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Friday, 22 November, 2024
होमदेशदिल्ली के अस्पतालों के बाहर भयावह हालात- मरीजों को देखने वाला कोई नहीं, एंबुलेंस की कतारें, बेड के लिए गुहार

दिल्ली के अस्पतालों के बाहर भयावह हालात- मरीजों को देखने वाला कोई नहीं, एंबुलेंस की कतारें, बेड के लिए गुहार

एक महिला ने अपना पति खो दिया क्योंकि कोई उसे देखने वाला तक नहीं था, वहीं कई अस्पतालों से लौटाए जाने के बाद यहां पहुंचे एक 38 वर्षीय व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया गया- जीटीबी, एलएनजेपी अस्पतालों के बाहर स्थिति एकदम भयावह नजर आ रही है.

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नई दिल्ली: दिल्ली के गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बाहर एक व्यक्ति ऑक्सीजन मास्क अपने चेहरे पर लगाने के बावजूद सांस लेने में हो रही परेशानी के बीच किसी चमत्कार की प्रार्थना करता हुआ सुना जा सकता है.

वह यही गुहार लगा रहा है, ‘भगवान…कोई चमत्कार कर दे…मुझे बचा ले भगवान, हे राम, कोई चमत्कार कर दे…

एक तरफ ये व्यक्ति कराह रहा है, वहीं पास में एक बुजुर्ग व्यक्ति, जिसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, स्ट्रेचर पर पड़े-पड़े अपनी करवट बदलने की कोशिश कर रहा था क्योंकि उसे ऑक्सीजन सपोर्ट के बावजूद भी सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. वहीं, एक अन्य मरीज को इतनी तेज खांसी आ रही है कि उसके आसपास गूंज रही अन्य तमाम आवाजें धीमी पड़ गई हैं.

दिप्रिंट शनिवार सुबह 12 बजे जब जीटीबी अस्पताल पहुंचा, तो उसने पाया कि आठ मरीज किसी मेडिकल सहायता के बिना इमरजेंसी वार्ड के बाहर जमीन पर या स्ट्रेचर पर पड़े थे.

उस समय इन मरीजों को किसी भी डॉक्टर/नर्स ने अटैंड नहीं किया था. हालांकि, सभी को ऑक्सीजन का सपोर्ट मिला हुआ था और उनके कंसेंट्रेटर्स एक सिंगल ऑक्सीजन टैंक से जुड़े थे.

एक युवक, जो इन आठ मरीजों में से एक के परिवार का सदस्य था, अपनी बीमार मां को गोद में लिटाकर कुछ आराम दिलाने की कोशिश कर रहा था, जबकि दूसरा कुर्सी की तलाश में जुटा था ताकि उसके दादा कम से कम बैठ तो सकें.

अपना नाम न बताने के इच्छुक उसके 21 वर्षीय पोते ने कहा, ‘मैं किसी तरह सुरक्षा गार्ड से कुर्सियां लेकर आया. यहां बहुत बुरा हाल है. वे एक बूढ़े, बीमार आदमी को बैठने के लिए प्लास्टिक की कुर्सी तक नहीं दे सकते हैं! हमें पूरी तरह से भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.’

इन सभी मरीजों के पास बताने के लिए ऐसी ही आपबीती हैं— जो हम इस जानलेवा दूसरी लहर के बीच सुन रहे हैं.

इन मरीजों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए इनके परिजन सुबह-सुबह ही घर से निकल पड़े थे लेकिन वहां पर इनकार कर दिए जाने के बाद वे दिन भर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटते रहे. वह उम्मीद कर रहे थे कि कहीं तो कोई डॉक्टर, नर्स या स्वास्थ्यकर्मी कम से कम उनके अहम पैरामीटर्स की जांच कर लेगा या फिर कोई उन्हें एडमिट करने को तैयार हो जाएगा.

हालांकि, यह स्थिति सिर्फ जीटीबी अस्पताल तक ही सीमित नहीं थी क्योंकि अन्य प्रमुख अस्पताल भी मरीजों के प्रति इस तरह का रवैया अपनाए हुए हैं.

अपने भाई को मध्य दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में भर्ती कराने वाली पूजा कहती हैं, ‘यह रवैया ठीक नहीं है, अस्पताल हमारे साथ ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हम कोई जानवर या अछूत हों. कम से कम हमारे मरीजों को देखो तो सही.’

राजधानी में पांच अस्पतालों की तरफ से ठुकराए जाने के बाद वह आखिरकार कुछ कांटैक्ट का इस्तेमाल करके अपने भाई प्रदीप कुमार को शुक्रवार रात 11 बजे किसी तरह भर्ती करा पाईं.

पूजा ने बताया, ‘उसका दोस्त मुख्यमंत्री कार्यालय में एक परिचित के पास गया और उसके पैरों पर गिर गया. इसके बाद हमें एलएनजेपी में किसी तरह जगह मिल पाई.’

एक तरफ जहां मरीज अस्पतालों की तरफ से उदासीनता के बारे में शिकायत करते हैं, वहीं स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि वे जरूरत से ज्यादा काम के बोझ से दबे हैं.

डॉक्टर, नर्स और अस्पताल के अन्य कर्मचारी अपनी पूरी ऊर्जा लगाकर काम कर रहे हैं, जैसे कि हालात है. लगातार इधर-उधर भाग रहे हैं, अपने पीपीई किट के कारण पसीने में डूबे हुए हैं, मरीजों की देखभाल कर रहे थे, उन्हें बुरी खबरें दे रहे थे, भर्ती करने के लिए उनकी गुहार को नकार रहे हैं क्योंकि उनके बस में कुछ है ही नहीं.

डॉक्टर न केवल जरूरत से ज्यादा काम कर रहे हैं बल्कि पीड़ित परिवारों की तरफ से हिंसा का खतरा भी लगातार झेल रह हैं, उनके चलने-फिरने का ढंग बता रहा है कि वे कितने ज्यादा थके हुए हैं.

एनएनजेपी में एक डॉक्टर भागता हुआ आया, सड़क के दूसरी तरफ स्थित एक छोटी-सी पान की दुकान से एक छोटा स्नैक का पैकेट लिया, अपनी किट बदली और फिर दाईं और भागते हुए चला गया, यह दर्शाता है कि उसके पास बात करने का भी समय नहीं है.

जीटीबी अस्पताल के एक स्वास्थ्यकर्मी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमारे पास बिल्कुल भी फुर्सत नहीं है. इमरजेंसी कक्ष को देखिए, इसमें लगभग 15 बेड हैं और कम से कम 70 मरीज अंदर है. डॉक्टर भी थक जाते हैं.’

उसने आगे कहा, ‘हमारे अस्पताल ने उन्हें कम से कम ऑक्सीजन सिलेंडर तो दिया है.’

Dead body of a 35-year-old man lay unattended at GTB Hospital for more than 5 hours Friday | Shubhangi Misra | ThePrint
जीटीबी अस्पताल में एक 35 वर्षीय व्यक्ति का शव, जिसका उपचार नहीं हो सका | शुभांगी मिसरा | दिप्रिंट

मरीजों को देखने वाला कोई नहीं

जीटीबी अस्पताल में एक महिला ने जब दिप्रिंट के संवाददाताओं को मरीजों से बात करते देखा तो वह उनके पास पहुंच गई. उसने रुआंसे स्वर में कहा, ‘कृपया मेरी मदद कीजिए. उसकी आंखें एकदम बोझिल और बहुत ज्यादा रोने के कारण लाल नज़र आ रही थीं.’

उसने कहा, ‘यहां कोई भी मेरी मदद नहीं कर रहा है. मेरा पति शाम 7 बजे से वहां है (उसने एक शव की ओर इशारा करते हुए कहा) बस, मुझे किसी मुर्दाघर का नंबर दे दें.’

बुराड़ी से आई इस महिला ने कहा कि पूरे दिन एक भी डॉक्टर ने उसके पति को देखने की जहमत नहीं उठाई, जिसे सुबह सांस लेने में थोड़ी तकलीफ थी और अगर समय पर मदद मिल जाती तो उसे आसानी से बचाया जा सकता था.

उसका पति के जाने के बाद अब उनके परिवार में दो छोटी बच्चियां बची हैं.

एक अन्य मरीज 38 वर्षीय विक्रम सिंह को एलएनजेपी लाए जाने के बाद मृत घोषित कर दिया गया. विक्रम सिंह की उस दौरान एंबुलेंस में ही मृत्यु हो गई जबकि उनके भाई और बहनोई उसे भर्ती कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काट रहे थे.

अपना नाम न बताने वाले विक्रम के बहनोई, जो दिल्ली स्थित एक संगठन में सिक्योरिटी मैनेजर हैं, ने कहा, ‘शुरू में तो एंबुलेंस मिलने में काफी मुश्किल हुई. हमें जो एंबुलेंस मिली उसमें ऑक्सीजन सपोर्ट नहीं था. यहां तक कि उसमें ऑक्सीमीटर तक नहीं था जिससे एसपीओटू का स्तर जांचा जा सके.’

परिजनों ने कहा कि विक्रम को किसी डॉक्टर ने भी नहीं देखा. उसने कोविड से जुड़ी कॉम्लीकेशन के कारण दम तोड़ दिया. शव को डिस्पोज करने में भी अस्पताल की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है.

शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए शव वाहन कम से कम 7,000 रुपये मांग रहे थे. इसलिए, परिवार ने शव को अपनी कार की पिछली सीट पर रखा और उसे अस्पताल के बाहर पार्क कर दिया.

बहनोई ने कहा, ‘हमने अभी तक उसकी पत्नी और बच्चों को सूचित नहीं किया है. हम थोड़ी देर यहीं रुकने वाले हैं और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या करना चाहिए.’

जिस एंबुलेंस में विक्रम का शव रखा था, उसके ड्राइवर ने कहा, ‘पहले मैं अपनी एंबुलेंस में प्रतिदिन ऐसी दो-तीन घटनाएं देखता था लेकिन अब मेरा विश्वास करो, हर दिन 25-30 लोग इस तरह दम तोड़ देते हैं, जब मैं उन्हें लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर काटता रहता हूं.’

विक्रम के शरीर को जैसे ही एंबुलेंस से बाहर निकाला गया, उसकी बेजान आंखों की एक झलक सामने आई जो अब भी खुली हुई थीं. इसकी तरह ही हजारों जिंदगियां अनदेखी के कारण दम तोड़ रही हैं.

A man tries to comfort his mother having breathing troubles at GTB Hospital | Shubhangi Misra | ThePrint
जीटीबी अस्पताल में सांस की समस्या से जूझ रही मां को संभालता बेटा | शुभांगी मिसरा | दिप्रिंट

रुपया-पैसा सब बेकार है

जिस तरह से संपन्न पृष्ठभूमि वाले तमाम लोग अपने मरीजों के लिए अस्पताल में एक बेड पाने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं, यह दिखाता है कि महामारी ने यह बता दिया है कि कभी-कभी रुपया-पैसा भी एकदम बेमानी हो जाता है.

एलएनजेपी में भर्ती एक मरीज के दोस्त नितिन मुकेश ने कहा, ‘पैसे का क्या करेंगे? इस समय यह कोई काम नहीं आ रहा है. मैंने खुद अपनी आंखों से देखा कि सर गंगा राम में लोग पैसों से भरे बैग लिए खड़े थे और प्रशासन से अपने प्रियजनों को भर्ती करने की गुहार लगा रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. पैसे का इस समय कोई मूल्य नहीं रह गया है.’

हालांकि, महामारी के दौर में भी मौके का फायदा उठाने से लोग चूक नहीं रहे हैं.

मुकेश जिस एंबुलेस से अपने दोस्त को लेकर अस्पताल में भर्ती कराने आया था, उसने दिनभर के 26,000 रुपये लिए थे.

उसने बताया, ‘वह हमें चार अस्पतालों में ले गया और हमें हर अस्पताल तक ले जाने के लिए 6,500 रुपये मांगे. उनका कहना था कि यह न्यूनतम मूल्य है. हम तो इसे चुका सकते थे लेकिन यह देखकर मेरा दिल फटा जा रहा कि अस्पताल और फॉर्मेसी में तमाम लोग फूट-फूटकर रो रहे होते हैं क्योंकि उनके पास दम तोड़ रहे अपने मित्रों और परिजनों को बचाने के लिए कोई साधन नहीं होता.’

एलएनजेपी में कुछ मरीज हैंडी ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ बैठे थे कि कहीं अस्पताल आपूर्ति खत्म न हो जाए.

अपना नाम न बताने की शर्त पर एक मरीज के परिजन ने कहा, ‘हालात अभी बहुत खराब हैं. कौन जाने आगे क्या होगा? हम कोई चांस नहीं लेना चाहते. कहीं वे ये न कह दें कि खुद ही ऑक्सीजन सिलेंडर लाना होगा, इसलिए हम पूरी तरह से तैयार हैं.’

उसका कोई दोष भी नहीं है. शुक्रवार को रोहिणी के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से ही 20 लोगों की मौत हो गई थी.

इस तरह के तनाव और आपदा के बीच लोग मदद की पेशकश करने को आगे आ रहे हैं.

जीटीबी अस्पताल के लोगों का एक समूह चर्चा कर रहा था कि बुराड़ी से आई उस महिला की मदद कैसे की जाए जो अपने पति को खो चुकी है, अगर उसका परिवार नहीं आता है. वहीं कुछ लोग अन्य ऐसे मरीजों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में जुटे हैं जिसके साथ देखभाल के लिए कोई युवा परिजन नहीं हैं.

एलएनजेपी अस्पताल में मुकेश ने कहा, ‘मेरा नंबर ले लो और जो जरूरतमंद हो उसे दे देना. ऑक्सीजन, पैसा, रेमेडिसिविर, जो भी संभव होगा मैं पूरी कोशिश करूंगा.’

अस्पतालों के बाहर कतार में एंबुलेंस खड़ी है, मरीजों के परिजन अपने प्रियजनों के लिए एक बेड उपलब्ध कराने की लगातार गुहार लगा रहे हैं, उनके प्रियजन ठीक से सांस लेने को तरस रहे हैं. तड़के 3 बज रहे थे और अभी तक सुबह नहीं हुई है. ऐसा लग रहा है कि आखिर कब सुबह होगी.

Relatives sitting outside at LNJP | Shubhangi Misra | ThePrint
एलएनजेपी अस्पताल के बाहर मरीजों के परिजन | शुभांगी मिसरा | दिप्रिंट

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3 टिप्पणी

  1. Where is Mr Modi with his promise of Achchhe Din?
    Today, Nepal is also suffering from the continuing scourge of misrule at the hands of politicians whom India’s wise men like SD Muni, S Jaishankar, Ashok Mehta, the success of Indian diplomats in Kathmandu and RAW saboteurs have trained to become incurable crooks too.
    As things stand, India has a polity that has kept its people the most impoverished in the world even as politicians retain the luxury of pursuing their own myopic or corrupt agenda.
    One of the greatest Indian politicians, Late Jai Prakash Narain had seen it coming all the way back in the late Fifties of the last century and had written “A Plea for the Reformulation of Indian Polity” under which he had proposed 5-tiered Panchayat system for India rising from the gram panchayats. But of course, such erudite and honest politicians remain a rare exception in India’s political firmament.

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