डायमंड हार्बर/कमरकाटी/कोलकाता: पैंतीस वर्षीय भोलानाथ मैती पिछले एक हफ्ते से ज्यादा समय से डायमंड हार्बर जिला अस्पताल के बाहर एक टिन शेड में डेरा डाले हैं. पाथरप्रतिमा गांव निवासी मैती की पत्नी और बेटी दोनों अंदर अस्पताल में हैं. उनकी पत्नी धीरे-धीरे कोविड से उबर रही हैं लेकिन मात्र सात दिन की बेटी आईसीयू में है और उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है.
मैती को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर वह उन्हें अस्पताल में छोड़कर घर लौटे तो दोनों मरीजों स्थिति के बारे में कोई अपडेट नहीं मिल पाएगा. उनका गांव 60 किलोमीटर से ज्यादा दूर है, और वहां से रोज आना-जाना संभव नहीं है. और वह अपनी पत्नी को एक मोबाइल फोन भी नहीं दे सकते, क्योंकि पश्चिम बंगाल राज्य सरकार पिछले वर्ष अप्रैल में ही सभी सरकारी अस्पतालों में कोविड वार्डों के अंदर मोबाइल फोन के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर चुकी है.
मुख्य सचिव राजीव सिन्हा, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि मोबाइल फोन ‘सबसे ज्यादा संक्रामक’ डिवाइस में एक है. किसी भी बेहतरीन अस्पताल में जाइये और वे बताएंगे कि मोबाइल फोन में जूतों से भी ज्यादा कीटाणु होते हैं. हम ये जोखिम नहीं उठा सकते है. इसलिए हमने लैंडलाइन की व्यवस्था की है.’
लेकिन लैंडलाइन पर फोन कॉल का कोई जवाब न मिलने और अस्पताल में निजी तौर पर मौजूद हुए बिना मरीजों के बारे में जानकारी हासिल करने का कोई तरीका न होने के आरोपों के बीच, राज्यभर में सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजनों को घंटों बाहर इंतजार करने को मजबूर होना पड़ रहा है, भले ही मौसम कितना भी विषम क्यों न हो—कोलकाता में शुक्रवार को अधिकतम तापमान 36 डिग्री दर्ज किया गया, जबकि कुछ जिलों में इससे भी ज्यादा गर्मी पड़ रही है—या फिर संक्रमित होने का जोखिम बना रहता हो.
राज्य में कोविड लॉकडाउन के कारण भी कुछ लोग बीमार रिश्तेदारों के बारे में खबर लेते रहने के लिए अस्पताल में रहने को मजबूर हैं, क्योंकि हर दिन अस्पताल तक आना-जाना मुश्किल हो गया है.
हालांकि, ऐसी कठिन परिस्थितियों के जूझने के बाद भी हमेशा ये सुनिश्चित नहीं हो सकता कि उन्हें अस्पताल में भर्ती अपने परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी मिल ही जाएगी. कई बार परिजनों को अपने मरीजों की खबर पाने के लिए सफाई कर्मचारियों या अटैंटेंड को रिश्वत तक देनी पड़ती है.
डायमंड हार्बर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मरीजों के परिजनों के ठहरने के लिए कोई उपयुक्त जगह उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मैती शेड के अंदर एक प्लास्टिक शीट बिछाकर और ईंट को तकिया बनाकर सोते हुए रातें बिता रहे हैं.
लेकिन वह ऐसा करने वाले अकेले इंसान नहीं हैं और न ही यह एकमात्र ऐसा अस्पताल है जहां मरीजों के परिवार इसी तरह की अव्यवस्था का सामना कर रहे हैं.
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परिजनों के लिए आश्रय स्थल
शेड में मैती के नजदीक ही मौजूद हैं 50 वर्षीय प्रदीप नस्कर, जो कि अस्पताल से करीब 30 किलोमीटर दूर कुलपी गांव के रहने वाले हैं.
नस्कर की 22 वर्षीय बहू भी सांस लेने में दिक्कत से जूझ रही है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह कोविड पॉजिटिव नहीं है, उसे कुछ अन्य बीमारियों के कारण अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी है.
नस्कर ने कहा, ‘हम सबको यह डर सताता रहता है कि यहां इस भीड़भाड़ वाले शेड में रहने से हमें भी कोविड हो सकता है. लेकिन हम अपने परिवार को छोड़कर घर भी नहीं जा सकते. अगर हम ये जगह छोड़ देते हैं, तो हम संपर्क में नहीं रह पाएंगे, वापस आना भी मुश्किल होगा क्योंकि लॉकडाउन के कारण कोई परिवहन उपलब्ध नहीं है.’
मैती और नस्कर के अलावा इस शेड में करीब दो दर्जन से अधिक अन्य लोग भी रहते हैं, जिनके परिजनों का अस्पताल में कोविड या पोस्ट-कोविड दिक्कतों के लिए इलाज चल रहा है. सभी ने अस्पताल परिसर न छोड़ने का एक ही कारण बताया, कि वह अपने बीमार परिजन के संपर्क में नहीं रह पाएंगे.
राज्य की राजधानी में स्थित तमाम सरकारी अस्पतालों का नजारा ऐसा ही है.
कोलकाता से 140 किलोमीटर दूर नंदीग्राम के रहने वाले 65 वर्षीय अताउर रहमान शहर के शंभूनाथ पंडित अस्पताल में डेरा डाले हैं. उनके साथ 23 वर्षीय बहू शहजादी खातून भी मौजूद है. रहमान का कोविड पीड़ित बेटा, जो डायलिसिस पर भी है, अस्पताल में भर्ती है.
उन्होंने बताया, ‘हम करीब 15 दिनों से यहां हैं. जब बारिश होती है, तो हम भागकर अस्पताल के अंदर जाने की कोशिश करते हैं. लेकिन कोविड प्रतिबंधों के कारण इसकी इजाजत नहीं होती है.’
पास में ही कुछ लोगों का एक और समूह मौजूद है—जो यहां आसपास रहते हैं और रात में घर लौट जाते हैं, लेकिन हर सुबह फिर अस्पताल लौट आते हैं और दिनभर परिसर के सामने ही बिताते हैं, और अंदर भर्ती अपने परिजनों के बारे में कोई खबर मिलने का इंतजार करते रहते हैं.
कोविड पाबंदियों के कारण किसी को भी अस्पताल के वेटिंग रूम में जाने की अनुमति नहीं होती है. इसलिए वे कोविड पेशेंट विंग के सामने कतार में खड़े जो जाते हैं और उन डॉक्टरों का इंतजार करते हैं जो दिन में एक बार मरीजों के बारे में अपडेट देने के लिए आते हैं. यदि किसी को ज्यादा जानकारी चाहिए तो सफाई कर्मचारियों या अटैंडेंट आदि को घूस देकर इसे हासिल करने का प्रयास कर सकता है.
दिप्रिंट ने राज्य के दक्षिणी 24 परगना और उत्तरी 24 परगना जिलों और कोलकाता में कम से कम पांच सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया, जहां इंतजार कर रहे मरीजों के परिजनों ने मुख्यत: एक ही समस्या बताई—सूचना देने की व्यवस्था ठीक नहीं होने से मरीजों के इलाज के बारे में ठीक से कुछ जानकारी नहीं मिल पाती है.
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मोबाइल फोन ‘संक्रामक’
सरकारी अस्पतालों के कोविड वार्डों में मोबाइल फोन पर पाबंदी लगाने का आदेश पिछले साल एक मरीज द्वारा एक सरकारी कोविड अस्पताल के अंदर वीडियो शूट करने के बाद आया था, जिससे वार्ड के अंदर कर्मचारियों के कुप्रबंधन का खुलासा हुआ था. वीडियो वायरल हो गया था.
मौजूदा स्थिति पर प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट ने राज्य के स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य सेवा निदेशक से फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी.
हालांकि, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘फोन के जरिये संक्रमण फैल सकता है, इसलिए हमने कोविड वार्डों में फोन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है. फोन खराब होने या चोरी होने की भी संभावना रहती है. हर सरकारी अस्पताल में हमने एक कॉल सेंटर स्थापित कर रखा है. परिवार के सदस्य वहां कॉल कर सकते हैं और अपडेट ले सकते हैं.’
उन्होंने आगे बताया कि कि कुछ अस्पतालों में डॉक्टर मरीजों के परिवारों को वीडियो कॉल भी करते हैं, ताकि वे मरीजों को देख सकें और उनसे बातचीत कर सकें.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास एक कोविड पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम (एक वेब पोर्टल) भी है. परिवार के सदस्य इसके माध्यम से मरीजों की स्थिति के बारे में अपडेट हासिल कर सकते हैं.’
हालांकि, मरीजों के परिजनों ने दावा किया कि केंद्रों पर कॉल उठाई नहीं जाती है, जबकि पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम पर भी अक्सर कोई जानकारी नहीं मिलती है.
एक सरकारी कर्मचारी लीला घोष (बदला हुआ नाम), जिसकी बड़ी बहन शंभुनाथ पंडित अस्पताल में भर्ती है, ने कहा कि वह जब दो दिन अस्पताल नहीं आई तो उन्हें अपनी बहन की सेहत के बारे में कोई अपडेट नहीं मिल सका.
उन्होंने बताया, ‘मैंने सब कुछ करके देख लिया, अस्पताल के नंबरों पर कॉल किया और एक रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर के साथ सिस्टम पर भी जानकारी हासिल करने की कोशिश की. लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. उन्होंने बताया कि यहां आने के बाद भी वह सुबह 10 बजे से देर शाम तक (अपनी बहन के बारे में कोई जानकारी पाए बिना) अस्पताल के बाहर बैठी रही. बाद में, एक सफाई कर्मचारी ने मुझे बताया कि उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है.’
खुद डॉक्टरों की तरफ से मरीजों के बारे में अपडेट देने का कोई निश्चित समय नहीं है. यही वजह है कि जो लोग परिसर से बाहर नहीं रह रहे हैं, वे भी वहां घंटों इंतजार करते रहते हैं.
50 वर्षीय गोपीनाथ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि वह डायमंड हार्बर अस्पताल में भर्ती अपनी मां के स्वास्थ्य के बारे में अपडेट पाने के लिए हर दिन अस्पताल के बाहर वहां कम से कम छह-सात घंटे इंतजार करते हैं.
उन्होंने बताया, ‘मैं रोज सुबह करीब 10 बजे आ जाता हूं. डॉक्टर कभी भी आ सकते हैं. मरीजों के परिजनों से मिलने के लिए उनका कोई तय समय नहीं है. इसलिए हम यहां घंटों इंतजार करते रहते हैं.’
मरीज की हालत अचानक बिगड़ने—जो कोविड में सामान्य है—का डर भी कई लोगों को अस्पताल परिसर से हिलने नहीं देता है.
दक्षिण कोलकाता के बेहाला स्थित विद्यासागर स्टेट जनरल अस्पताल के बाहर अपने पति का हाल जानने के लिए इंतजार कर रही राधारानी मित्रा ने कहा, ‘कई मरीज ऐसे होते हैं जिनकी हालत बिगड़ जाती है, लेकिन परिवार को पता ही नहीं चल पाता. हमें यह भी नहीं जान पाते कि उनका इलाज कैसा चल रहा है या उन्हें किसी चीज की जरूरत है या नहीं. इसलिए हम अपडेट के लिए यहां खड़े रहते हैं.’
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