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मंगलवार, 13 मई, 2025
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पोकरण के लोग ड्रोन हमलों से नहीं डरे : ‘हम उस धरती से हैं जहां परमाणु परीक्षण हुए’

पोकरण में 8 मई से 11 मई तक ब्लैकआउट लागू किया गया था. इस अवधि में शाम 5 बजे तक सभी दुकानें बंद हो जाती थीं. दुकान के मालिक ओम प्रकाश का कहना है कि 1965 या 1971 में पोकरण को निशाना नहीं बनाया गया था.

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पोकरण: शुक्रवार रात करीब 8:30 बजे जैसलमेर के पोकरण कस्बे के निवासी ओम प्रकाश ने जोरदार धमाके सुने और अपने घने अंधेरे घर से हवा में रोशनी की किरणें देखीं. शहर में अंधेरा छा गया क्योंकि बिजली गुल थी.

बाद में पता चला कि पाकिस्तान ने लगातार ड्रोन हमले किए थे, लेकिन भारतीय सशस्त्र बलों ने उन्हें आसमान से ही मार गिराया. क्षतिग्रस्त ड्रोन के मलबे को सेना के जवानों ने जब्त कर लिया.

ओम प्रकाश के अनुसार, पोकरण को पहले कभी निशाना नहीं बनाया गया, चाहे वह 1965 का युद्ध हो या 1971 का. पोकरण बाज़ार में एक दुकान के मालिक ने कहा, “1971 के युद्ध में भी पाकिस्तान ने पोकरण पर हमला नहीं किया था, जो भारत-पाकिस्तान सीमा से बहुत दूर नहीं है. हमने अपने बुजुर्गों से यह सुना था, लेकिन इस बार, उन्होंने कईं ड्रोनों से हम पर हमला किया और हमने देखा कि भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने उन्हें हवा में ही नाकाम कर दिया.”

यह शहर भारत-पाकिस्तान सीमा से 200 किलोमीटर से थोड़ा अधिक दूर है. 1971 में पश्चिमी क्षेत्र में भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा एक बड़ा ऑपरेशन देखा गया था जिसमें छह हंटर विमानों ने लोंगेवाला की लड़ाई में 30 से अधिक पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया था.

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच पोकरण को हाई अलर्ट पर रखा गया था. 8 मई से 11 मई तक ब्लैकआउट लागू किया गया था और इस दौरान शाम 5 बजे तक सभी दुकानें बंद हो जाती थीं.

प्रकाश ने कहा, “हम उस धरती से हैं जहां परमाणु परीक्षण हुए थे. पाकिस्तान के ड्रोन हमले को लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है, लेकिन यह एक नया युद्ध है, बिल्कुल अलग.”

स्थानीय निवासी ओम प्रकाश और ऑटोमोबाइल स्पेयर पार्ट्स बेचने वाले रावल राम परिहार जैसे लोग बाहरी लोगों को पोकरण के भारत की सुरक्षा से जुड़े होने की याद दिलाने में गर्व महसूस करते हैं: पोकरण के रेतीले रेगिस्तान में ही भारत ने दो बार परमाणु परीक्षण किए थे, पहली बार मई 1974 में और फिर मई 1998 में.

70 साल के परिहार ने याद करते हुए कहा, “दो दिनों के अंतराल में भारत ने 1998 में दो परमाणु परीक्षण किए. गांवों के किसी भी व्यक्ति को परीक्षण क्षेत्र के करीब जाने से मना किया गया था. क्षेत्र को पूरी तरह से घेर लिया गया था और सेना की निगरानी में रखा गया था.”

उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को परीक्षणों के बारे में तभी पता चला जब उन्होंने विस्फोट सुने. “बहुत बड़े विस्फोट हुए; ज़मीन हिल गई थी.”


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खेतोलाई का परमाणु परीक्षण से नाता

पोकरण से 28 किलोमीटर की दूरी पर, खेतोलाई गांव राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित है. इसकी खासियत यह है कि खेतोलाई भारत के परमाणु परीक्षण स्थल के सबसे नज़दीक का गांव है. खेतोलाई में 2,000 मीटर की गहराई पर भी अंडरग्राउंड पानी का न होना एक वरदान साबित हुआ, क्योंकि इससे परमाणु परीक्षण के बाद विकिरण का कोई संभावित खतरा नहीं था.

यहां के निवासी ज्यादातर बिश्नोई समुदाय से हैं. पुराने लोगों को दोनों परमाणु परीक्षणों अच्छे से याद हैं. 1974 में भारत ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में परमाणु परीक्षण किया था. इस ऑपरेशन का कोडनेम स्माइलिंग बुद्धा था. 24 साल बाद, ऑपरेशन शक्ति में भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए. इस बार, अटल बिहारी वाजपेयी देश का नेतृत्व कर रहे थे.

पोकरण परीक्षण रेंज के सबसे नजदीकी गांव खेतोलाई की ओर जाने वाला रोड साइनेज | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
पोकरण परीक्षण रेंज के सबसे नजदीकी गांव खेतोलाई की ओर जाने वाला रोड साइनेज | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

खेतोलाई निवासी माणा राम ने कहा, “1974 में धमाका मामूली था, लेकिन 11 मई 1998 वाला धमाका बहुत ज़ोरदार था.”

राम ने कहा कि परमाणु परीक्षण से पहले, 1960 के दशक में तैयारी शुरू हुई थी, जब सरकार ने भूमि अधिग्रहण किया था. “हममें से किसी को भी यह अंदेशा नहीं था कि हमारा गांव भारत के परमाणु परीक्षणों का केंद्र बिंदु होगा. हम सभी को गर्व है क्योंकि यह देश के लिए था.”

राम ने कहा, “ज़मीन बहुत कम कीमत पर अधिग्रहित की गई थी. हमें उचित मुआवजा नहीं मिला और हमारे गांव में कोई विकास नहीं हुआ. पोकरण यहां से 28 किमी दूर है, लेकिन हर कोई पोकरण को परमाणु परीक्षणों के लिए जानता है. सरकार हमारी ओर ध्यान नहीं देती. पोकरण ने खेतोलाई की पहचान को खत्म कर दिया है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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