नई दिल्ली: मंगल, शनि या कोई भी ग्रह जो भी आपको पसंद हो ट्रिप के लिए चुनिए, कल्पना कीजिए उसके बारे में और एक यात्रा-वृत्तांत लिखिए कि आपका ट्रिप कैसा रहा. बांसुरी सुनते हुए भौतिकी के बारे में सोचिए कि कैसे कुछ छेदों के जरिए आवाज़ निकल रही है. अमिताभ बच्चन की तरह कविताओं का पाठ करिए और 1970 के समय के उनकी ब्लॉक-बस्टर फिल्मों के डायलॉग बोलिए. अंत में सामाजिक तौर पर मिलने-जुलने को रसायन विज्ञान की तरह सोचिए.
देश के कई स्कूल पाठ्यक्रम को रोचक बनाने के लिए नए तरीकों का इस्तेमाल कर रही है. जिसकी वजह से छात्रों को किताबों से आगे भी सोचने के लिए मदद होगी.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने नई पहल करते हुए सभी स्कूलों को अप्रैल में एक सर्कुलर जारी किया था, इसमें कहा गया था कि सभी स्कूल पढ़ाने के तरीकों में बदलाव करें और पाठ्यक्रम को रोचक बनाने पर ज़ोर दें.
बोर्ड ने कहा था कि सिनेमा और विज्ञान के जरिए पढ़ाई के तरीकों को रोचक बनाया जाए जिससे बच्चों में सोचने की प्रवृत्ति पैदा हो.
कई स्कूलों ने इसपर संज्ञान लिया और उसे लेकर कुछ पहल की जिसमें बांसुरी वाला निर्देश भी शामिल था.
कला के जरिए विज्ञान की शिक्षा
सूरत के दिल्ली पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल वामसी कृष्णा ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘संस्थान भौतिकी और रसायन विज्ञान को कला के जरिए पढ़ा रहा है.’
‘हम विज्ञान के विषय जैसे कि भौतिकी और रसायन विज्ञान को कला और डांस के जरिए पढ़ा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर हमारे विज्ञान के अध्यापक बांसुरी बजाते हैं और उसके पीछे के विज्ञान को समझाते हैं. कैसे एक निश्चित आवाज़ बांसुरी से आती है और कैसे हवा आवाज़ को प्रभावित करती है.’
‘रसायन विज्ञान में पढ़ाए जाने वाले पेरियोडिक टैबल को हम डांस के जरिए बताते हैं.’ स्कूल की प्रिंसिपल कृष्णा ने कहा, ‘हम डांस का इस्तेमाल कर के धातु और कम्पाउंड के बारे में बच्चों को समझाते हैं.’
कृष्णा के अनुसार, ‘सीबीएसई के दिशानिर्देश इतने आसान है कि कोई भी स्कूल इसे अपना सकता है. बहुत सारे स्कूल इसे अपना भी रहे हैं. लेकिन स्कूलों को नए तरीके की क्रिएटिविटी करनी चाहिए जैसे हमलोग कर रहे हैं.’
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सीबीएसई के सुझाव के अनुसार रसायन विज्ञान पढ़ाते वक्त बच्चों को धातु बना दिया जाए और फिर उन बच्चों को मिलाकर धातु की विशेषता के बारे में बताना चाहिए. उदाहरण के तौर पर देखें तो अगर एक बच्चे को हीलियम बना दिया जाए तो यह धातु किसी धातु के साथ रिएक्ट नहीं करता है. इससे बच्चों को अच्छे से समझ आ जाएगा.
दूसरे सीबीएसई सुझावों के अनुसार फिल्मों का सहारा लेकर बच्चों को पढ़ाना चाहिए. मुश्किल कविताओं की पंक्तियों को तोड़कर उन्हें अमिताभ बच्चन और जेम्स बांड के फिल्मों के डायलॉग के रूप में आसान बनाकर पढ़ाया जाना चाहिए.
बिल्कुल हटकर
दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमीता मुल्ला वट्टल कहती हैं, ‘बच्चों को गणित पढ़ाने के लिए वो उन्हें ऐतिहासिक जगहों और मैदानों में ले जाते हैं.’
वट्टल कहती हैं, ‘उदाहरण के तौर पर हम बच्चों को हुमायुं के मकबरे लेकर गए. वहां जाकर बच्चे वहां की इमारतों को देखते हैं. कलाकृतियों को देखते हैं. इमारतों पर बने हुए चित्रों के आधार पर बच्चे काफी कुछ सीखते हैं. हम चाहते हैं कि बच्चे क्लासरुम से बाहर जाकर कुछ सीखें.’
अगर हमें बच्चों को स्पीड, वेलोसिटी, लेंथ, ब्रेथ के बारे में पढ़ाना होता है तो हम उन्हें क्रिकेट के मैदान में ले जाते हैं. जहां बच्चे काफी कुछ सीखते हैं.
दिल्ली के कालकाजी स्थित स्कूल ऑफ एक्सिलेंस में गणित के अध्यापक पंकज रोहिल्ला बताते हैं, ‘वो पढ़ाते वक्त ड्रामा, प्ले का इस्तेमाल करते हैं. वास्तविक दुनिया की चीजों का उदाहरण देकर हम बच्चों को गणित पढ़ाते हैं. जिससे बच्चे ज्यादा आसानी से समझ पाते हैं.’
वो कहते हैं, ‘बाकी विषयों में भी ड्रामा का इस्तेमाल करके पढ़ाया जा सकता है. जिससे बच्चे राजनीति और इतिहास को भी आसानी से समझ सकते हैं.’
‘बच्चो के परिजन भी मानते हैं कि कक्षाओं से बाहर निकलकर पढ़ाई होने से बच्चों को काफी मदद मिलती है. वो इसके महत्व को समझने लगे हैं.’
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दीपक दत्ता कहते हैं, ‘मेरा बेटा 4थी कक्षा में पढ़ता है. वो कभी-कभी कहता है कि वो मंगल पर जाना चाहता है. पहले तो मैं काफी हैरान हुआ लेकिन बाद में पता चला कि इसे भूगोल नए तरीके से पढ़ाया जा रहा है. यात्रा के जरिए पढ़ाए जाने पर बच्चे जल्दी चीज़ों को समझ जाते हैं.’
इसी स्कूल के बच्चों को कहा जाता है कि वो पांच काल्पनिक चेहरे की फोटो बनाए, पांच ऐतिहासिक इमारतों की फोटो बनाए. इन चीजों से बच्चों को ज्यादा सीखने को मिलता है.
जीवन के दूसरे योग्यताओं के लिए
दिल्ली के बहुत सारे निजी स्कूलों ने गणित को आसान बनाने के लिए जोड़ो ज्ञान जैसे तरीके की शुरुआत की थी. ये एक शुरुआत थी जिसमें संख्या को आसान बनाकर, गणित के नियमों को आसान बनाकर बच्चों को पढ़ाया जाता था.
सीबीएसई के अनुसार शिक्षा में कलात्मकता का होना बेहद जरुरी है. क्योंकि इससे बच्चों में जानने की समझ, उत्सुकता, क्रिटिकल समझ विकसित होती है और चीजों की गहरी समझ विकसित होती है.
सीबीएसई ने इसी साल के शुरुआत में जारी किए सर्कुलर के अनुसार, इस तरह के प्रयोग न केवल अध्यापन कार्य को रोचक बनाते हैं बल्कि इससे बच्चों में एक सकारात्मक विकास होता है. बच्चों में संवाद की समझ अच्छी होती है, विश्वास का स्तर बढ़ता है और क्रिएटिविटी बढ़ती है.
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