लखनऊ: परेशान वरिष्ठ नौकरशाह अमित मोहन प्रसाद की मुश्किलें और बढ़ गई हैं क्योंकि वो दो मोर्चों पर जांच के घेरे में हैं, जिनमें से एक प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) है, जिसने उत्तर प्रदेश सरकार से इन आरोपों की जांच करने के लिए कहा है कि इन्होंने एक निजी समूह का भुगतान जारी नहीं किया गया है.
दूसरे मोर्चे पर, लोकायुक्त कार्यालय ने स्वास्थ्य सेवा एवं परिवार कल्याण विभाग के अतिरिक्त सचिव प्रसाद से कहा है कि कोविड महामारी की पहली लहर के दौरान ‘घटिया’ निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीईज़) तथा अन्य उपकरणों की कथित ख़रीद के बारे में एक ‘तथ्यात्मक, स्पष्ट और तर्कसंगत स्पष्टीकरण’ का दस्तावेज़ जमा करें.
इसके अलावा एक कोर्ट ने भी उनसे लखनऊ के एक पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की ओर से दायर अवमानना याचिका के सिलसिले में जारी किए गए नोटिस का जवाब देने के लिए कहा है. उक्त सीएमओ को 2011 के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) घोटाले में उसकी कथित संलिप्तता के लिए निलंबित कर दिया गया था.
प्रसाद, जिन्हें उत्तर प्रदेश के सबसे प्रभावशाली नौकरशाहों में से एक माना जाता है, वह पहले कई पदों पर काम कर चुके हैं जिनमें नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद भी शामिल है. 1989 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी, जनवरी 2020 से चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग देख रहे हैं.
प्रसाद तब से विवादों के केंद्र में रहे हैं जब से उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने, जो चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग देखते हैं, जुलाई के पहले सप्ताह में अपनी अनुपस्थिति में किए गए डॉक्टरों के तबादलों में कथित गड़बड़ियों पर नाराज़गी का इज़हार किया था.
PMO ने शिकायत का संज्ञान लिया
पीएमओ ने उस समय निर्णय लिया जब उसे महेश चंद्र श्रीवास्तव की ओर से नौ पन्नों की एक शिकायत प्राप्त हुई, जो ख़ुद को आर क्यूब समूह का क़ानूनी सलाहकार बताते हैं. ये शिकायत कार्मिक, लोक शिकायत, और पेंशन मंत्रालय के पोर्टल पर दर्ज की गई थी.
27 जून की शिकायत में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, श्रीवास्तव ने दावा किया कि आर क्यूब हेल्थकेयर इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, और आर क्यूब फायर प्रोटेक्शन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड ने, राज्य के 16 ज़िलों के 13 सरकारी अस्पतालों तथा कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर, सेंट्रल गैस पाइपलाइन तथा मॉड्युलर ओटी जीवन रक्षक और सुरक्षा प्रणालियां स्थापित करने का काम, या तो पूरा कर लिया है या पूरा करने की प्रक्रिया में है.
श्रीवास्तव की पत्नी और बेटी क्रमश: आर क्यूब हेल्थकेयर इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, और आर क्यूब फायर प्रोटेक्शन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड की डायरेक्टर हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि हालांकि आर क्यूब ग्रुप को ये काम टेण्डर के ज़रिए, निर्माण एवं डिज़ाइन सेवाएं (यूपी जल निगम के आधीन), ग्लोबल सेल (यूपी आवास विकास बोर्ड के आधीन) और यूपी राज्य निर्माण एवं श्रम विकास संघ जैसी एजेंसियों की ओर से दिया गया था, लेकिन प्रसाद के ‘विरोध’ की वजह से सरकार ने अभी तक, कई परियोजनाओं के लिए अगली किश्त का पैसा जारी नहीं किया है.
शिकायत में कहा गया है, ‘इसके अलावा, कई परियोजनाओं का काम पहले ही पूरा किया जा चुका है, लेकिन प्रसाद के दबाव के चलते श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल लखनऊ, और भाउराव देवरस सिविल अस्पताल लखनऊ जैसी सुविधाओं का प्रशासन, केंद्रीय रोगाणु रहित सेवा विभाग और मॉड्युलर ओटी सुविधा का हैण्डओवर नहीं ले रहे हैं’.
उसमें आरोप लगाया गया कि सरकार की ओर से 35.84 रुपए की राशि, जो दूसरी किश्त का हिस्सा या लंबित किश्तें थीं, संबंधित एजेंसियों को जारी नहीं की है.
पत्र का संज्ञान लेते हुए, पीएमओ ने उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को लिखा कि शिकायत ‘उचित कार्रवाई’ के लिए प्रेषित की जा रही है. पीएमओ के पत्र में जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, इसमें कहा गया है, ‘जवाब याचिकाकर्त्ता को दिया जाए, और उसकी एक प्रतिलिपि पोर्टल पर अपलोड की जा सकती है’.
अतिरिक्त मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल ने दिप्रिंट से कहा कि उसकी शिकायत उसके निजी हित में है और इसकी जांच की जाएगी’.
एक रिपोर्ट के अनुसार श्रीवास्तव एक बार लखनऊ में पांच मामलों का सामना कर चुका है. 2013 में हैदराबाद पुलिस की एक टीम कथित धोखाधड़ी के एक मामले में सूबे की राजधानी पहुंच गई थी. उसके अंधेरे अतीत के बारे में पूछे जाने पर, श्रीवास्तव ने दावा किया वो मामले अब ‘सुलट’ गए हैं.
लोकायुक्त ने प्रसाद से जवाब मांगा
लोकायुक्त सचिव अनिल कुमार सिंह ने 14 को प्रसाद को तब लिखा, जब एक शिकायतकर्त्ता राजेश खन्ना ने लोकायुक्त से शिकायत करके, यूपी चिकित्सा आपूर्ति निगम की ओर से की गई ख़रीदारियों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया.
दिप्रिंट से बात करते हुए, खन्ना ने अपना परिचय एक आरटीआई एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्त्ता, और बीजेपी कार्यकर्त्ता के रूप में कराया.
शिकायतकर्त्ता ने प्रसाद पर आरोप लगाया कि उनके तीन कंपनियों के साथ रिश्ते थे जिन्हें, ‘यूपी के मुख्य चिकित्सा भंडार डिपो की ओर से टेण्डर जारी हुए बिना’, कथित रूप से रीजेंट्स सप्लाई करने का ठेका मिल गया था.
दिप्रिंट के पास शिकायत की एक प्रतिलिपि मौजूद है.
अप्रैल 2020 में, तत्कालीन चिकित्सीय शिक्षा महानिदेशक ने दो दर्जन मेडिकल कॉलेजों को लिखा था कि वो ‘घटिया’ और ‘ख़राब’ पीपीई किट्स इस्तेमाल न करें. जैसे ही पत्र वायरल हुआ, उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पेशल टास्क फोर्स को डीजी का पत्र लीक होने की जांच के आदेश दे दिए. बाद में सरकार ने दावा किया था कि पीपीई किट्स की ख़रीद में कोई अनियमितताएं नहीं थीं.
इस बीच, श्रीवास्तव ने वेंटिलेटर्स की ख़रीद पर भी रोशनी डाली, जो कोविड की तीसरी लहर के दौरान संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, और डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (दोनों लखनऊ में) के लिए, कथित तौर पर बढ़ी हुई दरों पर की गई थी.
शिकायत और आरोपों के बारे में संपर्क किए जाने पर प्रसाद ने एक लिखित संदेश भेजा: ‘जवाब सही मंचों पर उपलब्ध कराए जाएंगे. मुझे नहीं लगता कि विचाराधीन मामलों पर मीडिया से बात करना उचित है’.
बाबू के खिलाफ अवमानना याचिका
प्रसाद के लिए एक और चिंता बढ़ाते हुए, इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने 21 जुलाई को एक नोटिस भेजकर उनसे पूछा, कि 10 दिसंबर 2020 को जारी उसके आदेश की ‘जानबूझकर अवज्ञा’ करने के लिए उन्हें क्यों दंडित न किया जाए.
कोर्ट ने उनसे लखनऊ के पूर्व सीएमओ डॉ अनिल कुमार शुक्ला की ओर से दायर रिट याचिका के सिलसिले में, अगली सुनवाई पर 18 अगस्त को पेश होने के लिए कहा है. याचिका में शुक्ला ने कोर्ट के (18 दिसंबर 2020 के) एक अंतरिम आदेश की कथित नाफरमानी का आरोप लगाया गया था, जिसमें कहा गया था कि उनकी निलंबन अवधि के किसी भी भुगतान को उन्हें अदा कर दिया जाए.
शुक्ला को एनआरएचएम घोटाले के सिलसिले में 13 जुलाई 2011 को निलंबित किया गया था. फिर अक्तूबर 2012 में वो रिटायर हो गए. मामले के एक प्रमुख अभियुक्त शुक्ला को थोड़े समय के लिए, घोटाले तथा दो सीएमओज़ की हत्या की साज़िश के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.
शुक्ला के वकील प्रांशु अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया, कि उनके मुवक्किल को राज्य के नियमों के मुताबिक़ गुज़ारा भत्ता नहीं दिया गया.
उन्होंने कहा, ‘2016 तक सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया. शिकायतकर्त्ता के साथ कोई जानकारी भी साझा नहीं की गई. आख़िरकार एक आरटीआई जवाब में सरकार ने शुक्ला को सूचित किया, कि मामला अभी लंबित है. 2020 में हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि या तो शुक्ला को भत्ते का भुगतान किया जाए, या फिर भत्ता न देने का कारण उन्हें लिखित में बताया जाए. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई’.
2021 में शुक्ला ने एक अवमानना याचिका दायर की. ‘बाद में ये बात सामने आई कि 10 अगस्त 2021 को सरकार ने शुक्ला को भत्ता न देने का निर्णय कर लिया था, लेकिन उस संदेश को कोर्ट में हलफनामे के ज़रिए संचारित नहीं किया गया. अब 6 जुलाई को कोर्ट के निर्देश पर राज्य ने जवाब देने के लिए समय मांगा. 18 जुलाई को सरकार ने याचिकाकर्त्ता को सूचित किया, कि उसने उन्हें भत्ता न देने का फैसला किया था’.
उस सनसनीख़ेज़ घोटाले में, जिसने 2011 में मायावती सरकार को हिला दिया था, कई अंधेरे मोड़ आए थे जिनमें सात लोगों की संदिग्ध मौतें हुईं थीं, जिनमें एक के बाद एक दो सीएमओ, डॉ विनोद आर्य और डॉ बीपी सिंह की हत्याएं भी शामिल थीं.
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