘लेकिन, वित्त विभाग ने (रविवार को) हमें और बिजली ख़रीदने के लिए, पैसा देने में असमर्थता जताई है. स्थिति चिंताजनक है’.
इस सूबे में 2 अक्तूबर से मालगाड़ियां नहीं चल रही हैं, जब नरेंद्र मोदी सरकार के नए कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों ने, अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू किया था.
हालांकि विरोध कर रहे किसानों के अधिकतर संगठनों ने, 23 अक्तूबर को अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, लेकिन उनमें से कुछ, इन क़ानूनों के विरोध में, अभी भी पटरियों पर बैठे हैं.
रेलवे ने साफ कर दिया है कि जब तक, सभी पटरियां साफ नहीं होतीं, और ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक मालगाड़ियां नहीं चलेंगी.
रेलवे प्रवक्ता दीपक कुमार ने सोमवार को दिप्रिंट से कहा, ‘मालगाड़ियां तब तक पंजाब नहीं जाएंगी, जब तक आंदोलनकारी किसान पटरियों को पूरी तरह साफ नहीं कर देते’.
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रविवार को, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक खुला पत्र लिखकर, किसानों के रेल नाकाबंदी में ढील देने के बाद भी, रेलवे द्वारा मालगाड़ियों का संचालन निलंबित रखे जाने पर चिंता जताई है.
इससे पहले, मुख्यमंत्री ने पंजाब में मालगाड़ी सेवा बहाल करने के लिए केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था.
यूरिया पंजाब नहीं पहुंच रहा
यूरिया आमतौर पर ट्रेनों के ज़रिए राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात से होते हुए पंजाब पहुंचता है. अब ये ट्रकों के ज़रिए धीरे धीरे, हरियाणा के अंबाला और डाबवाली से होते हुए राज्य में पहुंच रहा है.
पंजाब में, 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं बोया जाता है और रबी सीज़न के लिए कुल 14 लाख टन यूरिया की मांग है. सीज़न के दौरान राज्य में 5 लाख टन डीएपी भी इस्तेमाल किया जाता है.
पंजाब के प्रमुख सचिव, कृषि, अनिरुद्ध तिवारी ने कहा, ‘अक्टूबर महीने में चार लाख टन यूरिया आना था, लेकिन सिर्फ 50,000 टन ही पहुंच पाया है’.
इस महीने के लिए राज्य के पास, 4 लाख मीट्रिक टन यूरिया का एक और आवंटन है.
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बाहर भेजे जाने के इंतज़ार में अनाज भंडार
पंजाब को अनाज के उस विशाल भंडार की चिंता भी सता रही है, जिसे राज्य से बाहर भेजा जाना है.
वेयरहाउसों और खुली जगहों में रखा हुआ, क़रीब 137 लाख मीट्रिक टन गेहूं, पंजाब से बाहर भेजे जाने के इंतज़ार में है. इसमें तक़रीबन 30 लाख मीट्रिक टन गेहूं वो भी है, जो 2018-19 में ख़रीदा गया था.
ख़रीदे गए गेहूं को पंजाब से बाहर, गेहूं का उपभोग करने वाले राज्यों को भेजा जाना है.
खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग, पंजाब के डिप्टी डायरेक्टर डॉ अंजुमन भास्कर ने कहा, ‘अकेले अक्टूबर में, हम क़रीब 20 लाख मीट्रिक टन गेहूं बाहर नहीं भेज पाए’.
इसी तरह, इस सीज़न में भारतीय खाद्य निगम द्वारा ख़रीदा गया, 57 लाख एमटी से अधिक चावल भी, बाहर भेजे जाने के इंतज़ार में है.
भास्कर ने कहा कि इसके अलावा, पिछले महीने ख़रीदा गया 185 लाख एमटी धान भी, चावल निकालकर स्टोर किया जाना है. एक बार वो हो जाए, तो फिर राज्य के पास भंडारण के लिए जगह नहीं बनेगी.
दिल्ली में फंसे टाट के बोरे
ख़रीदे गए धान और निकाले गए चावल को, स्टोर करने में इस्तेमाल होने वाले टाट के बोरे, पंजाब में पश्चिम बंगाल से आते हैं.
1,150 कंटेनर्स जिनमें हर एक में 48 बेल्स होती हैं (हर बेल में 500 बोरे होते हैं), अक्टूबर से दिल्ली में अटके हुए हैं.
भास्कर ने कहा, ‘चूंकि पंजाब सरकार ने इन बोरों के डिलीवरी प्वाइंट्स तक ढुलाई का भुगतान पहले ही कर दिया है, इसलिए बोरों को राज्य में लाने का हम कोई वैकल्पिक बंदोबस्त नहीं कर सकते’.
ख़रीद के दौरान, जब धान को शेलिंग के लिए भेजा जाता है, और ख़रीद एजेंसियां निकाले हुए चावल को ख़रीदती हैं, तो आमतौर से 50 प्रतिशत बोरे सरकार की ओर से दिए जाते हैं, और बाक़ी का बंदोबस्त शेलर्स करते हैं.
भास्कर ने कहा, ‘लेकिन, इस बार…शेलर्स को 70 प्रतिशत टाट के बोरों का प्रबंध करना है, जबकि बाक़ी का इंतज़ाम सरकार करेगी. लेकिन चावल निकालने वालों को भी टाट के बोरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है…’.
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