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Wednesday, 1 January, 2025
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राज्यसभा महासचिव PC मोदी को मिला तीसरा सेवा विस्तार, पूर्व IRS केंद्र सरकार के लिए कैसे हैं ज़रूरी

मोदी को बतौर सीबीडीटी प्रमुख उनके कार्यकाल के बाद से ही ‘सरकार की स्वीकृति’ मिली हुई है, जब यह अनुमान लगाया जा रहा था कि आयकर विभाग का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों पर दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: फरवरी 2021 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्व भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी पी.सी. मोदी को तीसरा सेवा विस्तार दिया, जिससे वे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले अध्यक्षों में से एक बन गए हैं. उस साल मई में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद कुछ महीनों तक, 1982 बैच के अधिकारी को कोई पोस्टिंग नहीं मिली, जिससे उनके सहकर्मी काफी हैरान थे.

फिर, अचानक नवंबर में राज्यसभा के तत्कालीन महासचिव पी.पी.के. रामाचार्युलु, जिन्हें दो महीने पहले ही नियुक्त किया गया था, को अप्रत्याशित रूप से पद से हटा दिया गया और मोदी को उच्च सदन के सचिवालय के प्रमुख के रूप में लाया गया.

पिछले हफ्ते, मोदी — राज्यसभा महासचिव के रूप में सेवा करने वाले पहले आईआरएस अधिकारी — को पद पर दूसरा विस्तार दिया गया था. दिसंबर 2022 में, उन्हें पहला दो साल का विस्तार दिया गया था. इस नियुक्ति के साथ, जो एक साल के लिए है, वे अब 31 दिसंबर, 2025 तक इस पद पर कार्य करेंगे.

26 दिसंबर, 2024 की अधिसूचना में कहा गया है, “माननीय सभापति, राज्यसभा श्री पी.सी. मोदी, आईआरएस (सेवानिवृत्त) की नियुक्ति को मौजूदा नियमों और शर्तों पर 31 दिसंबर, 2025 तक या अगले आदेशों तक, जो भी बाद में हो, तक बढ़ाते हैं.”

विशेषज्ञों ने कहा कि लोकसभा या राज्यसभा के महासचिव को सेवा विस्तार देना कोई असामान्य बात नहीं है.

पूर्व लोकसभा महासचिव और संवैधानिक विशेषज्ञ सुभाष सी. कश्यप ने कहा, “लोकसभा या राज्यसभा के महासचिव को सेवा विस्तार दिया जाना कोई असामान्य बात नहीं है. राज्यसभा के मामले में कार्यकाल की नियुक्ति और विस्तार करना पूरी तरह से उपराष्ट्रपति का विशेषाधिकार है. मैंने खुद पांच साल तक लोकसभा में काम किया है.”

आईआरएस के उनके सहयोगियों का कहना है कि फिर भी, पीसी मोदी का मामला राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, जिन्हें सीबीडीटी अध्यक्ष के रूप में तीन और राज्यसभा महासचिव के रूप में दो बार सेवा विस्तार मिला है.

एक आईआरएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “इस सरकार के लिए आजमाए हुए और परखे हुए अधिकारियों पर भरोसा करना आम बात है. सीबीडीटी में अपने कार्यकाल के दौरान ही उन पर सरकार की मुहर लगी हुई है, इसलिए उनका सेवा विस्तार अपेक्षित ही है.”

उन्होंने कहा, “राज्यसभा महासचिव के रूप में, वे अध्यक्ष (जगदीप धनखड़) के मुख्य सलाहकार हैं. अध्यक्ष चेहरा होता है, लेकिन महासचिव ही नियम, मिसाल, मूल रूप से सदन को अपनी इच्छानुसार चलाने के लिए सभी कानूनी-संवैधानिक बैंडविड्थ प्रदान करता है.”


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‘एक शानदार अधिकारी’

दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएट मोदी योग्यता से वकील भी हैं. उक्त अधिकारी ने कहा कि इस वजह से वे हमेशा “ऑपरेशन मैन” से ज़्यादा “टैक्स पॉलिसी मैन” बने.

उन्होंने कहा, “आखिरकार नीति ही आपको दूर-दूर तक सोचने की अनुमति देती है और आपकी अलग सोच को भी लोगों के सामने लाती है. वे हमेशा एक ऐसे अधिकारी रहे हैं जिन्होंने अपना टैलेंट दिखाया है.”

मुंबई में जन्मे मोदी ने 2017 तक अहमदाबाद में आयकर विभाग के प्रधान मुख्य आयुक्त के रूप में काम किया, इससे पहले कि उन्हें उसी पद पर मुंबई भेजा जाता, ऐसी खबरों के बीच कि शहर में कुल कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह खराब रहा है.

एक अन्य आईआरएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “उन्होंने कई वर्षों तक गुजरात में काम किया और फिर 2017 में आयकर के मामले में सबसे महत्वपूर्ण शहर मुंबई चले गए, उस समय ऐसा माना जाता था कि टैक्स कम हैं. वे कई वर्षों से इस सरकार के सबसे भरोसेमंद अधिकारी रहे हैं.”

मुंबई में अपने कार्यकाल के बाद मोदी को सीबीडीटी में लाया गया, जहां उन्होंने अध्यक्ष के रूप में पदोन्नत होने से पहले दो साल तक सदस्य के रूप में कार्य किया.

अधिकारी ने कहा, “इससे वे शीर्ष पद के लिए दिल्ली आने से पहले गुजरात में आयकर विभाग का नेतृत्व करने वाले दूसरे सीबीडीटी अध्यक्ष बन गए.”

मोदी के पूर्ववर्ती सुशील चंद्रा ने भी सीबीडीटी प्रमुख बनने से पहले गुजरात में आयकर विभाग का नेतृत्व किया था. सेवानिवृत्ति के बाद, चंद्रा को मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) नियुक्त किया गया.

सीबीडीटी प्रमुख के रूप में विवादास्पद कार्यकाल

सीबीडीटी में सदस्य (जांच) के पद पर मोदी ने पूरे देश में आयकर विभाग की जांच शाखा के कामकाज की देखरेख की.

बतौर अध्यक्ष उन्होंने फेसलेस कराधान की शुरुआत के साथ कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया — टैक्स सिस्टम को “बिना रुकावट के, फेसलेस” बनाने के लिए मोदी सरकार का एक प्रमुख सुधार.

उक्त दूसरे अधिकारी ने कहा, “यह एक बड़ा बदलाव था और उन्होंने इसे काफी सहजता से किया, लेकिन यह एक ऐसा बदलाव था जिसने आईआरएस अधिकारियों को नाखुश कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि नई प्रणाली ने उन्हें अप्रासंगिक बना दिया है. इन शिकायतों को दूर करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया.”

उनके कार्यकाल के दौरान, व्यापक अटकलें लगाई गईं कि विभाग सत्तारूढ़ दलों की एक विस्तारित शाखा के रूप में काम करता है, जो कथित तौर पर राजनीतिक विरोधियों पर दबाव बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं.

उदाहरण के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, चुनाव आयोग (ईसी) ने मोदी को तत्कालीन राजस्व सचिव एबी पांडे के साथ बुलाया, ताकि चुनावों से पहले विपक्षी नेताओं पर छापेमारी की एक सीरीज़ के बारे में बताया जा सके.

निर्वाचन आयोग ने वित्त मंत्रालय को “दृढ़ता से सलाह” दी कि आयकर एजेंसी की कार्रवाई “तटस्थ” और “भेदभाव रहित” होनी चाहिए.

यह सलाह सीबीडीटी द्वारा मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ के रिश्तेदारों और सहयोगियों पर छापेमारी के बाद आई थी. यह एक ऐसा चलन था जो चुनावों के बाद भी जारी रहा.

उदाहरण के लिए अप्रैल 2021 में, आयकर विभाग ने तमिलनाडु चुनाव से ठीक चार दिन पहले द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) प्रमुख एम.के. स्टालिन के दामाद पर छापा मारा.

अक्टूबर 2020 में विभाग ने राज्य विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले बिहार में कांग्रेस पार्टी के कार्यालय पर छापा मारा. इससे पहले, उस साल जुलाई में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रमुख सहयोगियों पर भी इसी तरह की छापेमारी हुई थी. फरवरी 2020 में आयकर टीमों ने तत्कालीन कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर तीन दिनों तक छापेमारी की.

यह केवल राजनीतिक दलों द्वारा विभाग के दुरुपयोग के आरोप नहीं थे. जून 2019 में एक जूनियर सहयोगी ने मोदी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे.

उनके खिलाफ एक अभूतपूर्व शिकायत में, मुंबई में आयकर (यूनिट 2) की तत्कालीन मुख्य आयुक्त अलका त्यागी ने आरोप लगाया कि मोदी ने उन्हें एक “संवेदनशील मामले” को दबाने के लिए एक “चौंकाने वाला” निर्देश दिया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि एक विपक्षी नेता के खिलाफ “सफल तलाशी” कार्रवाई के कारण उन्होंने अपना पद “सुरक्षित” कर लिया था. शिकायत के दो महीने बाद, मोदी का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया.

राज्यसभा महासचिव बनने वाले पहले आईआरएस अधिकारी

नवंबर 2021 में मोदी उच्च सदन के महासचिव के पद पर नियुक्त होने वाले पहले आईआरएस अधिकारी बने. उनकी नियुक्ति से पहले, यह पद हमेशा सचिव या सेवानिवृत्त कानून अधिकारियों के पद के सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पास होता था.

उनकी नियुक्ति ने लोगों को इसलिए भी चौंकाया क्योंकि उनके पूर्ववर्ती रामाचार्युलु को बिना किसी कारण के हटा दिया गया था, जिससे वे राज्यसभा के इतिहास में दूसरे सबसे कम समय तक सेवा देने वाले महासचिव बन गए.

उक्त आईआरएस अधिकारी ने कहा, “लेकिन जो बात दिलचस्प है वह यह है कि उन्हें (मोदी) भी शुरू में केवल नौ महीने के लिए नियुक्त किया गया था. ऐसा लगा जैसे यह एक परीक्षा है क्योंकि आम तौर पर महासचिवों को दो साल की अवधि के लिए नियुक्त करने की प्रथा है.”

फिर भी, मोदी की नियुक्ति पूर्व सीबीडीटी अध्यक्षों को संवैधानिक पदों पर पदोन्नत करने की बड़ी प्रवृत्ति का एक हिस्सा मात्र थी, जबकि उनके तत्काल पूर्ववर्ती चंद्रा को सीईसी नियुक्त किया गया था, के.वी. चौधरी, जो 2014 में सीबीडीटी के अध्यक्ष थे, को मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाया गया.

एक पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा, “मोदी के उदय को आईएएस को शक्तिहीन करने के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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