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Thursday, 26 December, 2024
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भारत में केवल 10.5% पुलिसकर्मी महिलाएं हैं और 3 में से सिर्फ 1 पुलिस थाने में CCTV है – रिपोर्ट

न्याय क्षेत्र के सुधार की दिशा में काम कर रहे समूहों द्वारा तैयार की गई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कहती है कि भारत के पुलिस बल को महिलाओं की 33% नुमाइंदगी हासिल करने में 33 साल लग जाएंगे.

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नई दिल्ली: भारतीय पुलिस बल की शक्ति भले ही पिछले 10 वर्षों में (2010-2020) 32 प्रतिशत बढ़ गई हो लेकिन सभी राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों के पूरे बल में महिलाओं की संख्या केवल 10.5 प्रतिशत है, जबकि हर तीन पुलिस थानों में से केवल एक ही में सीसीटीवी लगा है- ये खुलासा इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) में किया गया है.

पहली बार 2019 में प्रकाशित इंडिया जस्टिस रिपोर्ट का संकलन, न्याय क्षेत्र के सुधार की दिशा में काम कर रहे संगठनों के एक समूह ने किया है. इन संगठनों में सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और हाउ इंडिया लिव्ज शामिल हैं.

हर साल प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट के अनुसार, देश के 41 प्रतिशत पुलिस थानों में जनवरी 2021 तक महिलाओं के लिए सहायता डेस्क स्थापित नहीं हुई थी. त्रिपुरा एकमात्र राज्य है जहां सभी पुलिस थानों में इस तरह की सहायता डेस्क हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश में एक भी नहीं है. नौ राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में 90 प्रतिशत से अधिक पुलिस थानों में, महिलाओं के लिए हेल्प डेस्क मौजूद हैं.

पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो की ओर से 2021 में जारी ‘पुलिस संगठनों के आंकड़ों’ की सालाना रिपोर्ट, आईजेआर द्वारा की गई पुलिस बजट के मात्रात्मक और तुलनात्मक माप, मानव संसाधन, विविधता और काम के बोझ के आधार पर, रिपोर्ट में पता चला कि पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 3.3 से 10.5 तक पहुंचने में, 15 साल का समय लग गया.

छह केंद्र-शासित क्षेत्र और 11 राज्यों में पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का लक्ष्य है. बिहार में ये लक्ष्य 38 प्रतिशत है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, और त्रिपुरा में ये 10 प्रतिशत है. सात अन्य राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में कोई आरक्षण नहीं है. लेकिन, आईजेआर के अनुसार 2020 तक, कोई एक राज्य या यूटी भी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सका था.

बड़े और मध्यम आकार के सूबों में तमिलनाडु, बिहार और गुजरात में पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक है, जो क्रमश: 10.4, 17.4 और 16 प्रतिशत है. लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सूबे भी अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते, जो क्रमश: 30, 38 और 33 प्रतिशत है. केंद्र-शासित क्षेत्रों में चंडीगढ़ में ये संख्या सबसे अधिक 22.1 प्रतिशत है.

इस बीच 6.3 प्रतिशत के साथ अरुणाचल प्रदेश में महिलाओं की संख्या सबसे कम है, जिसके बाद झारखंड और मध्यप्रदेश हैं जहां दोनों में ये 6.6 प्रतिशत है.

बिहार और हिमाचल प्रदेश सूबों में पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी में तेजी से गिरावट देखी गई है- 2019 में बिहार में 25.3 प्रतिशत आरक्षण था, जो 2020 में घटकर 17.4 प्रतिशत रह गया, जबकि हिमाचल प्रदेश में भी ये प्रतिशत 2019 में 19.2 से गिरकर 2020 में 13.5 पर आ गया.

अपने निष्कर्षों के आधार पर आईजेआर में कहा गया है कि भारत के पुलिस बल को, महिलाओं की 33% नुमाइंदगी का वांछित लक्ष्य हासिल करने में 33 साल लग जाएंगे. रिपोर्ट के अनुसार, बड़े राज्यों में जहां ओडिशा को इसे हासिल करने में 428 साल लगेंगे. वहीं, बिहार आठ वर्षों में लक्ष्य तक पहुंच जाएगा. उसमें आगे कहा गया कि दिल्ली पुलिस को इसमें 31 साल लगेंगे, जबकि मिजोरम को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में 585 साल लग जाएंगे.


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महिला पुलिस अधिकारियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम

आईजेआर के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर महिला पुलिस अधिकारियों का प्रतिशत अभी भी कम (8.2) है और 11 राज्यों समेत केंद्र-शासित क्षेत्रों में ये 5 प्रतिशत या उससे भी कम है.

जहां तमिलनाडु और मिजोरम में 20.2 प्रतिशत के साथ महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या सबसे अधिक है वहीं जम्मू-कश्मीर में ये सबसे कम 2 प्रतिशत है. केरल में ये संख्या 3 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 4.2 प्रतिशत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्षद्वीप में जहां कुल 18 पुलिस अधिकारी हैं, वहां कोई महिला अधिकारी नहीं है.

3 में से केवल 1 पुलिस थाने में CCTV है

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के तीन में से केवल एक पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में, एक मामले (परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह) में पुलिसकर्मियों द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग का संज्ञान लेते हुए, सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी लगाए जाने का आदेश दिया था.

आईजेआर में कहा गया है कि 2021 की ‘पुलिस संगठन के आंकड़े’ रिपोर्ट में, भारत के 17,233 पुलिस थानों में से 5,396 में एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं हैं. केवल तीन राज्य- ओडिशा, तेलंगाना और पुदुचेरी ऐसे हैं जहां हर पुलिस थाने में कम से कम एक सीसीटीवी मौजूद है, जबकि मणिपुर, लद्दाख और लक्षद्वीप में किसी भी थाने में सीसीटीवी नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में, जहां 894 पुलिस थाने हैं, केवल एक में सीसीटीवी है.

अधिकतर राज्य ST, SC, OBC भर्ती कोटा में पिछड़ रहे

आईजेआर में पता चला कि केवल एक कर्नाटक को छोड़कर सभी सूबे और केंद्र-शासित क्षेत्र, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अति-पिछड़े वर्गों से भर्ती के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं. सिपाही स्तर पर, गुजरात एक अकेला राज्य है जिसने अपना लक्ष्य प्राप्त किया है.

रिपोर्ट में कहा गया कि जहां 2010 में, पुलिस अधिकारी के स्तर पर छह राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों ने एससी कोटा पूरा कर लिया या उससे आगे निकल गए, वहीं 10 साल बाद 2020 में, केवल पांच राज्यों- गुजरात, मणिपुर, कर्नाटक, गोवा और तमिलनाडु ने या तो उसे पूरा किया या उससे आगे निकल गए.

2010 में, पांच राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों ने अपने एसटी कोटा को पूरा किया और 2021 में आठ राज्य कोटा तक पहुंचने या उससे आगे बढ़ने में कामयाब हो गए. 2010 में जहां तीन राज्य और यूटी ओबीसी कोटा स्तर तक पहुंच गए, वहीं 2021 में आठ राज्यों ने कोटा को पूरा कर लिया, या उससे अधिक हासिल कर लिया.

आईजेआर के मुख्य संपादक माजा दारूवाला ने रिपोर्ट में कहा, ‘केंद्र, राज्य, और केंद्र-शासित क्षेत्र (यूटी) स्तर पर सरकारों ने, अपने पुलिस बल में नीति और जनादेश दोनों के जरिए विविधता को स्वीकार किया है. 24 राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों में जहां एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण है. उनमें केवल कर्नाटक ने 2020 में अपने वैधानिक आरक्षित कोटा को पूरा किया है. 17 राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में, जिन्होंने अपने पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण रखा है, कोई भी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है’.


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पुलिस बल में 5.62 लाख रिक्तियां

रिपोर्ट में कहा गया कि जनवरी 2021 तक भारतीय पुलिस बल में 5.62 लाख रिक्तियां थीं.

2010 से 2020 के बीच पुलिस की कुल संख्या में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई- जो 15.6 लाख से बढ़कर 20.7 लाख पहुंच गई लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि सिपाहियों और अधिकारियों के पदों पर ये रिक्तियां स्थिर बनी हुई हैं.

बिहार में कुल रिक्तियों की संख्या सबसे अधिक 41.8 प्रतिशत और उत्तराखंड में 6.8 प्रतिशत है. जहां तेलंगाना में 38 प्रतिशत से 28 प्रतिशत पर सबसे तेज गिरावट देखी गई, वहीं बिहार और महाराष्ट्र में रिक्तियों की संख्या बढ़कर, क्रमश: 33.9 से 41.8 और 11.7 से 16.3 हो गई.

रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना, कर्नाटक और केरल केवल तीन राज्य हैं, जो सिपाही और अधिकारी स्तर पर अपनी रिक्तियों को कम कर पाए हैं. उसमें आगे कहा गया कि दूसरी ओर, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम में सिपाहियों और अधिकारियों के एक चौथाई से अधिक पद खाली पड़े हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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