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Sunday, 24 November, 2024
होमएजुकेशनCAG की रिपोर्ट में खुलासा, साल 2008-09 में बनाए गए आठ IIT में हुआ टारगेट का सिर्फ एक तिहाई एडमिशन

CAG की रिपोर्ट में खुलासा, साल 2008-09 में बनाए गए आठ IIT में हुआ टारगेट का सिर्फ एक तिहाई एडमिशन

2014 से 2019 के बीच की अवधि में CAG ने इंदौर, रोपड़, हैदराबाद, पटना, मंडी, गांधीनगर, भुवनेश्वर और जोधपुर IITs के कामकाज का ऑडिट किया.

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नई दिल्ली: यूपीए सरकार के दौर में 2008-09 में स्थापित किए गए आठ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटीज़), ‘छात्रों को शिक्षा के अधिकतम अवसर’ नहीं दे पाए हैं’, और शुरुआती छह वर्षों में कुल लक्षित संख्या के केवल 33 प्रतिशत छात्रों को ही दाख़िले मिल पाए. ये ख़ुलासा पिछले सप्ताह जारी की गई, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में किया गया है

ऑडिट में शामिल किए गए आईआईटीज़ में इंदौर, रोपड़ (रूपनगर), हैदराबाद, पटना, मंडी, गांधीनगर, भुवनेश्वर और जोधपुर शामिल हैं, जिन्हें दूसरी पीढ़ी के आईआईटीज़ भी कहा जाता है.

भारत में फिलहाल 23 आईआईटीज़ हैं. इनमें से सात संस्थान 1951 से 2001 के बीच स्थापित किए गए थे, आठ 2008-09 में जोड़े गए, आईटी-बीएचयू को 2012 में आईआईटी-बीएचयू में तब्दील कर दिया गया, और 2015-16 में इस सूची में सात और संस्थान जोड़े गए.

दूसरी पीढ़ी के आठ आईआईटीज़ का परफॉर्मेंस ऑडिट (पीए) अगस्त 2019 में शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य ये आकलन करना था कि क्या ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, उपकरणों और सेवाओं की ख़रीद, शैक्षणिक और शोध गतिविधियां, शासन तथा निरीक्षण, और वित्तीय प्रबंधन का काम किफायती, कुशल और प्रभावी ढंग से किया गया था’. ऑडिट में 2014 से 2019 के बीच पांच वर्ष की अवधि कवर की गई.

सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, ‘शिक्षा मंत्रालय (एमओई) की परिकल्पना थी कि शुरुआती छह वर्षों (2008-14) में, आठ आईआईटीज़ में कुल 18,880 छात्र लिए जाएंगे. लेकिन देखा गया कि इस अवधि के दौरान आठ आईआईटीज़ में, केवल 6,224 छात्रों (33 प्रतिशत) को दाख़िला दिया जा सका, जिससे छात्रों के लिए शिक्षा के अधिकतम अवसर पैदा करने का लक्ष्य, पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सका’.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ‘सभी आठों आईआईटीज़ में पीजी/पीएचडी कार्यक्रमों में रिक्तियां देखी गईं, जो एक संकेत था कि छात्रों की संख्या, और इन कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, ताकि ज़रूरी संख्या में उपयुक्त छात्रों को आकर्षित किया जा सके’.

रिपोर्ट में ये भी पता चला कि सभी आठ आईआईटीज़ में, एससी, एसटी, और ओबीसी श्रेणियों के छात्रों का, पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) और पीएचडी नामांकन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था.

पीजी पाठ्यक्रमों में, आईआईटी-गांधीनगर में एससी छात्रों के दाख़िले में कमी 30 प्रतिशत थी, जबकि एसटी छात्रों के लिए ये कमी 7 प्रतिशत (आईआईटी रोपड़) से लेकर 69 प्रतिशत (आईआईटी-गांधीनगर) तक थी. पीएचडी कोर्सेज़ में एससी छात्रों की कमी 25 प्रतिशत (आईआईटी-हैदराबाद) से लेकर 75 प्रतिशत (आईआईटी-रोपड़) तक थी, जबकि एसटी छात्रों के लिए ये कमी 65 प्रतिशत (आईआईटी भुवनेश्वर) से 100 प्रतिशत (आईआईटी-जोधपुर) तक थी.

ऑडिट में शिक्षण पदों में रिक्तियां, भूमि आवंटन में देरी, और आंतरिक फंड्स की कम प्राप्तियों का भी पता चला.


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‘फैकल्टी पदों में 5 से 36% रिक्तियां’

छात्रों के दाख़िलों में कमी के अलावा, इन आठ आईआईटीज़ के सीएजी ऑडिट में, कुछ और चुनौतियों का भी पता चला.

मसलन, रिपोर्ट के अनुसार, ‘आईआईटीज़ के प्रयासों और साल-दर-साल फैकल्टी भर्ती में इज़ाफे के बावजूद, सात आईआईटीज़ में फैकल्टी पदों में 5 से 36 प्रतिशत तक रिक्तियां देखी गईं’. ये रिक्तियां रोपड़ (रूपनगर, पंजाब) को छोड़कर सभी दूसरे संस्थानों में देखी गईं. टीचिंग स्टाफ में ये कमी मार्च 2019 तक देखी गई.

रिक्तियों पर टिप्पणी करते हुए ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसकी वजह से छात्रों के दाख़िलों में तेज़ी से विस्तार की राह बाधित हुई. दीर्घकाल में, इन रिक्तियों का शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा, क्योंकि रिक्तियों से इन प्रीमियर संस्थानों में, मौजूदा फैकल्टी पर काम का बोझ बढ़ जाता है’.

ऑडिटर का ध्यान इसपर भी गया, कि कुछ आईआईटीज़ को भूमि आवंटन में भी देरी हुई, और उसने कहा कि इस कारण से अंत में, छात्रों को दी जाने सुविधाओं पर बुरा असर पड़ा.

सीएजी रिपोर्ट में कहा गया, ‘आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी इंदौर, आईआईटी जोधपुर और आईआईटी पटना में, शिक्षा मंत्रालय द्वारा परिकल्पित पर्याप्त ज़मीन (500-600 एकड़) उपलब्ध थी, जबकि आईआईटी भुवनेश्वर, आईआईटी गांधीनगर, आईआईटी मंडी और आईआईटी रोपड़ में ज़मीन के आवंटन और हस्तांतरण के मुद्दे, उनकी स्थापना के एक दशक बाद भी बने हुए थे’. उसमें आगे कहा गया, ‘आईआईटीज़ के लिए छात्रों को नियोजित सुविधाएं मुहैया कराने की राह में, आवश्यक ज़मीन का अभाव एक बड़ी बाधा थी.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि निर्माण की गति, छात्रों तथा सुविधाओं में परिकल्पित इज़ाफे की रफ्तार के अनुरूप नहीं थी. उसमें ये भी कहा गया, ‘इनफ्रास्ट्रक्चर विकास के लक्ष्यों का समयबद्ध तरीक़े से पूरा न किए जाने का भी, आठ आईआईटीज़ में छात्रों के दाख़िले पर असर पड़ा.’

इनफ्रास्ट्रक्चर विकास में देरी इन पांच आईआईटीज़ में ज़्यादा थी- ऑडिटर ने पाया कि आईआईटी हैदराबाद में ये 56 महीने तक थी; आईआईटी मंडी के लिए ये 41 महीने तक थी; आईआईटी रोपड़ के लिए 39 महीने तक थी; और आईआईटी गांधीनगर तथा आईआईटी इंदौर के लिए ये देरी 37 महीने तक थी.

रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘इसकी वजह से इनफ्रास्ट्रक्चर विकास का काम भी छह वर्ष की निर्धारित अवधि से आगे बढ़ गया. इसके परिणामस्वरूप, पूंजी ख़र्च को भी 6,080 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 14,332 करोड़ रुपए, और परियोजना अवधि को बढ़ाकर 13 वर्ष करना आवश्यक हो गया.’

सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया, कि संस्थान पर्याप्त आंतरिक प्राप्तियां नहीं जुटा पाए, और पैसे के लिए उन्हें केंद्र सरकार पर निर्भर करना पड़ा. उसमें कहा गया, ‘आंतरिक प्राप्तियों (फीस, ब्याज, परामर्श कार्य, प्रकाशन आदि) का आईआईटीज़ के आवर्त्ती ख़र्च से अनुपात, इनकी स्थापना के एक दशक बाद भी बहुत कम था. इसकी वजह से इन आईआईटीज़ को अपने आवर्त्ती ख़र्च पूरा करने के लिए, मजबूरन भारत सरकार (जीओआई) पर काफी हद तक आश्रित रहना पड़ा.’

आईआईटी हैदराबाद के मामले में, वित्तीय देरी के एक विशिष्ट मामले पर प्रकाश डालते हुए, ऑडिटर ने कहा कि उसे ‘जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (जीका) के उपलब्ध फंड्स का इस्तेमाल करने में, तीन वर्ष की लंबी देरी’ नज़र आई. ऑडिटर के अनुसार देरी के नतीजे में, कैम्पस के अंदर समयबद्ध तरीक़े से शैक्षणिक और शोध गतिविधियों की उन्नति के, लक्षित उद्देश्य को हासिल नहीं किया जा सका.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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