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Monday, 23 December, 2024
होमदेशअनुच्छेद 370 पर छाती ठोंकने के बाद बंटे हुए जम्मू को इंतजार है 'भेदभाव' खत्म होने का

अनुच्छेद 370 पर छाती ठोंकने के बाद बंटे हुए जम्मू को इंतजार है ‘भेदभाव’ खत्म होने का

जम्मू के रहने वाले लोग इंतजार कर रहे हैं कि राज्य की संपत्तियों का किस तरह से बंटवारा किया जाएगा. जम्मू के लोगों की सरकारी नौकरियों में ज्यादातर हिस्सेदारी होगी.

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जम्मू: अक्टूबर 31, 2019. य़ह वह तारीख है जिसपर जम्मू क्षेत्र में किसी न किसी रूप में लोग अपनी बातचीत अनुच्छेद 370 पर जिक्र करते हुए सुनाई दे जाते हैं. यह वही दिन है जब जम्मू-कश्मीर राज्य पूरी तरह से निकल जाएगा और दो यूनियन टेरीटरी में तब्दील हो जाएगा. यह वही तारीख है जब लोगों को उम्मीद है कि यहां के रहने वालों के लिए भविष्य को लेकर चीजें साफ होंगी.

सभी की आंखों में भविष्य को लेकर कई सवाल है लेकिन किसी को भी इसका जबाव नहीं पता है. यहां तक की वरिष्ठ सरकारी अधिकारी तक को भी.

शुरुआत में बातें बढ़ा-चढ़ाकर और छाती ठोकनें के बाद के बाद सच्चाई सामने आ रही है और अब वेट एंड वाट पॉलिसी पर काम करने लगी है.

वह भाजपा, जिसने जम्मू क्षेत्र के निवासियों के बीच अपना समर्थन खो दिया था, जहां उसने 2014 के विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व 25 सीटें जीती थीं, नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा विवादास्पद धारा 370 को निरस्त करने के कदम को मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है. यह विशेष रूप से जम्मू में चुनावी रूप से मदद करेगा.

जम्मू में कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टी के नेताओं ने मौजूदा हालात को देखते हुए इस मामले पर चुप्पी साध रखी है और वह उस वक्त का इंतजार कर रहे हैं जब मौजूदा सरकार कोई गलती करे.

कई लोगों के मन में सवाल है कि क्या भेदभाव खत्म होगा

मोदी सरकार के अनुच्छेद-370 हटाना आतंकवाद से ग्रस्त कश्मीर का भारत के साथ मिलाना था. राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेश में बदलकर मोदी सरकार ने क्षेत्रीय भेदभाव को खत्म किया है. इससे पहले जम्मू और लद्दाख के बीच भेदभाव होता था.

जेएस जामवाल इस पूरी घटना को समझते हुए कहते हैं, ‘राज्य में आने वाली सभी सरकारी नौकरियां और योजनाएं कश्मीरी लोग हड़प जाते थे.’

‘हमें अंत में थोड़ा बहुत ही मिलता था. मोदी जी ने बिल्कुल सही कदम लिया है. मोदी जी ने कश्मीरियों को ऐसा पाठ पढ़ाया है जिसे वो कभी नहीं भूलेंगे.’

जामवाल सहित तमाम लोगों को  इस मामले में पूरी तस्वीर 21 अक्टूबर को साफ हो जाएगी. इसी दिन राज्य केंद्र शासित प्रदेश में बदल जाएगा.

जम्मू के रहने वाले लोग इंतजार कर रहे हैं कि राज्य की संपत्तियों का किस तरह से बंटवारा किया जाएगा. जम्मू के लोगों की सरकारी नौकरियों में ज्यादातर हिस्सेदारी है.

जो भाजपा नेता पहले इस कदम को लेकर सीना ठोक रहे थे वो अब कुछ नहीं बोल रहे हैं. ये लोग जानते हैं कि राज्य में जम्मू क्षेत्र की हिस्सेदारी ज्यादा है. अगर ठीक तरह से पूरी प्रक्रिया नहीं हुई तो भाजपा की पकड़ वाली जम्मू क्षेत्र में आगामी चुनाव में नुकसान हो सकता है.

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि ये पार्टी के लिए जश्न का मौका है. लेकिन हमें कहा गया है कि राज्य में अभी जश्न न मनाया जाए.

राज्य के एक नागरिक ने कहा, ‘हम भी कई दिनों से बिना इंटरनेट के रह रहे हैं. आपने हमें देखा कि हम विरोध कर रहे हों. ये एक छोटा सा काम है भारत के लिए जो हम लोग कर रहे हैं.  लेकिन हम नहीं जानते कि इस कदम से हमें क्या लाभ होगा.’

यह जम्मू बनाम मुस्लिम है

आतंकवाद के चरम पर होने के बावजूद और कश्मीरी पंडितों को निकाले जाने के बाद भी जम्मू-कश्मीर के लोग धर्म के आधार पर नहीं बंटे. पहले जम्मू जो कि हिंदू बहुल क्षेत्र है उन्हें लगता था कि कश्मीरी नेतृत्व उनके कामों को महत्व नहीं देता लेकिन फिर भी दोनों क्षेत्र धार्मिक आधार पर नहीं बंटे. लेकिन आजकल धार्मिक आधार पर बांटने की कोशिश की जा रहे हैं.

वकील वेद भूषण गुप्ता कहते हैं, ‘कश्मीरी लोग वाहाबी विचार से जुड़े हुए हैं. हिंदू बहुल इलाका होने के नाते जम्मू अपने पीछे मानता आया है. लेकिन आजादी के बाद पहली बार पासा हिंदूओं के पक्ष में पलटा है. अब कश्मीरी लोगों के पास कोई चारा नहीं है.’

इसके इतर गुप्ता यह भी मानते हैं, ‘राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन के बाद सरकार ने पूरी स्थिति को ठीक से नहीं संभाला.’

गुप्ता ने कहा, ‘सरकार हमें विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं करने दे रही है. विरओध न करने के चलते कश्मीरी लोग पीड़ित नज़र आ रहे हैं. कश्मीर से कुछ दिनों तक कर्फ्यू हटा दो और कुछ दिन विरोध करने दिया जाए. उसके बाद खुद शांति स्थापित हो जाएगी.’

5 अगस्त को जब से ये फैसला आया तह से जम्मू-कश्मीर को हिंदू-मुस्लिम बना दिया गया है. जम्मू की सड़क पर एक व्यकित ने कहा राज्य का विशेष दर्जा जरुर छीन लिया गया है लेकिन इस कदम ने भेदभाव को समाप्त कर दिया है.

कुछ विरोध की आवाजें

मजेदार बात यह है कि यहां कुछ लोग जैसे कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील ए-वी गुप्ता ने मोदी सरकार के इस निर्णय को असंवैधानिक बताया है.

‘मैंने जो पहले कहा था वह मेरा निजी विचार था. लेकिन अब मैं सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका कर्ता के काउंसल के रूप में जा रहा हूं जिसमें हम राष्ट्रपति के नोटीफिकेशन पर चैलेंज कर रहे हैं.’ गुप्ता ने कहा, ‘मैं इस बारे में और कुछ नहीं कहना चाहता हूं.’

मोदी सरकार से लगी हैं बड़ी आशाएं

एक गैर आधिकारिक मीटिंग में जम्मू-कश्मीर के एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि अभी सरकारी कर्मचारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग प्रोफिटेबल वेंटर है. सरकारी कर्मचारियों में भविष्य को लेकर स्पैकुलेशन जारी है. इसमें बड़ा सवाल इन दिनों यह है कि किसे ट्रांसफर का चार्ज दिया जा रहा है? दिल्ली से आने वाले पूछ रहे हैं कि क्या उनका कोई गृहमंत्रालय में कोई लिंक है क्या, क्योकि यूनियन टेरीटरी बनने के बाद यह प्रदेश गृहमंत्रालय के अंतर्गत आ जाएगा.

नाम न बताने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब हम आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के कर्मचारी होंगे. हमें सेंट्रल गवर्नमेंट के ग्रेड और पेंशन के हिसाब से ही पेंशन दी जाएगी. मुझे विश्वास है कि केंद्र सरकार हमें यह सुविधा देने जा रही है. हम अब सीबीआई के अंदर होंगे?

मजेदार बात यह है कि जम्मू के रहने वाले जो मोदी और उनकी सरकार के कामकाज की सराहना करते हैं वो स्थानीय भाजपा के नेताओं को कोई नंबर देने नहीं जा रहे हैं.

व्यापारी संजय कोटवाल कहते हैं,’वह सारे भ्रष्ट हैं. सबी महबूबा (मुफ्ती) की जेब में हैं. मोदी जी को उनकी प्रॉपर्टी के सीबीआई जांच करानी चाहिए.’

जम्मू का इंतजार 31 अक्टूबर को खत्म होने जा रहा है. जिसे उम्मीद है कि उसे राज्य में अपनी सही हिस्सा मिलेगा लेकिन तबतक लोगों ने चुप्पी साध रखी हैं.

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