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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशममता के बंगाल में पद्म पुरस्कार विजेता मुस्लिम शिक्षक को 'जीवन का भय', सीएए प्रदर्शनकारियों को बताया अभिनेता

ममता के बंगाल में पद्म पुरस्कार विजेता मुस्लिम शिक्षक को ‘जीवन का भय’, सीएए प्रदर्शनकारियों को बताया अभिनेता

काजी मासूम अख्तर को 2015 में मदरसा छात्रों को राष्ट्रगान गाने के लिए कहने पर हमला किया गया था और दावा किया कि सत्तारूढ़ टीएमसी अपराधियों की रक्षा कर रही है.

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कोलकाता: नरेंद्र मोदी सरकार ने काज़ी मासूम अख्तर को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया है. पश्चिम बंगाल के 49 वर्षीय शिक्षक और लेखक इस साल के पांच पद्म पुरस्कारों से सम्मानित लोगों में से एक हैं, लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें अभी भी अपने जीवन को लेकर डर है.

2015 में अख्तर को कट्टरपंथियों की भीड़ ने पीटा था जब उन्होंने दक्षिण कोलकाता के मदरसे में जहां वह प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत थे, छात्रों से हर सुबह राष्ट्रगान गाने के लिए पूछा था.

हालांकि, पद्म श्री एक ‘नैतिक जीत’ है, अख्तर अभी भी अदालत में हमले का मुकदमा लड़ रहे हैं और कहते हैं कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार की ‘तुष्टिकरण की नीतियों’ के कारण उनका उत्पीड़न करने वाले स्वतंत्र घूम रहे हैं.

न्याय के लिए एक लंबा इंतज़ार

अख्तर पर 26 मार्च 2015 को लाठी और डंडों से हमला किया गया था. गंभीर रूप से खून बह रहा था फिर उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां, उनके साथ फिर से मारपीट की गई और गंभीर रूप से घायल कर दिया गया.

अख्तर का कहना है कि उन्होंने 26 मार्च 2015 को राजाबगन पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है. लेकिन उनका दावा है कि एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.

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2015 में काज़ी मासूम अख्तर ने दर्ज कराई गई एफआईआर | विशेष व्यवस्था द्वारा/ दिप्रिंट

अख्तर ने कहा, ‘पिछले पांच वर्षों में मैंने अलीपुर अदालत में तीन याचिकाएं दायर की हैं. अदालत ने जांच अधिकारियों से मेरे मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा, लेकिन पुलिस ने एक रिपोर्ट दर्ज की और कहा कि आरोपी व्यक्ति फरार थे. 10 जनवरी को अदालत ने दोषियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया.

अख्तर ने तृणमूल कांग्रेस सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि यही कारण है कि उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है. मुझे पता है कि सरकार उन्हें नहीं छूएगी क्योंकि यह सत्ता पक्ष की तुष्टिकरण की नीतियों के खिलाफ जाएगा. मुझे अभी भी अपने जीवन को लेकर डर है और किसी भी दिन मेरी हत्या की जा सकती है.

खुद के समुदाय द्वारा बहिष्कृत

हमले की वज़ह से ही अख्तर को अपनी जान का डर नहीं था. उनके खिलाफ मदरसे में बंगाली सांस्कृतिक आइकन रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन को मनाने के लिए हिंदू प्रथाओं को लागू करने के लिए कई फतवे जारी किए हैं.

उन्होंने मुसलमानों के उत्थान के बारे में और उनके इर्द-गिर्द घूमने वाली वोट-बैंक की राजनीति के खिलाफ और ट्रिपल तलाक़ की प्रथा के खिलाफ आंदोलन छेड़ने और एक लाख हस्ताक्षर एकत्र करने और भारत के राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपने के बारे में लेख लिखे हैं.

अख्तर को मदरसे में प्रधानाध्यापक के पद से हाथ धोना पड़ा था. मुस्लिम मौलवियों के एक वर्ग ने उनके खिलाफ याचिका दायर की जिसमें कहा गया था कि वह छात्रों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे थे और राष्ट्रगान गाकर और ‘इस्लाम विरोधी’ अखबार और किताबें गीत लिखकर धर्म का अपमान कर रहे थे.

अपने समुदाय से बहिष्कृत अख्तर अभी जादवपुर में एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर हैं. विडंबना यह है कि वही ममता बनर्जी सरकार जिस पर वो हमलावरों की रक्षा करने का आरोप लगाते हैं उसने ही उन्हें 2017 में ‘सर्वश्रेष्ठ शिक्षक’ का पुरस्कार दिया था.

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद इदरीस अली कहते हैं कि अख्तर को अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए.

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ममता बनर्जी ने अख्तर को 2017 में ’सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार’ से सम्मानित किया था । विशेष व्यवस्था द्वारा/दिप्रिंट

अखिल भारतीय अल्पसंख्यक मंच के प्रमुख के अली ने कहा, ‘उन्होंने कुछ टिप्पणियां कीं, जो एक विशेष धर्म को चोट पहुंचाती हैं.’ किसी को कोई ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जिससे किसी के विश्वास को ठेस पहुंचे. अगर उसने कुछ गलत किया है, तो उसे अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए. बाकी, उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उन्हें पहले ही मुख्यमंत्री से पुरस्कार मिल चुका है.

सीएए प्रदर्शनकारी ‘अभिनेता’ हैं

अख्तर ने बंगाल और देश के कई हिस्सों में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बारे में भी बात की और जोर देते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानों को चिंता करने की कोई बात नहीं है.

अख्तर ने कहा, ‘इस कानून को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था. राज्यसभा में भाजपा के पास संख्या नहीं थी, लेकिन गैर-भाजपा दलों ने उनका समर्थन किया. वही पार्टियां अब अपने निहित राजनीतिक हितों के लिए विरोध को हवा दे रही हैं.’

‘भारतीय मुसलमानों को चिंता करने की कोई बात नहीं है. इस कानून में एक भेदभावपूर्ण खंड है, जिसके लिए हमें न्यायपालिका से संपर्क करना चाहिए और सड़कों को अवरुद्ध करके विरोध नहीं करना चाहिए.’

अख्तर ने यह भी कहा कि सीएए का विरोध करने के लिए जन गण मन गाते हुए मुस्लिम प्रदर्शनकारी ‘अभिनेता’ थे. उन्होंने कहा, ‘मुझे बहुत आश्चर्य होता है जब मैं उन्हीं लोगों को देखता हूं, जिन्होंने मेरे छात्रों को राष्ट्रगान गाने के लिए कहने पर लाठी-डंडों और डंडों से मारा, अब राष्ट्रीय झंडे के साथ प्रदर्शन स्थलों पर बैठे हैं और वही गा रहे हैं. यह एक मज़ाक है.

अख्तर ने उन दिनों को याद किया जब उन्हें मदरसे से दाढ़ी नहीं उगाने, राष्ट्रगान गाने और विभिन्न इलाकों में भीड़ हिंसा की निंदा करने के लिए रोक दिया गया था.

अख्तर ने कहा, ‘राजनीतिक दल मेरे समुदाय को पीछे धकेल रहे हैं और उनका उपयोग केवल राजनीतिक प्यादे के रूप में कर रहे हैं. उनका पूरी तरह से ब्रेनवॉश किया जाता है. उन्हें सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और फिर गाने के लिए कहा गया. उन्हें सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और फिर राष्ट्रगान गाने और उनकी आपराधिक गतिविधियों को कवर करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज लहराने के लिए कहा गया. मेरी किसी भी समय हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं सच बोलना जारी रखूंगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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