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Tuesday, 3 December, 2024
होमदेश'ऐ मोदी जी चुप्पी तोड़ो, समय रहते गंगा और संतों की जान बचाओ'

‘ऐ मोदी जी चुप्पी तोड़ो, समय रहते गंगा और संतों की जान बचाओ’

डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि आंदोलन को जनांदोलन बनने से पहले ही सरकार उसे कुचल दे रही है. संतों की एक के बाद एक हो रही मौतों से भी लोगों के मन में भय है.

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नई दिल्लीः कुंभ में लाखों लोग अपना पाप धोने गए, अफसोस कि बहुत कम ही लोगों ने इस बात की चिंता की कि साफ-सुथरे बढ़िया इंतजाम को लेकर हम और साथ ही ढेर सारे पानी में नहा कर, फोटो वीडियो शेयर करके खुश हैं. वास्तव में उस गंगा का असली दर्द क्या है. देश की गंगा जमुनी पहचान गंगा अपने जन्म से लेकर सागर में अपने तिरोहण तक अभूतपूर्व संकट से गुजर रही है.

उत्तराखंड में लगभग 200 प्रस्तावित, निर्माणधीन और बन चुके बड़े बांधों में बंध रही है गंगा मैदानों में पहुंचती है, अपने इन वजहों से तेजी से घटते हुए तटीय क्षेत्र की ओर, जानलेवा गैरकानूनी खनन उद्योगों और शहरों के जहर उगलते प्रदूषण तत्व उस का भक्षण शुरू कर देते हैं और रही सही कसर जलमार्ग के नाम पर बनाई जाने वाली परियोजना पूरी कर देती हैं.

एक तरफ गंगा का पूर्ण रूप से दोहन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर गंगा को बचाने के लिए आगे आने वाले संतों की संदिग्ध अवस्था में मौत हो जा रही है. बनारस में नागनाथ, मातृसदन के निगमानंद, और पिछले साल अक्टूबर में स्वामी सानंद जी के लंबे उपवास के बाद एम्स ऋषिकेश में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. इसके अलावा संत गोपाल दास 4 दिसंबर से सरकारी अस्पताल से लापता हैं. इन संतों के बलिदान के बाद भी सरकार इनकी कोई सुध नहीं ले रही है. गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के नाम पर आई वर्तमान सरकार को गंगा और गंगा पुत्रों की कोई फिक्र नहीं है.

इन्हीं सब मुद्दों को लेकर आज नई दिल्ली के इंडिया गेट से लेकर जंतर-मंतर पर विरोध मार्च निकाला गया.

‘समय रहते, समय दो

गंगा को अविरल बहने दो ‘

लेकिन दुख की बात है कि पांच राज्यों से होकर गुजरने वाली और देश के 40 करोड़ लोगों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी नदी गंगा को बचाने की मुहिम में शिरकत करने के लिए मुश्किल से 40 जन भी इकट्ठा नहीं हुए. इस प्रदर्शन का मुख्य मुद्दा था कि गंगा की दिन-प्रतिदिन बिगड़ती हालत और एक के बाद एक हो रही संतों की मौत के बाद भी सरकार मौन क्यों है.

कार्यक्रम शुरू होने से पहले पुलवामा के शहीदों के लिए दो मिनट का मौन रखा गया. इसके बाद दिवंगत प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के चित्र पर माल्यार्पण करके कार्यक्रम की शुरुआत की गई.

मातृसदन के शिवानंद ने सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘सरकार गंगा को मूलत: नष्ट करना चाहती है. सरकार अगर गंभीर है तो वह स्वामी आत्मबोधानंद से संवाद क्यों नहीं करती.’

आपको बताते चलें, 24 अक्टूबर 2018 से 26 साल के युवा संत ब्रह्माचारी आत्मबोधानंद उपवास पर हैं. वे केरल में कंप्यूटर सांइस की पढ़ाई किए हैं. उन्होंने मातृसदन के स्वामी शिवानंद जी के सानिध्य में सन्यास लिया एवं गंगा की अविरलता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. ये उनका 10वां उपवास है.

विरोध के बाद जंतर-मंतर पर इन्हीं मुद्दों को लेकर एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया. इसमें जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा, ‘गंगा को बचाने के लिए हमें ज्यादा कुछ नहीं, गंगा का गंगात्व चाहिए और गंगा का गंगात्व होगा, गंगा पर बन रहे बांधों को रोकना और अन्य किसी तरह के बांध का प्रस्तावित नहीं करना. इसके अलावा गंगा में हो रहे अवैध खनन को बंद कराना.’

इसके अलावा उन्होंने कहा, ‘सत्याग्रहियों की हाय बहुत बुरी लगती है. अगर अब भी बात शुरू नहीं किया तो जनता साथ छोड़ देगी.’

इस पर जब हमने पूछा, ऐसी क्या वजह है कि गंगा को बचाने के लिए चल रहा आंदोलन जनांदोलन में तब्दील क्यों नहीं हो पाता है?

राजेंद्र सिंह कहते हैं कि आंदोलन को जनांदोलन बनने से पहले ही सरकार उसे कुचल दे रही है. संतों की एक के बाद एक हो रही मौतों से भी लोगों के मन में भय है. लोग डरे हुए हैं. लेकिन गंगा को बचाने के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा.

भारत सरकार के गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी जहां एक ओर लगातार बयान दे रहे हैं कि गंगा पर कोई नया बांध नहीं बनेगा वहीं कार्यक्रम में बुद्धजीवियों ने 200 प्रस्तावित बांधों पर चिंता जताई.

उनकी मांग यह है

1- गंगा पर निर्माणधीन बांध तपोवन विष्णुगाड धौली गंगा पर, विष्णुगाड-पीपलकोटी अलकनंदा पर और सिंगौली भटवारी मंदाकिनी पर तुरंत रोक लगा दी जाए.

2- गंगा के दोनों ओर 5 किलोमीटर तथा रायवाल, भोगपुर, हरिद्वार तक खनन और स्टोन क्रेशर को वर्जित करने वाले सीपीसीबी के आदेश को तुरंत लागू किया जाए.

3- मातृसदन में संतों ने आमरण अनशन की अटूट श्रृंखला में अपने प्राणों की आहुति दी है और आज भी दे रहे हैं. सरकार उनसे तुरंत बातचीत शुरू करें.

कांफ्रेस में योगेंद्र यादव ने अविरल गंगा के लिए पूर्ण समर्थन देने की बात कही तो प्रोफेसर आनंद कुमार ने विद्यार्थियों एवं बुद्धजीवियों से भी इस अभियान से जुड़ने की गुजारिश की. रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडे, समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर आदि ने भी इस मुहिम में हिस्सा लेकर समर्थन देने की बात की. लोगों ने सरकार से चुप्पी तोड़ने और बात करने की मांग की.

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