नई दिल्ली: भारतीय विश्वविद्यालयों के 16 कुलपतियों, सेवानिवृत रक्षा अधिकारियों, पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों, ओलंपियनों और पांच पद्मश्री विजेताओं समेत 100 से अधिक लोगों ने पुलित्जर पुरस्कार 2020 के प्रशासक बोर्ड और जूरी के नाम एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के फोटो पत्रकारों को पुलित्ज़र पुरस्कार दिए जाने और उनके प्रशस्ति-पत्र पर आपत्ति जताई है.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों एसोसिएटेड प्रेस के जम्मू-कश्मीर स्थित फोटो पत्रकारों चन्नी आनंद, मुख़्तार ख़ान और डार यासिन को फीचर फोटोग्राफी श्रेणी में पुलित्जर पुरस्कार दिए गए थे. इसी संदर्भ में लिखे गए पत्र में कश्मीर घाटी में कार्यरत फोटोग्राफर ख़ान और यासिन की तस्वीरों की प्रामाणिकता पर भी सवाल खड़े किए गए हैं.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पद्मश्री पुरस्कृत डॉ. केके अग्रवाल, जवाहर कौल, कंवल सिंह, दर्शनलाल जैन और डॉ. केएन पंडित, सेवानिवृत रक्षा अधिकारी ले हरिंदर सिक्का और मेजर जनरल ध्रुव कटोच शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि सिक्का राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘नानक शाह फ़कीर’ के निर्माता भी हैं और उनकी किताब ‘कॉलिंग सहमत’ पर बॉलीवुड की हिट फिल्म ‘राज़ी’ बनाई जा चुकी है.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले कुलपतियों में सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हिमाचल प्रदेश के प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजराज, गांधीनगर के प्रो. रमाशंकर दुबे, राजीव गांधी सेंट्रल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक के प्रो. एसपीएम त्रिपाठी और गुरुग्राम यूनिवर्सिटी, हरियाणा के डॉ. एमपी मार्कंडेय आहूजा शामिल हैं.
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विरोध पत्र पर पहलवान गीता फोगाट और योगेश्वर दत्त तथा चंडीगढ़ से भाजपा सांसद किरण खेर ने भी हस्ताक्षर किए हैं.
‘कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताना भारत की संप्रभुता पर चोट’
खुले पत्र की शुरुआत पुलित्जर विजेता तीनों फोटो पत्रकारों को दिए गए प्रशस्ति-पत्र की आलोचना से होती है.
इसमें कहा गया है, ‘आपकी वेबसाइट पर एसोसिएटेड प्रेस के चन्नी आनंद, मुख़्तार ख़ान और डार यासिन को पुलित्जर पुरस्कार दिए जाने के उल्लेख के साथ ये लिखा गया है – ‘विवादित क्षेत्र कश्मीर में ज़िंदगी की असाधारण तस्वीरों के लिए, जब भारत ने संचार व्यवस्था ठप करते हुए उसकी आज़ादी को समाप्त कर दिया.’
पत्र में आगे कहा गया है, ‘सर्वप्रथम, कश्मीर को ‘विवादित क्षेत्र’ बता कर आपने खुद की पोल खोल दी है कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों की आपकी जानकारी और समझ कितनी कमज़ोर है. ‘विवादित क्षेत्र’ जैसे शब्दों का प्रयोग भारत की संप्रभुता और अखंडता पर चोट करने के समान है और ये भारत के संविधान का अनादर भी है क्योंकि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस बारे कोई विवाद नहीं है. भारत के प्राचीन इतिहास को पढ़कर आपको पता चल जाएगा कि यह राज्य पिछली कई सदियों से भारत के सबसे प्रमुख हिस्सों में से एक रहा है.’
पत्र में पुलित्जर के प्रशस्ति-पत्र को ‘भारत की छवि धूमिल करने का जानबूझ कर किया गया प्रयास’ करार दिया गया है.
‘आपका ये लिखना कि ‘भारत ने संचार व्यवस्था ठप करते हुए उसकी (कश्मीर की) आज़ादी को समाप्त कर दिया’ और कुछ नहीं बल्कि जानकारी का अभाव या भारत की छवि धूमिल करने का सुविचारित प्रयास है. यदि किसी क्षेत्र की संचार व्यवस्था पर सुरक्षा कारणों से अस्थाई पाबंदी लगाई जाती है तो भला कैसे उसे उस क्षेत्र में ‘स्वतंत्रता की समाप्ति’ करार दिया जा सकता है!! या तो आपको स्वतंत्रता का मतलब नहीं पता है, या फिर आप इरादतन सनसनीखेज़ समाचार बनाने की कोशिश कर रहे हैं और झूठी निडरता के लिए अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं. क्या आपकी ‘उत्कृष्टता’ यही है? साथ ही, ये भी याद रहे कि आप भारत के उस राज्य के बारे में ऐसा लिख रहे हैं जो लगभग चालीस वर्षों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और दुष्प्रचार का शिकार है.’
पत्र में कहा गया है, ‘जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के कारण आम जनता और सुरक्षाकर्मियों दोनों को ही भारी क्षति उठानी पड़ी है. इस कारण, पाकिस्तान के अलगाववादी और विभाजनकारी एजेंडे का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन करने वाला कोई भी कदम क्षेत्र में आतंकवाद के समर्थन के समान है, और निश्चित तौर पर अमेरिकी होने के नाते आप आतंकवाद का समर्थन करना नहीं चाहेंगे! ‘पत्रकारिता और कला के क्षेत्र में उत्कृष्टता का सम्मान’ करने का दावा करने वाले आपके जैसे संगठन द्वारा इस तरह की भूल दुखद है.’
ख़ान और यासिन की आलोचना
पत्र में घाटी स्थित एपी समाचार एजेंसी के छायाकारों मुख़्तार ख़ान और डार यासिन पर खासतौर पर हमला किया गया है, और उन पर ऐसी तस्वीरों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है जो ‘उनके अपने ही देश, जनता और पुलिस के खिलाफ ज़हर से भरे हुए हैं.’
पत्र में कहा गया है, ‘पुलित्जर पुरस्कार का उद्देश्य स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देना है. ये विडंबना ही है कि डार यासिन और मुख़्तार ख़ान जैसे फोटोग्राफरों को पुरस्कार देकर आप झूठ, तथ्यों के गलत चित्रण और अलगाववाद की पत्रकारिता एवं छायांकन को बढ़ावा दे रहे हैं. हमने यहां चन्नी आनंद का नाम शामिल नहीं किया है क्योंकि उनकी तस्वीर बाकी दो छायाकारों की तरह भारत की छवि को खराब नहीं करती है, उऩकी तस्वीर में ‘भारत-नियंत्रित कश्मीर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है. सबसे ज़्यादा स्तब्धकारी बात ये है कि पुरस्कार प्रदान करने से पहले आपने इस बात की पुष्टि करने तक की कोशिश नहीं कि क्या ये रिपोर्टर/फोटोग्राफर दुनिया से सच कह भी रहे हैं या नहीं.’
पत्र में कश्मीरी फोटो पत्रकारों की पक्षपाती पत्रकारिता के उदाहरण भी दिए गए हैं.
पत्र में कहा गया है, ‘उदाहरण के लिए, दो पाकिस्तानी आतंकवादी अली और हुबैब जम्मू-कश्मीर के कश्मीर इलाके में 22 मार्च 2019 को एक मुठभेड़ में मारे गए थे जब उन्होंने एक व्यक्ति और उसके 12 वर्षीय भतीजे को उनके ही घर में बंधक बना लिया था. इस घटना के संबंध में डार यासिन की 22 मार्च 2019 की रिपोर्ट में संलग्न तस्वीर में लड़के के शव के पास उसके रिश्तेदारों को शोक मनाते दिखाया गया था और उसका कैप्शन था- ‘भारत नियंत्रित कश्मीर में श्रीनगर के उत्तर स्थित हाजिन गांव में 11 वर्षीय बालक आतिफ़ मीर की शवयात्रा के दौरान शव के पास शोक मनाते कश्मीरी ग्रामीण, 22 मार्च 2019. कश्मीर के भारत-नियंत्रित हिस्से में तीन अलग-अलग मुठभेड़ों में भारतीय सुरक्षा बलों ने पांच चरमपंथियों और 11 वर्षीय बंधक को मारा’. (एपी फोटो/डार यासिन)
‘दूसरे शब्दों में, रिपोर्ट में बालक की मौत के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को ज़िम्मेवार ठहराया गया है, साथ ही एक बार फिर इसमें जम्मू-कश्मीर को ‘कश्मीर का भारत नियंत्रित हिस्सा’ बताकर गलत सूचना प्रसारित की जा रही है.’ इस बात के उल्लेख के साथ ही पत्र में उक्त घटना से संबंधित विभिन्न समाचार रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘इस मामले में दोषी आतंकवादी थे, न कि भारतीय सुरक्षा बल.’
पत्र में ख़ान और यासिन पर ‘फर्ज़ी खबरें फैलाने’ का भी आरोप लगाया गया है.
‘उपरोक्त फोटोग्राफरों की अन्य तस्वीरें भी उनके अपने देश, जनता और पुलिस के खिलाफ ज़हर से भरी हुई हैं. जम्मू-कश्मीर पुलिस के वाहन को लात मारते व्यक्ति, विरोध प्रदर्शनों, हिंसा, आक्रामकता आदि को प्रदर्शित कर वाहवाही लूटने वाले ये फोटोग्राफर और एपी समाचार एजेंसी पाकिस्तान के भारत-विरोधी दुष्प्रचार को हवा देते हैं और आपके जैसे संगठन परोक्ष रूप से आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं.’ पत्र में आगे कहा गया है, ‘ऐसी फर्ज़ी खबरें प्रसारित करने वालों का समर्थन कर, आप पुलित्ज़र पुरस्कार को बदनाम कर रहे हैं तथा झूठ, धोखे और तथ्यों की गलत प्रस्तुति को बढ़ावा दे रहे हैं. ‘पत्रकारिता की प्रगति और तरक्की’ को बढ़ावा देने का दावा करने वाले पुरस्कार का नफ़रत, विभाजन और झूठ को आगे बढ़ाना शर्मनाक है.’
‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’
इस बात पर बल देने के लिए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, पत्र में ‘द वैली ऑफ कश्मीर’ पुस्तक से विलय के दस्तावेज़ और अन्य बातों का उल्लेख किया गया है.
पत्र में कहा गया है, ‘द वैली ऑफ कश्मीर में वॉल्टर डब्ल्यू. लॉरेंस ने लिखा है, ‘कश्मीर अपनी विशिष्ट स्थिति के बारे में दावा कर सकता है कि पूरे भारत में वो एकमात्र क्षेत्र है जिसके इतिहास का सतत लिखित विवरण मौजूद है जो मुस्लिम विजय से भी पहले के काल तक जाता है और इतिहास का वास्तविक वृतांत माना जाता है.’ वॉल्टर डब्ल्यू. लॉरेंस (आईसीएस) जम्मू-कश्मीर के सेटलमेंट कमिश्नर थे (हेनरी फ्रोडे, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस वेयरहाउस, 1895). स्थिति की अपूर्ण समझ या भारतीय इतिहास का पक्षपाती दृष्टिकोण का मामला मानते हुए हम किताब का ब्योरा भी दे रहे हैं ताकि आप चाहें तो खुद को शिक्षित कर सकें. अन्य कई ऐतिहासिक एवं कानूनी संदर्भ दस्तावेज़ भी उपलब्ध हैं, बशर्ते आप तथ्यों को जानने की इच्छा रखते हों. ’
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पत्र में महाराजा हरि सिंह द्वारा हस्ताक्षरित विलय के दस्तावेज़ का भी उल्लेख किया गया है. इसमें कहा गया है, ‘जम्मू-कश्मीर की रियासत के वंशानुगत शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय के दस्तावेज़ पर 26 अक्तूबर 1947 को हस्ताक्षर किए थे. इस दस्तावेज़ को तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने मान्यता दी थी. इस तरह, ब्रितानी सरकार, कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा निर्धारित और मान्य कानूनी प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का अभिन्न हिस्सा बना. क्षेत्रीय एकीकरण की इस प्रक्रिया को समझने के लिए कृपया भारत के संविधान से संबंधित ऐतिहासिक और कानूनी दस्तावेज़ों को पढ़ें.’
पत्र में इस संबंध में संविधान का भी उल्लेख किया गया है.’
भारतीय संविधान को भारत की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों ने तैयार किया था जिनमें जम्मू-कश्मीर के भी चार प्रतिनिधि (आपकी जानकारी के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला भी इस टीम का हिस्सा थे) शामिल थे. भारतीय संविधान की अनुसूची 1 के अनुच्छेद 1 में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक राज्य है, और 31 अक्टूबर 2019 से इसे जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश एवं लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाता है. दुनिया के किसी भी अन्य देश ने कभी जम्मू-कश्मीर पर अपने क्षेत्र का हिस्सा होने का दावा नहीं किया है, न ही कोई देश ऐसा दावा कर सकता है. पूर्व राज्य और वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेशों के सभी लोग भारतीय पासपोर्ट रखते हैं और उनके पास भारत की नागरिकता है.’
(लेखक आरएसएस से संबद्ध इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के सीईओ हैं और उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं.)
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Bahut badiya sir