चंडीगढ़: आजादी के पचहत्तर साल बाद पंजाब और हरियाणा अभी भी कुछ संशोधनों के साथ अंग्रेजों द्वारा 1934 में बनाए गए पुलिस नियमों के हिसाब से चल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट (SC) ने बुधवार को हरियाणा पुलिस बल से उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति से संबंधित एक मामले में एक पूर्व कांस्टेबल द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए इस मामले पर नाराजगी व्यक्त की.
पंजाब पुलिस नियम, 1934- जिसे अदालत ने “पुराना” करार दिया, यह हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों में लागू होता है. यह नियम दो खंड में है जिसमें पहला खंड 362 पेज का है जबकि दूसरा 191 पेज का.
पुलिस की वेबसाइट पर मौजूद नियमों को देखने से पता चलता है कि यह अभी भी पुलिस बल में पुराने पदानुक्रम का पालन करता है. पुराने नियम के हिसाब से पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) राज्य में पुलिस टीम का नेतृत्व करते थे. जबकि, आज पुलिस महानिदेशक (DGP) राज्य के पुलिस प्रमुख होते हैं. अभी के हिसाब से IGP रैंक में DGP और अतिरिक्त DGP दोनों से जूनियर होते हैं.
नियमों में पुलिस अधिकारियों के लिए घोड़े और काठी के भत्ते, “घोड़ों की पूंछ की डॉकिंग”, और “घोड़े की बधिया” जैसे अन्य बातों का भी जिक्र किया गया है.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की एससी खंडपीठ ने अपने फैसले में ब्रिटिश काल के पुलिस नियमों को लेकर पंजाब और हरियाणा सरकारों की खिंचाई की और उन्हें राज्य पुलिस के मौजूदा पदानुक्रम के अनुरूप नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया.
इसमें बताया गया है कि “नियम, मूल रूप से 1934 में बनाए गए थे. पुलिस अधिकारियों को ‘द इंस्पेक्टर जनरल’, ‘डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल’ और ‘सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस’ के रूप में जाना जाता था. उस समय ‘इंस्पेक्टर-जनरल’ राज्य पुलिस का नेतृत्व करते थे, लेकिन आज अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित (कुछ को छोड़कर) डीजीपी ही राज्य पुलिस मशीनरी का मुखिया होता है. डीजीपी को ही एक अधिकारी के रूप में जाना जाता है, जो राज्य में पुलिस के शीर्ष पद पर बैठता है.”
पीठ ने कहा, “निश्चित रूप से कोई भी नियम, बेहतर या बदतर खतरे के साथ तालमेल नहीं रखते हैं. हम इस बात की सराहना नहीं करते हैं कि संबंधित अधिकारी भ्रम को दूर करने के लिए पदों के कम से कम सही आधिकारिक विवरण के साथ नियमों को अद्यतन/संशोधित करने में असमर्थ क्यों हैं.”
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि उनके आदेश की प्रतियां आवश्यक कार्रवाई के लिए पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों, गृह सचिवों और डीजीपी को भेजी जाएं.
द प्रिंट ने इस मामले को लेकर हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज से बातचीत की. उन्होंने कहा, “राज्य ने पहले ही हरियाणा पुलिस अधिनियम 2007 के अनुरूप अपना खुद का पुलिस नियम बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.”
विज ने कहा, “मैंने नियमों को तैयार करने के लिए आईजीपी अमिताभ ढिल्लों के नेतृत्व में आईपीएस अधिकारियों की एक समिति गठित की थी. हमारा मसौदा नियम तैयार हैं और जल्द ही इसे कैबिनेट के सामने मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा.”
जबकि पंजाब पुलिस की वेबसाइट पर ‘पंजाब पुलिस नियम, 2011 का अंतिम मसौदा’ है. दिप्रिंट ने इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए पंजाब गृह विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग वर्मा से भी संपर्क किया लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
इस बीच, SC के फैसले का कई लोगों ने स्वागत किया. लोगों को उम्मीद है कि शीर्ष अदालत के आदेश के कारण अबतक “सोये हुए अधिकारी जागेंगे”.
हरियाणा के एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी राजबीर देसवाल ने दिप्रिंट को बताया, “पंजाब और हरियाणा को अदालत के निर्देश पर ध्यान देना चाहिए और नींद से जगना चाहिए. वर्तमान समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे फिर से तैयार किया जाना चाहिए.”
देसवाल, जो 2017 में ADGP के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे और अब पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में लॉ की प्रैक्टिस करते हैं, ने कहा कि यह “दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधायिका और कार्यपालिका को न्यायपालिका से वांछित सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए इंतजार करना पड़ा”.
हरियाणा पुलिस के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए दावा किया कि “यहां तक कि पाकिस्तान, जो 1947 में भारत से अलग हुआ था, अभी भी 1934 के पुलिस नियमों का ही उपयोग कर रहा है”.
SC के सामने पूर्व कांस्टेबल का मामला
1934 के पुलिस नियमों पर SC की टिप्पणी हरियाणा पुलिस के पूर्व कांस्टेबल ऐश मोहम्मद द्वारा अदालत में दायर एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर आई थी, जिसे “भ्रष्टाचार, अवज्ञा” की शिकायतों के बाद राज्य के DGP के आदेश पर बल से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था. उनके खिलाफ “कर्तव्य की उपेक्षा” का आरोप लगा था.
मोहम्मद ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसके बाद हरियाणा के डीजीपी के उस आदेश को बहाल कर दिया था जिसमें उनके खिलाफ वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) के पुनर्निर्माण का निर्देश दिया गया था, जिसके आधार पर उन्हें सेवानिवृत्त होने का आदेश दिया गया था.
मोहम्मद की याचिका को खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, “घटनाओं की श्रृंखला को ध्यान में रखते हुए, परिणामी कार्रवाई हमारे विचार से मनमानी या अदालत की अंतरात्मा को झकझोरने वाली नहीं कही जा सकती है. इसलिए इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है.”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, मोहम्मद 1973 में हरियाणा पुलिस में शामिल हुए थे और 1993 में उन्हें हेड कांस्टेबल के रूप में पदोन्नत किया गया था. उनके खिलाफ शिकायतों के बाद एक जांच कमेटी ने वापस उन्हें कांस्टेबल रैंक पर भेज दिया था.
28 अप्रैल, 2001 को आईजीपी, गुरुग्राम रेंज ने मोहम्मद की एक याचिका के बाद, “वेतन वृद्धि को रोकने” और उसके प्रमोशन को रोकने का आदेश दिया. इसके बाद मोहम्मद ने अपनी वेतन वृद्धि रोकने के साथ-साथ अपने एसीआर में अपने नियंत्रण अधिकारियों द्वारा दी गई गलत टिप्पणियों के खिलाफ एक दीवानी अदालत में याचिका दायर की.
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सिविल कोर्ट ने वेतन वृद्धि रोकने के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन एसीआर में प्रतिकूल टिप्पणी को हटाने के लिए, अदालत ने मोहम्मद को आईजीपी के समक्ष एक नई याचिका पेश करने के लिए कहा. उनके प्रतिनिधित्व पर, आईजीपी – जो वर्षों से बदल गए थे- ने 28 जनवरी, 2005 को मोहम्मद के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया.
5 सितंबर, 2006 को, मोहम्मद को डीजीपी से एक कारण बताओ नोटिस मिला, जो यह कहते हुए था कि टिप्पणियों को हटाने से उन्हें अनुचित लाभ दिया गया था और पूछा गया था कि इसे बहाल क्यों नहीं किया जाना चाहिए.
20 अक्टूबर, 2006 को डीजीपी ने मोहम्मद की एसीआर को फिर से बनाने का आदेश दिया, यानी हटाई गई टिप्पणियों को दोबारा बहाल करने का.
आदेश से नाराज मोहम्मद ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, मेवात, नूंह में पुलिस अधीक्षक ने उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति का नोटिस जारी किया.
27 जनवरी, 2010 को हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने मोहम्मद की याचिका को स्वीकार कर लिया. कोर्ट ने एसीआर के पुनर्निर्माण और अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द कर दिया.
जवाब में राज्य ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की और एक खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को उलट दिया और हरियाणा के डीजीपी के आदेश को बहाल कर दिया.
इसके बाद मोहम्मद ने एससी का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि पंजाब पुलिस नियम, 1934, जो हरियाणा में भी लागू होता है, डीजीपी को उनकी सेवानिवृत्ति का आदेश देने के लिए कोई अधिकार नहीं देता है.
SC ने मोहम्मद की याचिका को खारिज कर दिया और पाया कि IGP, गुरुग्राम ने मोहम्मद के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी (28 जनवरी, 2005 को) को हटाते हुए, उनके पूर्ववर्ती द्वारा पारित आदेश की समीक्षा की थी, और इसकी अनुमति नहीं दी गई थी.
पंजाब पुलिस नियम, 1934 के नियम 16.28 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इसकी “‘समीक्षा’ एक वरिष्ठ प्राधिकारी द्वारा की जाती है, न कि उसी प्राधिकारी द्वारा.”
इस नियम में कहा गया है, “स्पष्ट रूप से, नियम 16.28 में अपेक्षित ‘समीक्षा’ एक वरिष्ठ अधिकारी को ‘उनके अधीनस्थों द्वारा दिए गए पुरस्कारों के रिकॉर्ड की मांग करने और उसकी पुष्टि करने, बढ़ाने, संशोधित करने या रद्द करने या आगे की जांच करने या इस तरह के पहले किए जाने का निर्देश देने का अधिकार देती है.”
1934 के पुलिस नियमों पर एक नजर
पंजाब पुलिस नियम, 1934 के नियम 1.2 में कहा गया है कि पुलिस बल की कमान, इसकी भर्ती, अनुशासन, आंतरिक अर्थव्यवस्था और प्रशासन के लिए आईजीपी जिम्मेदार है. इसमें कहा गया है कि उनकी सहायता के लिए असिस्टेंट इंस्पेक्टर जनरल और डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल दिए जाते हैं जो काम में उनकी मदद करते हैं.
आज, हरियाणा पुलिस की वेबसाइट के अनुसार, राज्य में महानिदेशक रैंक के छह अधिकारी हैं- मनोज यादव, पी.के. अग्रवाल, मुहम्मद अकील, आर.सी. मिश्रा, शत्रुजीत सिंह कपूर और देश राज सिंह. इनमें से पी.के. अग्रवाल डीजीपी हैं और राज्य पुलिस के प्रमुख हैं. बल में 16 एडीजीपी भी हैं. ये सभी अधिकारी आईजीपी से काफी वरिष्ठ हैं.
आईजीपी स्तर पर भी हरियाणा में फिलहाल ऐसे 16 अधिकारी हैं. राज्य में पंचकुला, गुरुग्राम, फरीदाबाद और सोनीपत में एक आयुक्त प्रणाली है जहां पुलिस अधिकारियों के पदनाम पूरी तरह से अलग हैं.
राज्य पुलिस की वेबसाइट के अनुसार, पंजाब में डीजीपी रैंक के चार आईपीएस अधिकारी, विशेष डीजीपी रैंक के 13 अधिकारी, एडीजीपी रैंक के 24 और आईजीपी रैंक के 14 पुलिस अधिकारी कार्यरत हैं.
पंजाब पुलिस नियम, 1934 के खंड 1 के 2.24 (3) में लिखा है कि अशांत क्षेत्रों में विशेष पुलिस अधिकारियों की तैनाती की जाती है. साथ ही समय के मुताबिक जनता को पुलिस में स्वयंसेवक के रूप में काम करवाया जा सकता है.
इसमें कहा गया है, “पुलिस अधीक्षक विशेष पुलिस बल का मनोरंजन करते हुए निम्नलिखित पैमाने के अनुसार भोजन की खरीद और वितरण करके उनके भरण-पोषण की व्यवस्था करेंगे. इसमें दिया गया है कि स्वयंसेवको के लिए 1.5 पाउंड आटा [गेहूं] या चावल, 4 औंस दाल, 4 औंस ताजा मांस या बदले में गुड़, आधा औंस चाय, आधा औंस नमक, 2 औंस घी, 1 औंस गुड़, 1.5 पाउंड ईंधन, 1/6 औंस मिर्च, 1/6 औंस हल्दी और 1/6 औंस लहसुन की व्यवस्था की जाएगी या फिर इन वस्तुओं के बदले नकद भी दिया जा सकता है.“
इसके साथ ही 1934 का नियम वार्षिक रखरखाव का भी प्रावधान करता है. इसमें एसपी को खर्च के लिए 300 रुपए का प्रावधान किया गया है जबकि डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल 1,500 और आईजीपी 2,500 रुपए तक सलाना खर्च कर सकते हैं.
पंजाब पुलिस नियम, 1934 का नियम 4.5 वर्दी, काठी, और घोड़ों की खरीद से संबंधित है,. साथ ही यह नियम निचले पदानुक्रम के लोगों की वर्दी मुफ्त में देने की बात करता है.
राज्यपाल, मंत्रियों और अन्य उच्च अधिकारियों की सुरक्षा के लिए प्रतिनियुक्त बंदूकधारियों के लिए भी नियम दिए गए हैं. इनके लिए “गहरे नीले सर्ज या गहरे नीले रंग के ब्लेज़र कपड़े से बना एक अचकन [पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला एक कोट या अंगरखा], सफेद ड्रिल का एक अचकन, सोने के लिए एक विस्तर, एक सफेद सलवार [पतलून], एक सफेद पगड़ी [पगड़ी], काले जूते का जोड़ा, रेनकोट, पहाड़ी इलाकों में तैनात जवानों के लिए एक वॉटरप्रूफ कोट, आर्मरर्स के लिए एक नीला ओवरऑल और एक शिमला में तैनात कर्मचारियों को छोड़कर बाकी सबके लिए पोल के साथ मच्छरदानी का प्रावधान किया गया था.”
नियम 4.13 में कहा गया है कि हार्वरसैक, मस्टर पैटर्न के अनुसार, पुलिस स्टेशनों और चौकियों को प्रति कॉन्स्टेबल एक दर से ही जारी किया जाएगा.
नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए, हरियाणा में एक पुलिस उपाधीक्षक ने दिप्रिंट को बताया कि 1934 के नियमों के तहत पुलिस अधिकारियों को प्रदान की जाने वाली कई चीजें अब काफी पुरानी हो चुकी हैं. उन्होंने कहा, “इसी तरह मामूली मरम्मत, वर्दी भत्ता आदि के लिए नियमों में उल्लिखित राशि वर्तमान समय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काफी कम है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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