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Thursday, 25 April, 2024
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‘महंगी, कम रेंज और चार्जिंग’- भारतीयों को EV से दूर करने की वजह, अब लक्ष्य 2030 की राह हुई कठिन

इंडियन वेंचर एंड अल्टरनेट कैपिटल एसोसिएशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रदर्शन तो अच्छा है लेकिन चार्जिंग में लगने वाले अधिक समय और महंगी बैटरी के कारण सरकार की महत्वाकांक्षाएं प्रभावित हो सकती हैं.

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नई दिल्ली: इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) ने भारतीय ऑटो मोबाइल उद्योग में उत्साह तो काफी बढ़ाया है. लेकिन भारत 2030 तक अपने ईवी टार्गेट को पूरा कर पाए, इसके लिए निर्माताओं को बिक्री में तेज वृद्धि दर्ज करानी होगी.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल कहा था कि इलेक्ट्रिक व्हीकल के मामले में 2030 तक सरकार का इरादा 30 प्रतिशत निजी कारों, 70 प्रतिशत वाणिज्यिक वाहनों और 80 प्रतिशत दोपहिया और तिपहिया वाहनों की बिक्री का है. हालांकि, कैपिटल इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे संगठन इंडियन वेंचर एंड अल्टरनेट कैपिटल एसोसिएशन (आईवीसीए) की तरफ से पिछले महीने जारी एक रिपोर्ट कहती है कि यह लक्ष्य कुछ ज्यादा ही ‘आक्रामक’ है.

आईवीसीए का यह आकलन आवश्यकता के अनुरूप चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर न होना, महंगी बैटरी और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर कम खर्च किए जाने जैसे तमाम फैक्टर पर आधारित है.

‘इलेक्ट्रीफाइंग इंडियन मोबिलिटी’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2027 तक बाजार में इलेक्ट्रिक व्हीकल की हिस्सेदारी कारों, दोपहिया और तिपहिया वाहनों में क्रमशः 4 प्रतिशत, 38 प्रतिशत और करीब 40 प्रतिशत से कम ही रह सकती है.

आईवीसीए ने यह रिपोर्ट प्रबंधन कंसल्टिंग फर्म ईवाई-पार्थनन और लीगल फर्म इंडस लॉ के सहयोग से तैयार की है.

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क्यों घटा इलेक्ट्रिक व्हीकल का क्रेज

इलेक्ट्रिक कारों की बात आती है, तो आईवीसीए रिपोर्ट कहती है कि मुख्यत: लो डिस्टेंस रेंज और सीमित विकल्पों के कारण लोग इसे अपनाने से कतरा रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बाजार में कुछ ही मॉडल उपलब्ध हैं. इसके अलावा, ये मॉडल लंबी दूरी तय करने में सक्षम नहीं है और चार्जिंग की स्पीड भी काफी कम है. आने वाले वर्षों में नए और बेहतर मॉडल उपलब्ध होने की उम्मीद है.’

इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार न बढ़ने का एक बड़ा कारण इसकी उच्च कीमतें भी हैं. अभी, सबसे सस्ती सामान्य आकार की इलेक्ट्रिक कार की कीमत कम से कम 12.49 लाख रुपये (औसत एक्स-शोरूम) है, जबकि एक पेट्रोल कार (सबसे सस्ती) की कीमत लगभग इससे एक-तिहाई है. पेट्रोल कार लगभग 3.8 लाख रुपये से शुरू होती हैं.

बैटरी महंगी होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इसमें विशेष धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है. इस संबंध में जून में नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि इसे कम नहीं किया गया तो देश में लोगों के इलेक्ट्रिक व्हीकल अपनाने पर खासा असर पड़ेगा.

‘दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ने पर पूर्वानुमान’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही बैटरी की लागत सालाना दो फीसदी घट जाए, लेकिन 2030 तक भारतीय सड़कों पर बमुश्किल 16-17 फीसदी दोपहिया वाहन इलेक्ट्रिक होंगे, और वह भी तब जब सरकार प्रोत्साहन देती रहे.

नीति आयोग के मुताबिक, दोपहिया ईवी अपनी सेगमेंट सेल्स में 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी तभी बना सकते हैं, जब बैटरी की कीमतें हर साल औसतन 8 प्रतिशत से अधिक की दर से कम हों और साथ ही साथ बैटरी की पॉवर और रेंज में सुधार होता रहे.

इस बीच, आईवीसीए रिपोर्ट, इलेक्ट्रिक व्हीकल बाजार के बढ़ने में चार बाधाओं का हवाला देती है. इसमें कहा गया है, ‘चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर ही वो नींव है जिस पर ईवी बाजार टिका है और भारत ने चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने और उसके उपयोग में तेजी के लिहाज से पर्याप्त विकास नहीं किया है, यह इलेक्ट्रिक व्हीकल के उत्पादन और बिक्री दोनों में एक बड़ी बाधा है.’

मौजूदा समय में देश में केवल 1,742 चार्जिंग स्टेशन हैं, यह संख्या 2027 तक 100,000 यूनिट तक पहुंचने की उम्मीद है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अक्षम बिजली वितरण प्रणाली ईवी चार्जिंग संबंधी बुनियादी ढांचे में अनिश्चितता बढ़ाती है. इसके मुताबिक, ‘चार्जिंग स्टेशनों की उपयोग दरों में अनिश्चितता, भारी परिचालन लागत, बिजली डिस्कॉम पर भार आदि फैक्टर चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने और निवेश को लेकर ऑपरेटर्स को हतोत्साहित करने वाला नकारात्मक माहौल बनाते हैं. खासकर भारतीय सड़कों पर पर्याप्त संख्या में इलेक्ट्रिक वाहन नहीं होने से उन्हें अपने निवेश को लेकर आशंका बनी हुई है.’

लिथियम-आयन बैटरी के उपयोग के ऐसी धातुओं और खनिजों की आवश्यकता होती है जो भारत में प्रचुर मात्रा में नहीं पाए जाते हैं और आयात बिल बढ़ा देते हैं, यह इस क्षेत्र की दूसरी बड़ी बाधा है. आईवीसीए के मुताबिक, इलेक्ट्रिक व्हीकल को चार्ज करने के लिए ऊर्जा के एक प्रमुख स्रोत के तौर पर रिसर्च एवं डेवलपमेंट के उपयोग पर कम खर्च किया जाना भी एक बाधा है.

वेंचर कैपिटल फर्म स्ट्राइड वेंचर्स के संस्थापक और प्रबंध भागीदार इशप्रीत गांधी के मुताबिक, इलेक्ट्रिक व्हीकल बाजार के खिलाड़ियों के लिए एक अप्रयुक्त अवसर है और इसमें निवेश की बड़ी गुंजाइश है.

गांधी के हवाले से आईवीसीए रिपोर्ट कहती है, ‘स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के भीतर हमने पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रिक व्हीकल क्षेत्र में कंपनियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है. ईवी हाल ही में स्थापित अधिकांश कंपनियों के साथ स्टार्ट-अप का पर्याय बन गया है.’

उनके मुताबिक, इलेक्ट्रिक व्हीकल के क्षेत्र में निवेश बढ़ा है, यह ‘बड़े पैमाने पर एक अप्रयुक्त बाजार बना हुआ है, जो निवेशकों को वाहन वित्त पोषण, कैपेक्स वित्त पोषण आदि के जरिये फंडिंग की कमी को पूरा करने का अहम अवसर प्रदान करता है.’

वह कहते हैं, ‘यह इलेक्ट्रिक बाइक, रिक्शा, बसों, कैब आदि के माध्यम से इनके व्यावसायिक स्तर पर संचालन का एक बड़ा अवसर भी देता है.’


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अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य?

अगस्त के पहले सप्ताह में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने संसद को सूचित किया कि देश में 7.93 लाख तिपहिया और 5.45 लाख दोपहिया वाहनों सहित 13,92,265 इलेक्ट्रिक वाहन हैं.

चित्रण : मनीषा यादव / दिप्रिंट

आईवीसीए की रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक व्हीकल कम से कम टू-व्हीलर सेगमेंट में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज करेंगे. 2022 में अनुमानित 5.35 लाख यूनिट दोपहिया ईवी की बिक्री के साथ यह आंकड़ा 2027 में बढ़कर 72 लाख यूनिट तक पहुंचने के आसार हैं—यानी लगभग 68 प्रतिशत की वृद्धि.

लेकिन रिपोर्ट कहती है कि इस अनुमान के बावजूद दोपहिया वाहनों के लिए निर्धारित 2030 का लक्ष्य पूरा होने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया है, ‘सरकार ने 2030 तक 80 प्रतिशत हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है, जो लगता है कि कुछ ज्यादा ही आक्रामक है; खासकर बैटरी में आग लगने की हालिया घटनाओं को देखते हुए 2030 तक 45-50 प्रतिशत का वास्तविक लक्ष्य ही प्राप्त होने के आसार हैं.’

आईवीसीए के मुताबिक, इसी तरह, मुख्यत: व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स 2027 तक केवल 31.6 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी हासिल कर सकते हैं. 2021 में भारत में लगभग 7,108 इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन (2.7 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ) बिके, जो आंकड़ा 2027 तक 2.4 लाख यूनिट (31.6 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी) तक पहुंचने के आसार हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक बसों की कम मांग के कारण यह सेगमेंट 2027 तक केवल 16 फीसदी बाजार हिस्सेदारी पर ही पहुंच सकता है, और उस वर्ष केवल 15,456 यूनिट की बिक्री का अनुमान है. पिछले साल बमुश्किल 1,186 यूनिट इलेक्ट्रिक बसों (4.1 फीसदी मार्केट शेयर) की बिक्री हुई थी.

रिपोर्ट बताती है कि संभावित कार खरीदार भी बिजली से चलने वाले चार पहिया वाहनों पर बड़ा दांव लगाने को तैयार नजर नहीं आते हैं. 2021 में 11,680 यूनिट्स की बिक्री के साथ 2027 तक इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री का आंकड़ा 1.5 लाख तक पहुंचने की संभावना है. इसका मतलब है कि ऐसी कारों की हिस्सेदारी भारत के यात्री वाहन सेगमेंट में ना के बराबर ही रहेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल इलेक्ट्रिक व्हीकल की बाजार हिस्सेदारी लगभग 1 प्रतिशत है, जो 2027 तक 3.41 प्रतिशत तक ही पहुंचने के आसार हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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