नई दिल्ली: चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग जल्द ही राज्य में पिछड़े वर्गों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
मध्य प्रदेश, जिसमें वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली सरकार है, इस साल के अंत में एक नई विधानसभा के लिए मतदान करने वाला है और एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग अगस्त तक अपनी रिपोर्ट पेश कर सकता है.
2021 में गठित आयोग राज्य सूची के 93 पिछड़े वर्गों के 10 हजार परिवारों का सर्वेक्षण कर उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा रहा है. अभ्यास के हिस्से के रूप में, आयोग जीवन स्तर, बुनियादी ढांचे तक पहुंच, संपत्ति के स्वामित्व, परिवार की शिक्षा, रोजगार के अवसर (सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में) जैसी चीजों का आकलन करेगा.
आयोग ने पिछले साल मई में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू को सर्वेक्षण के लिए मदद मांगी थी.
गौरीशंकर बिसेन, आयोग के अध्यक्ष और बीजेपी विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “अंबेडकर विश्वविद्यालय ने स्थिति का आकलन करने के लिए समुदायों का एक विस्तृत सर्वेक्षण किया है. विश्वविद्यालय जून के अंत तक हमें रिपोर्ट सौंपेगा और हम इसे अपनी सिफारिशों के साथ सरकार को भेजेंगे.”
ऊपर उद्धृत सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “चल रहे सर्वेक्षण का उद्देश्य पिछड़े वर्गों के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन करना है और यह उनके कल्याण के लिए बेहतर नीति नियोजन में महत्वपूर्ण होगा.”
एमपी सरकार के एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम यह भी आकलन कर रहे हैं कि पिछले कुछ दशकों में लोगों को विभिन्न सरकारों (केंद्र और राज्य) की योजनाओं से कैसे लाभ हुआ है. यह सभी डेटा आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेपों के बारे में सरकार को सिफारिशें करने में हमारी मदद करेंगे. इससे कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर ढंग से लक्षित करने में मदद मिलेगी.”
कांग्रेस समेत राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना की मांग उठाई है. साथ ही राज्य में विपक्षी दलों द्वारा इसके स्टडी और प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया है. विपक्षी दलों और ओबीसी समूहों के सदस्यों ने आरोप लगाया कि सर्वेक्षण बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा यह दिखाने का प्रयास था कि उसने राज्य में ओबीसी के कल्याण के लिए काम किया है और चुनाव से पहले उन्हें लुभाने का प्रयास जैसा है.
राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा सितंबर 2021 में मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया गया था.
पिछले साल मई में, आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट जारी की जिसमें उसने कहा कि मप्र में 48 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं और पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में 35 प्रतिशत तक आरक्षण की सिफारिश की गई है.
मध्य प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसे शीर्ष अदालत ने 20,000 से अधिक पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में करने की अनुमति दी थी.
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‘ओबीसी के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया’
चल रही कवायद के बारे में बात करते हुए, मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जितेंद्र पटवारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए पूरी कवायद को “निरर्थक” कहकर खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, “रिपोर्ट से पता चलेगा कि शिवराज सिंह [मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री चौहान] के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की योजनाओं से ओबीसी को कितना लाभ हुआ है.”
पटवारी के अनुसार, मप्र में 80 प्रतिशत ओबीसी किसान हैं या कृषि गतिविधियों में शामिल हैं. उन्होंने कहा, “इस सरकार [चौहान सरकार] ने ओबीसी के लिए कुछ नहीं किया है. यह हमारी सरकार है जिसने [ओबीसी के लिए] आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया (जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, इसलिए मामला उप-न्यायिक है).”
एमपी में बीजेपी से पहले कांग्रेस की सरकार थी.
आयोग द्वारा किए गए स्टडी के मापदंडों पर सवाल उठाते हुए, भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य धर्मेंद्र कुशवाहा ने कहा, “इन 10,000 परिवारों का चयन कैसे किया गया? अध्ययन के नतीजे सिर्फ यह दिखाने के लिए होंगे कि इस सरकार ने लोगों के कल्याण के लिए काम किया है और चुनाव से पहले समुदाय तक पहुंचने के लिए भी काम किया है.”
उन्होंने कहा, “अगर सरकार गंभीर है, तो उसे जाति आधारित जनगणना करानी चाहिए.”
दिप्रिंट ने जिन राजनीतिक टिप्पणीकारों से बात की, उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण करना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे ठीक से किया जाना चाहिए.
जाति-आधारित सर्वेक्षण के महत्व को समझाते हुए, राजनीतिक सिद्धांतकार और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा इलैया शेफर्ड ने कहा कि केवल ओबीसी या एक समुदाय के बजाय जाति-आधारित सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “जब तक वे जातिगत जनगणना नहीं करते हैं, तब तक किसी विशेष समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के विचार के आसपास अध्ययन करने का कोई मतलब नहीं है.”
एक अन्य विशेषज्ञ, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि मध्य प्रदेश जैसे राज्य में 10,000 परिवारों का नमूना ओबीसी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सही आकलन करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
दिप्रिंट ने वी.डी. शर्मा, जो अभी मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं, से आरोपों पर प्रतिक्रिया के लिए फोन किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
2011 में, केंद्र सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) की. जबकि इस कवायद के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए जाति संबंधी डेटा को केंद्र सरकार द्वारा जारी नहीं किया गया है. सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से संबंधित डेटा, जो केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं का आधार बनते हैं, कथित तौर पर योजना नीति के लिए सरकारों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं.
इस साल की शुरुआत में, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने राज्य में जाति आधारित जनगणना शुरू की थी. लेकिन जो पटना उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक लगाने के साथ यह कानूनी मुसीबत में पड़ गई थी. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने इसपर से स्टे हटाने से इनकार कर दिया था.
ओडिशा में, नवीन पटनायक सरकार ने भी 208 पिछड़े वर्गों के लोगों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए मई में एक महीने के अभ्यास में ओबीसी सर्वेक्षण किया था.
(संपादन: ऋषभ राज)
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