नई दिल्ली: मोदी सरकार ने दावा किया है कि फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट विमान की खरीद से संबंधित गोपनीय दस्तावेजों की ‘फोटोकॉपी’ अनाधिकृत है. यह चोरी के समान है.
बुधवार को दायर किए गए अपने हलफनामे में मोदी सरकार ने कहा कि ये दस्तावेज मूल रूप से दिसंबर 2018 के राफेल फैसले की समीक्षा की मांग में संलग्न हैं. जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संवेदनशील हैं क्योंकि वे लड़ाकू विमानों की युद्ध क्षमता से संबंधित हैं.
यह याचिका एक्टिविस्ट वकील प्रशांत भूषण और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो नेताओं अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा द्वारा दायर की गयी थी. सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा से संबंधित मामले पर चयनात्मक और अधूरी तस्वीर पेश करने के इरादे से प्राधिकरण के बिना उपयोग किए गए दस्तावेजों का उपयोग कर रहे हैं.
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भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के वर्गों को शामिल करते हुए सरकार ने विशेषाधिकार का दावा करते हुए कहा कि दस्तावेज़ सार्वजनिक जांच के दायरे में नहीं आते हैं. इसमें कहा गया है कि दस्तावेज आरटीआई के दायरे से बाहर हैं और शीर्ष अदालत में पेश करने से पहले सरकार से अपेक्षित अनुमति लेने की जरूरत होती है.
हलफनामे में कहा गया कि केंद्र सरकार सहमति अनुमति के बिना, जिन लोगों ने इन संवेदनशील दस्तावेजों की फोटोकॉपी करने की साजिश रची है उन्होंने चोरी की है. ऐसे दस्तावेजों की चोरी की घटना से विदेशों में संप्रभुता, सुरक्षा और मैत्रीपूर्ण संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
5 मार्च को मोदी सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि द हिंदू द्वारा खोजी रिपोर्टों के लिए उपयोग किए गए दस्तावेज़ चोरी हो गए थे. आधिकारिक गुप्त अधिनियम के प्रावधानों के तहत दि हिंदू के अध्यक्ष और रिपोर्टर एन राम पर मुकदमा चलाने की योजना बन रही थी.
हालांकि, दो दिन बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार के रुख को स्पष्ट किया और कहा कि उनका मतलब था कि इस्तेमाल किए गए दस्तावेज ‘मूल की फोटोकॉपी’ थे.
अदालत को गुमराह किया गया
अपने हलफनामे में सरकार ने कहा कि उसने पता लगाने के लिए एक आंतरिक जांच शुरू की है कि ‘दस्तावेजों की लीक कहां से हुई थी और शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया की पवित्रता को सुनिश्चित किया जा सके.
दस्तावेज़ एक अधूरी तस्वीर पेश कर रहें हैं और यह बताने में विफल रहते हैं कि कैसे मुद्दे को संबोधित और हल किया गया और सक्षम अधिकारियों के द्वारा आवश्यक मंजूरी को लिया गया.
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हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा तथ्यों और रिकॉर्डों का चयन माननीय न्यायालय को गलत निष्कर्ष निकालने के लिए भ्रमित करता है, जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हित के लिए बहुत हानिकारक है.
राफेल मामले में शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर करने के बाद केंद्र ने अपना हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि इस सौदे की जांच की जरूरत नहीं है.
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