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Sunday, 22 December, 2024
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पुलिसिया छानबीन, खराब सड़कें और कीचड़ से सनी सैंडल: कुछ ऐसा रहा त्रिपुरा-मणिपुर में इस रिपोर्टर का अनुभव

आईविटनेस - दिप्रिंट के पत्रकारों द्वारा समाचार संकलन लिए किये गए दौरों में मिले अनुभवों की कहानी के पीछे की कहानी.

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गुवाहाटी: 1 नवंबर को सुबह 9 बजे की दिल्ली से गुवाहाटी के लिए मेरी फ्लाइट जिसका मैं बेसब्री से एक महीने से या शायद उसे से भी अधिक समय से इंतजार कर रही थी. असम, नागालैंड और मणिपुर में कोविड के मामलों की ख़बरें जुटाने के लिए वहां बिताए तीन महीने के बाद से मुझे एक साल से थोड़ा अधिक समय हो गया था. यहां बिताए गए उस समय ने मुझे इस क्षेत्र में वापस आने के प्रति और अधिक उत्सुक बना दिया था.

जैसे ही मैं गुवाहाटी पहुंची, मैं अपने काम की दुरूहता से घबरा सी गई. एक कठिनाइयों वाला इलाका, एक नया और जटिल संदर्भ और एक ऐसा क्षेत्र जो काफी हद तक मुख्यधारा के समाचार माध्यमों से उपेक्षित रहता है. मैं इस तथ्य से काफी हद तक अवगत थी कि यह शायद मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण काम होगा और एक हफ्ते में ही मैं सही भी साबित हुई.

उस समय, त्रिपुरा समूचे राज्य में मस्जिदों पर हो रहे हमलों की खबरों को लेकर चर्चा में था. यह परिस्थिति तब और भी जटिल हो गई जब राज्य पुलिस ने वहां मौजूदा स्थिति के बारे में बताने वाले 102 से अधिक सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ यूएपीए के तहत मामले दर्ज किए.

ठीक उस वक्त जब मैं गुवाहाटी में अपने नए फ्लैट में अनखुले कार्टूनस के बीच खड़ी थी. मुझे मेरे संपादक का फोन आया कि मैं इन घटनाओं को गहराई से जानने और जो कुछ हुआ था उसकी सच्चाई पता करने के लिए अगरतला की फ्लाइट लूं.

800 किलोमीटर, 30 से अधिक प्रत्यक्षदर्शी और जिले

मैं 9 नवंबर को अगरतला पहुंची. यहां मेरे फोटोग्राफर प्रवीण जैन भी मेरे साथ आ आए थे. हमने पहला दिन कुछ समय चीजों की टोह लगाने में बिताया जिसमें लोगों से मिलना और दौरा करने के लिए उपयुक्त स्थानों की एक सूची बनाना शामिल था.

जिन 12 जगहों पर इस तरह की घटनाएं हुई थीं. हमने अगले तीन दिनों में उनमें से 10 जगहों का दौरा करने की योजना बनाई.

सबसे पहला स्थल था पनीसागर. एक शहर जो उत्तरी त्रिपुरा जिले में अगरतला से 400 किमी दूर स्थित है. 26 अक्टूबर को शहर के पास के चमटीला और रोवा इलाकों में एक मस्जिद की तोड़फोड़ और कई मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी सहित कई घटनाओं को देखा गया था.

ये घटनाएं उस समय घटित हुई थीं जब विश्व हिंदू परिषद की स्थानीय इकाई ने बांग्लादेश में पहले हुई एक घटना जिसमें एक दुर्गा पूजा पंडाल में कुरान रखा गया था उसके विरोध में इस इलाके में एक रैली निकाली थी.

शुरू में चश्मदीदों को विशेष रूप से मस्जिद के आसपास रहने वाले लोगों को इन घटनाओं के बारे में बात करने के लिए मनाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था क्योंकि उन्हें इन अपराध को करने वालों से बदले की कार्रवाई का डर था. पिछले कुछ दिनों में हुई पुलिस की कार्रवाई से उनके बीच फैला डर का माहौल कुछ बढ़ता ही दिख रहा था.

यह तब और भी स्पष्ट हो गया जब शहर के पास स्थित एक दूसरी जीर्ण-शीर्ण मस्जिद – जिसे कथित तौर पर तोड़ दिया गया था उस जगह हमें कांस्टेबलों द्वारा रोका गया और हमें पास के पुलिस स्टेशन से अनुमति लेने के लिए कहा गया.

जब हम पुलिस स्टेशन पहुंचे तो वहां के प्रभारी अधिकारी ने हमारा सारा विवरण दर्ज किया और अंत में हमें घटनास्थल का दौरा करने की मंजूरी दे दी. इस घटनास्थल से सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद हम वापस अगरतला के लिए रवाना हुए.

अगले दिन पुलिस की गहन छान-बीन दिखी. जैसे ही हम विशालगढ़ पहुंचे जो हमारी सूची में दूसरे घटना स्थल नरौरा के करीब था –  हमें स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया.

थाने में जाने पर वहां के प्रभारी अधिकारी ने हमें बताया कि गांव की ‘तनावपूर्ण स्थिति’ को देखते हुए हमारा उसमें प्रवेश करना उचित नहीं होगा. हम अपनी जिद पर अड़े रहे और आखिरकार वह मान गए लेकिन नरौरा तक दो पुलिस एस्कॉर्ट हमारे पीछे चल रहे थे.

हालांकि ग्रामीणों के साथ हमारी बातचीत बिना किसी रोक-टोक के हुई लेकिन जल्द ही हमें सादे कपड़ों में एक व्यक्ति ने संपर्क किया जिसने खुद की पहचान जिले के खुफिया विभाग के एक अधिकारी के रूप दी. उसने हमारे पहचान पत्रों की तस्वीरें लीं और फिर हमें जाने दिया.

शनिवार तक हमने 800 किलोमीटर से अधिक के दायरे में फैले सभी 10 जगहों का दौरा कर लिया था और 30 से अधिक प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत भी की थी. जब प्रवीण और मैं अगरतला में अपने होटल में बैठकर अपनी रिपोर्ट लिख रहे थे, मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक और दुखद घटना घटी.

46 असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर (कमान अधिकारी) विप्लव त्रिपाठी, उनकी पत्नी, बेटे और चार अन्य सैनिकों सहित सात लोगों ने दो प्रतिबंधित समूहों के आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर अपनी जान गंवा दी थी.

अगले दिन हम इम्फाल के लिए फ्लाइट में थे.


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एक कठिन जंग

एक और जहां त्रिपुरा कानून का पालन करवाने वाले अधिकारियों के साथ लगातार संघर्ष की वजह से चुनौतीपूर्ण साबित हुआ था. वहीं, मणिपुर में हमारे लिए निर्दिष्ट कार्य सड़कों की ख़राब स्थिति के कारण अपनी दृढ़ता दिखने वाला काम था.

जब हम उस जगह पर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे जहां यह घात लगाकर किया गया हमला हुआ था वहां हमारी बड़ी सी स्कॉर्पियो गाड़ी चुराचंदपुर जिला मुख्यालय से सेहकेन गांव में घटनास्थल पर जाने वाली सड़क के किनारे कीचड़ में फंस गई.

प्रवीण और मैंने बारी-बारी से स्कॉर्पियो को धक्का दिया. साथ ही कुछ स्थानीय लोगों की मदद से जो खुद वहां फंसे हुए थे उनकी मदद से हम बाहर निकलने में कामयाब रहे. आखिर में हम उस जगह पर पहुंच ही गए जो जंगल की पहाड़ियों से घिरे टेडिम रोड के साथ लगी एक सुंदर और सुनसान जगह थी.

पहले किसी भी असाइनमेंट से कहीं ज्यादा पिछले 10 दिनों ने मेरी क्षमताओं की सभी सीमाओं का परीक्षा ले ली थी. यह बातचीत, धैर्य और दृढ़ता से भरपूर अपने आप में एक अभ्यास था जिसके बारे में मुझे पता है कि इस क्षेत्र को कवर करने वाले एक रिपोर्टर के रूप में आने वाले समय में मुझे निश्चित रूप से इनकी और अधिक आवश्यकता होगी.

जैसा कि मेरी कीचड़ से सजी सैंडल गवाही देती है मैं यह कह सकती हूं कि मेरे लिए इससे ज्यादा संतोषजनक कुछ और नहीं हो सकता.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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