नौंगला आड़ (पानीपत): जब 31 साल के प्रदीप राठी को पता चला के वो कोविड-19 पॉज़िटिव हैं और सांस लेने में उन्हें दिक्कत हो रही है तो उन्होंने मेडिकल हेल्प लेने की कोशिश की. लेकिन, इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
इसलिए वह पानीपत से आठ किलोमीटर दूर नंगला आड़ गांव में अपने खेत पर अमरूद के पेड़ों के नीचे लेट गया. उसका कहना है कि ऐसा करने से वह ठीक हो गया.
राठी ने कहा कि सांस लेने में तकलीफ होने के बाद उन्हें लगा कि वह मरने वाले हैं. ‘तो अगर मैं मरने वाला हूं, बेहतर है कि अपने खेत पर मरूं.’
‘जब से मैं पैदा हुआ हूं तब से इन पेड़ों ने मुझे खिलाया है और मुझे जिंदा रखा है. तो जब मुझे लगा कि मैं मरने वाला हूं, मैंने कहा कि मैं अपने खेत पर मरूंगा.. . मैं खाट लेकर गया और पेड़ों के नीचे डालकर लेट गया. और देखिए, उन्होंने मेरा इतनी अच्छी तरह से इलाज कर दिया. प्रकृति ठीक कर देती है. राठी ने कहा, मैं तुरंत बेहतर महसूस करने लगा.. ‘मैंने पढ़ा है कि पेड़ दुनिया के फेफड़े हैं, ऑक्सीजन का स्रोत हैं.’
6 मई से लेकर अगले सात दिनों तक राठी सिर्फ अपने पेट के बल लेटे रहते थे और अपने खेत के आस-पास घूमते रहते थे. गांव के लोग उनसे बातचीत करते थे लेकिन दूर से.
कोई ऑक्सीमीटर या ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं
राठी का कहना है कि उन्हें अमरूद के पेड़ों पर आस्था थी क्योंकि उनके पास कोई और चारा नहीं था. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि पेड़ों के नीचे बैठना ऑक्सीजन के स्तर को बेहतर करने में मदद नहीं करता है.
राठी को 30 अप्रैल को कोविड-19 के लक्षणों का अनुभव होने लगा तो उन्होंने खुद को अलग कर लिया और घर के सामने अपनी दुकान में रहने लगे. 3 मई को वो कोविड पॉजिटिव पाए गए और 6 मई को पहली बार सांस लेने में परेशानी हुई. इसके बाद दिन में उन्होंने पेड़ों के नीचे बैठना शुरू कर दिया. वह रात में अपनी दुकान पर आराम किया करते थे.
अपने ऑक्सीजन सेचुरेशन स्तर की जांच करने के उन्होंने ऑक्सीमीटर पाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें ऑक्सीमीटर नहीं मिला. उन्होंने ऑक्सीजन सिलेंडर भी पाने की कोशिश की, लेकिन उपलब्ध नहीं हो सका.
इसके बाद उन्होंने गांव की आशा कार्यकर्ताओं से बात की और उनसे विटामिन सी, जिंक और पैरासिटामोल की टेबलेट्स प्राप्त कीं. राठी ने कहा, ‘मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि कंपन की वजह से पूरा बिस्तर हिलने लगा. मेरा फोन ऊपर-नीचे होता रहता था और बिस्तर हिलता रहता था. चूंकि आस-पास कोई डॉक्टर नहीं है इसलिए मैंने कहा कि अगर मुझे मरना है तो मैं यहां अपने खेत में मर जाऊंगा, किसी अस्पताल में नहीं.
उनका कहना है कि उन्होंने खोडपुरा में 6 किलोमीटर दूर नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से भी संपर्क किया, लेकिन थर्मामीटर या ऑक्सीमीटर नहीं मिल सका. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने सिर्फ दवाइयां भेजीं. हालांकि पीएचसी ने मुझे नियमित तौर पर जांच के लिए बुलाया.’
आशा कार्यकर्ता ने कहा, ‘मैंने उनसे (पीएचसी) मुझे थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर और अपने लिए मास्क देने के लिए कहा था लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला ह. उन्होंने मुझे केवल ये 7 दिन की दवाइयां दीं.
अस्पतालों में जाने में अनिच्छा
राठी किसी अस्पताल में जाने से कतराते थे क्योंकि उनके गांव के कई लोगों का मानना था कि एक बार भर्ती होने के बाद कोविड पॉजिटिव मरीज वहां से नहीं लौटते.
यहां ग्रामीण हर्बल मनगढ़ंत कहानी की कसम खाते हैं. राठी ने कहा, ‘मैंने अपनी दवाइयां ठीक लीं लेकिन यह हर्बल दवाएं हैं जो मेरे फेफड़ों को साफ कर देती हैं, मैं आपको बताऊंगा.
अस्पतालों में बेड की कमी पर राठी ने पेड़ों पर भरोसा किया. पानीपत दूसरी लहर के दौरान हरियाणा के सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में शामिल रहा था. 5-11 मई के बीच इसकी सकारात्मकता दर 48.3 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जो राज्य में सबसे अधिक है.
राठी का कहना है कि जब जिले में कोविड मामलों में उछाल देखा जा रहा था, तो अस्पताल के अधिकारी कोविड शव नहीं सौंप रहे थे. ‘किसी को भी मृत परिवार के सदस्य का चेहरा तक देखने की अनुमति नहीं थी और न ही उसे घर लाने की. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, यही कारण था कि मैं भी अस्पताल नहीं जाना चाहता था.
एसडीएम स्वप्निल पाटिल द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक 26 मई तक पानीपत में जिले के 30 सरकारी और निजी अस्पतालों में 49 वेंटिलेटर बेड, 150 आईसीयू बेड और 687 ऑक्सीजन बेड थे. 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की आबादी 12.05 लाख है.
4 मई को जब राठी के लक्षण बिगड़े तो स्टेट हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक पानीपत में 5,525 सक्रिय मरीज थे.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में हेल्थ सपोर्ट सिस्टम की वाइस प्रेसिडेंट डॉ. प्रीति कुमार ने हालांकि कहा, ‘पेड़ जादुई तरीके से ऑक्सीजन के स्तर को बहाल नहीं कर सकते. पेड़ों के नीचे बैठना इस मामले में सहायता नहीं कर सकता.’ उन्होंने कहा, ‘पेड़ों के नीचे बैठने से ऑक्सीजन का कॉन्सन्ट्रेशन नहीं बढ़ता है. तो यह जादुई तरीके से आपके ऑक्सीजन स्तर को बहाल नहीं करता.’
हालांकि, ताजी हवा के साथ प्रोनिंग, अच्छा पोषण और हाइड्रेशन एक मरीज को स्वस्थ होने में मदद करते हैं. उन्होंने कहा, ‘हाइपोक्सिया (जहां ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेशन 85 प्रतिशत से ऊपर रहता है), वाले मरीज़ ज़्यादातर रिकवर कर जाते हैं. खासकर प्रोनिंग की सहायता जो कि इन्होंने किया. जब तक शरीर एक साइटोकिन स्टॉर्म की अवस्था में नहीं पहुंचता जिसमें कि शरीर की अपनी ही प्रतिरक्षा प्रणाली रोगी पर हमला शुरू कर देती है तब तक रोगी की हालत स्थिर रहती है.’
राठी इस बीच एक किसान के रूप में कहते हैं कि वह प्रकृति के साथ बहुत निकटता से काम करते हैं, और वह अपनी जान बचाने के लिए इससे बेहतर किसी से संपर्क नहीं कर सकता था.
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