नई दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली के रिहायशी इलाके बुधवार को ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारे से गूंज उठे. हालांकि, इस बार ये नारे राम मंदिर नहीं बल्कि दलितों के समाज सुधारक संत रविदास के मंदिर के लिए गूंज रहे थे. इस प्रदर्शन का आयोजन 10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तुगलकाबाद स्थित रविदास का मंदिर गिराये जाने के ख़िलाफ़ किया गया था.
दिल्ली पहुंचे दलित समाज के लोगों की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि पुलिस को इनका रुख़ जंतर-मंतर से रामलीला मैदान की ओर मोड़ना पड़ा. रैली का नेतृत्व भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद कर रहे थे. वैसे तो रैली में देशभर के लोग आए थे, लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब के लोग ज्यादा संख्या में शामिल थे.
भीम आर्मी के चांदनी चौक के ज़िला प्रभारी सुनील सम्राट से जब पूछा गया कि अगर सरकार उन्हें किसी और जगह मंदिर के लिए ज़मीन दे देती है तो क्या लोग मान जाएंगे, इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘हम समझौता नहीं कर सकते. ये जगह 600 साल पहले हमारे गुरु (संत रविदास) को मिली थी.’
यह भी पढ़ें: रविदास मंदिर गिराए जाने से दिल्ली चुनाव के पहले पार्टियों को मिला ‘मंदिर मुद्दा’
रैली में मौजूद लोग बार-बार रविदास मंदिर की तुलना राम मंदिर से कर रहे थे. उनका कहना था कि राम मंदिर को लेकर फैसला सालों से लटका है और रविदास मंदिर झटके में गिरा दिया गया. संत रविदास की महत्ता बताते हुए एक कार्यकर्ता ने कहा कि वो दलित समाज के रहबर थे और उस मनुवाद को उखाड़ के फेंकना चाहते थे जिसमें दलित समाज फंसा हुआ था.
भीम आर्मी कार्यकर्ता अंजलि ने कहा, ‘अगर वो हमारा एक मंदिर गिराएंगे तो हम उनके 10 मंदिर गिराएंगे. हम मनुवादियों से डरते नहीं हैं.’ वहीं, अलीगढ़ से आईं राष्ट्रीय महिला सलाहकार ने कहा, ‘संत रविदास ने जात-पात का बहिष्कार किया और बहुजन समाज में एकता बनाए रखी. हम चाहते हैं कि समाज में सौहार्द बरकरार रहे.’
दूसरी जगह ज़मीन के विकल्प वाले सवाल पर एक और कार्यकर्ता ने कहा कि अगर सरकार कहीं और ज़मीन देना चाहती है तो राम मंदिर के लिए भी कहीं और ज़मीन दे दे, संत रविदास के मामले में ही कहीं और ज़मीन दिए जाने की बात क्यों की जा रही है.
इसमें शामिल लोगों ने मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनीति किये जाने और इस सहारे दलित समाज को दबाने का प्रयास करने का आरोप लगाया. सुनील सम्राट ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये सब मनुवादी ताकतें करा रही हैं, ये सब आरएसएस करा रहा है.’
रैली में पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर बेहद आपत्तिजनक नारे लगाए गए. इन नारों को लेकर जब सवाल पूछा गया तो जवाब मिला कि जय-जयकार और हाहाकार दोनों ही नेतृत्वकर्ता की होती है. भीड़ में मौजूद लोगों में संत रविदास को लेकर ठीक-ठाक समझ थी.
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर भी दलितों के ग़लत इस्तेमाल के आरोप लगे और स्पीकर पर केजरीवाल मुर्दाबाद के नारे लगाए जा रहे थे. सुनील ने कहा, ‘पहले केजरीवाल झाडू लाए और पूरे दलित समाज को जोड़ लिया और फिर इस्तेमाल करके छोड़ दिया.’ हालांकि, सीएम केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) इस मामलें में दोष भाजपा और केंद्र सरकार पर मढ़ती आई है.
यह भी पढ़ेंः मार्क्स से काफी पहले संत रविदास ने देखा था समतामूलक समाज का सपना
क्या है पूरा मामला
विवाद के केंद्र में नई दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित 15वीं सदी के महान संत रविदास का एक मंदिर है जिसे ढहा दिया गया. ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर जहां स्थिति था वहां संत रविदास तीन दिनों तक ठहरे थे. कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक तुगलकाबाद में मौजूद ये परिसर 12,350 स्क्वॉयर यार्ड का है जिसमें 20 कमरे हैं और एक हॉल भी है.
डीडीए का दावा रहा है कि मंदिर अवैध तरीके से कब्ज़ा की गई ज़मीन पर बना था. मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम आर शाह ने नौ अगस्त को सबसे ताज़ा सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के मुखिया और दिल्ली सरकार के सचिव को ये सुनिश्चित कराने का आदेश दिया था कि 13 अगस्त से पहले मंदिर गिरा दिया जाए. 10 अगस्त को मंदिर गिरा दिया गया.
संत रविदास जयंति समिति समारोह के ज़मीन पर दावे को सबसे पहले ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त 2018 को ख़ारिज किया जिसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया. समिति को 20 नवंबर 2018 को हाई कोर्ट से भी इसे निराशा हाथ लगी. इस साल आठ अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को पलटने से इंकार करते हुए मंदिर गिराए जाने का आदेश दिया जिस पर एपेक्स कोर्ट अंत तक कायम रहा.