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Wednesday, 29 October, 2025
होमदेश'नागाओं का सब्र टूट रहा है': NSCN(IM) के वरिष्ठ नेता की हिदायत केंद्र जल्द नागा मुद्दा सुलझाए

‘नागाओं का सब्र टूट रहा है’: NSCN(IM) के वरिष्ठ नेता की हिदायत केंद्र जल्द नागा मुद्दा सुलझाए

थुइंगालेंग मुइवा के डिप्टी वी.एस. आतम का कहना है कि शांति तभी स्थापित हो सकती है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से हाथ मिलाने के लिए आगे आएं. वे आगे कहते हैं कि नागा शांति से रहने के लिए तैयार हैं.

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सेनापति, मणिपुर: नागा राजनीतिक समस्या जितनी जल्दी भारत सरकार सुलझा ले, उतना ही बेहतर होगा क्योंकि जिस गति से शांति वार्ता खिंच रही है, बहुत से नागा लोगों का सब्र खत्म हो जाएगा. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा गुट) के वरिष्ठ नेता वी.एस. आतम ने दिप्रिंट से खास बातचीत में यह बात कही.

आतम, जो एनएससीएन (आईएम) के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा के डिप्टी हैं, मणिपुर के सेनापति जिले में मुइवा के नागरिक स्वागत समारोह में भाग लेने आए हैं. मुइवा ने 22 अक्टूबर को उखरूल जिले के अपने पुश्तैनी गांव सोमदल का 50 साल से अधिक समय बाद दौरा किया था और इसके बाद बुधवार को सेनापति पहुंचे, जो एक और नागा-बहुल जिला है, नागरिक स्वागत समारोह में शामिल होने के लिए.

मुइवा के डिप्टी के अनुसार, अगर शांति वार्ता में और देरी हुई तो यह पूरी प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है. उन्होंने कहा, “यह एनएससीएन की वजह से नहीं है. हम 10 साल से इंतजार कर रहे हैं. सोचिए, संघर्षविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए 28 साल हो गए हैं. लेकिन भारत सरकार ने अभी तक इसके नतीजों को नहीं समझा है.”

एनएससीएन (आईएम) पिछले दो दशकों से अधिक समय से भारत सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल है. दोनों पक्षों ने अगस्त 2015 में फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे ताकि देश में सबसे पुराने उग्रवादी आंदोलन को खत्म किया जा सके.

अब 10 साल बीत चुके हैं, लेकिन शांति वार्ता में खास प्रगति नहीं हुई है. मतभेद के केंद्र में एनएससीएन (आईएम) की “ग्रेटर नागालिम” या “ग्रेटर नागालैंड” बनाने की मांग है, जिसमें असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नागा-बहुल क्षेत्रों को नागालैंड में मिलाने के साथ ही एक अलग झंडा और संविधान की मांग शामिल है.

केंद्र सरकार ने इन मांगों को मानने से इनकार कर दिया है.

आतम ने कहा, “भारत सरकार इनकार करे या मान ले, इससे हमें फर्क नहीं पड़ता. हमें अधिकार है. भारत सरकार ने नागा इतिहास की विशिष्टता को स्वीकार किया है, जिसका मतलब है कि नागाओं ने भारतीय संघ में शामिल नहीं हुए हैं. हमारे पास कानूनी अधिकार है और हमारा रुख साफ है. हिंसा की शुरुआत हमने नहीं की. भारत सरकार ने ही नागाओं पर यह हिंसा थोपी है.”

मुइवा के डिप्टी ने आगे कहा कि शांति तभी स्थापित हो सकती है जब दोनों पक्ष हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ें. “सिर्फ एक हाथ से हाथ नहीं मिल सकता. एकतरफा रूप से एनएससीएन (आईएम) शांति नहीं कर सकता. अगर भारत नागाओं के साथ शांति से रहना चाहता है तो नागा इसके लिए तैयार हैं.”

‘BTS लाइनों पर स्वायत्तता स्वीकार्य नहीं’

आतम ने कहा कि नागा नेशनल काउंसिल के गठन से लेकर 1955 तक नागाओं ने भारत सरकार के खिलाफ उंगली तक नहीं उठाई. “हम इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की पूरी कोशिश कर रहे थे, बातचीत के जरिए समाधान ढूंढना चाहते थे. हम बार-बार दिल्ली गए. एक बार तो हमारे नेता श्री (अंगामी जपु) फिजो को कोलकाता में जेल में डाल दिया गया था. भारत सरकार ने कई नागाओं का अपमान किया, उन्हें बेइज्जत किया. इसके बावजूद हमारे नेताओं ने लोगों से संयम बनाए रखने को कहा.”

लेकिन मुइवा के डिप्टी ने साफ कहा कि बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की तर्ज पर छठी अनुसूची के तहत प्रशासनिक, राजनीतिक और वित्तीय स्वायत्तता नागाओं को स्वीकार नहीं है. उन्होंने कहा, “क्योंकि राजनीतिक रूप से नागा स्वतंत्र हैं.”

उखरूल में मुइवा का भाषण, जो आतम ने उनकी ओर से दिया, में चेतावनी दी गई थी कि अगर केंद्र सरकार एम्सटर्डम संयुक्त वक्तव्य और 2015 के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट की भावना और शब्दों का पालन नहीं करती है, तो वे सशस्त्र संघर्ष फिर से शुरू कर सकते हैं. इन समझौतों में आधिकारिक रूप से ‘नागालिम की संप्रभुता’, ‘नागा राष्ट्रीय झंडा’ और ‘नागा राष्ट्रीय संविधान’ को मान्यता दी गई है.

जब उनसे पूछा गया कि (सशस्त्र संघर्ष दोबारा शुरू करने) की स्थिति में क्या यह आज के नागाओं, खासकर युवाओं, को स्वीकार्य होगा, तो आतम ने कहा कि सैन्य दृष्टि से, ताकत और संसाधनों के लिहाज से नागाओं की तुलना भारत से नहीं की जा सकती.

उन्होंने कहा, “लेकिन 1940 और 1950 के दशक को याद कीजिए. अधिकांश नागा लगभग नग्न थे, हम पूरी तरह अंधकार में थे. फिर भी 1960 के दशक में नेहरू नागाओं के साथ शांति स्थापित करने की जल्दी में थे. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए. उनके निधन के बाद भारत सरकार और नागालैंड की संघीय सरकार के बीच संघर्षविराम हुआ. और प्रधानमंत्री स्तर पर वार्ताएं हुईं. छह दौर की बातचीत हुई. भारत सरकार बहुत मजबूत हो सकती है, बहुत बड़ी हो सकती है, लेकिन उसकी भी सीमाएं हैं. नागा कमजोर हैं, छोटे हैं, लेकिन नागा कभी झुकेंगे नहीं.”

नागा राजनीतिक और नागरिक समाज समूहों के बीच अंतर

NSCN नेता ने यह भी आरोप लगाया कि भारत सरकार नागाओं को आपस में बांटे रखने के लिए लगातार कोशिश कर रही है.

उन्होंने कहा, “हां, भारत सरकार ने इन समूहों में से कई को अपने पक्ष में कर लिया है. कोई भी एक व्यक्ति भी गुट बना सकता है. फिर भी भारत सरकार उसे मान्यता दे देती है और फंड भी करती है. यही सच्चाई है. भारत सरकार बहुतों को खरीद सकती है, लेकिन सबको नहीं.”

नागा लोगों में उग्रवादी समूहों द्वारा वसूले जा रहे टैक्स और जबरन वसूली को लेकर बढ़ती नाराजगी पर पूछे गए सवाल के जवाब में एटम ने कहा, “टैक्स वसूली को जबरन वसूली नहीं कहा जा सकता. भारत सरकार को यह मानना होगा कि उन्होंने कई गुट बनाए हैं और चाहते हैं कि ये गुट जबरन वसूली में शामिल हों. ताकि हमारे आंदोलन की छवि खराब हो.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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