नई दिल्ली: भारत के आठ हाई कोर्ट्स में वर्तमान में सिर्फ एक ही महिला जज हैं, और गुजरात देश का महज़ हाई कोर्ट है, जहां एक महिला मुख्य न्यायाधीश है. दिप्रिंट द्वारा विश्लेषित 25 हाई कोर्ट्स के आंकड़े यह दर्शाते हैं. यह डेटा केंद्रीय विधि मंत्रालय के न्याय विभाग की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है और न्यायपालिका में लिंग आधारित असमानता को उजागर करता है.
उदाहरण के लिए, केवल पांच हाई कोर्ट ऐसे हैं, जहां महिलाओं को संबंधित कॉलेजियम का सदस्य बनाया गया है—गुजरात, बॉम्बे, कर्नाटक और पंजाब एवं हरियाणा.
इसके अलावा, 2018 से विभिन्न हाई कोर्ट्स में वकीलों को जज के रूप में पदोन्नत किया गया, जिनमें से केवल 108 महिलाएं थीं—जो कि कुल 608 नियुक्तियों में मात्र 17 प्रतिशत हैं. उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व से संबंधित यह आंकड़ा गुरुवार को संसद में प्रस्तुत किया गया.
राज्यसभा सदस्य नीरज डांगी द्वारा उच्च न्यायालयों में अधिक महिला और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उठाए गए उचित कदमों को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह जानकारी दी. डांगी ने उच्च न्यायालयों में खाली पदों की संख्या और भारत में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात के बारे में भी जानकारी मांगी थी.
मेघवाल ने अपने उत्तर में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया का हवाला देते हुए बताया कि न्यायपालिका में किसी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. चूंकि केंद्र स्तर पर कोई श्रेणीवार डेटा संग्रहीत नहीं किया जाता, इसलिए उन्होंने सूचित किया कि उनके द्वारा प्रस्तुत जानकारी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों और सरकार द्वारा जारी अंतिम नियुक्ति अधिसूचनाओं के आधार पर संकलित की गई है.
उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की कम संख्या एक बहुचर्चित विषय रहा है, फिर भी स्थिति अब तक अपरिवर्तित बनी हुई है.
इस समय कुल 755 कार्यरत न्यायाधीशों में से केवल 109 महिलाएं हैं. यानी, उच्च न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की संख्या सिर्फ 14 प्रतिशत है.
2023 में उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत 13 था, जो 2011 में 11 प्रतिशत से थोड़ा बढ़ा.
उच्च न्यायालयों में महिलाओं की कम संख्या का कारण उनके पेशे में कम उपस्थिति और, सबसे महत्वपूर्ण, निर्णय लेने वाली संस्था कॉलेजियम में उनकी कम भागीदारी को माना जाता है.
उच्च न्यायालयों में कॉलेजियम का नेतृत्व वहां के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और इसमें उनके बाद के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. यह संस्था उपयुक्त वकीलों की एक मेरिट सूची तैयार करती है, जिन्हें न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया जा सकता है, और फिर इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्र के सामने रखती है.
इन नियुक्तियों पर अंतिम निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के नेतृत्व वाले सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है. केंद्र सरकार इन नामों को अंतिम स्वीकृति मिलने के बाद ही अधिसूचित करती है.
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विभिन्न हाई कोर्ट कहां स्थित हैं?
दिप्रिंट के विश्लेषण में यह भी सामने आया कि देश के सबसे बड़े इलाहाबाद उच्च न्यायालय में, जहां कुल 79 न्यायाधीश कार्यरत हैं, केवल 3 महिलाएं जज हैं.
मद्रास और बॉम्बे हाई कोर्ट में वर्तमान में 65-65 जज कार्यरत हैं. इनमें मद्रास हाई कोर्ट में 13 और बॉम्बे हाई कोर्ट में केवल 11 महिला जज हैं.
कर्नाटक हाई कोर्ट में कुल 49 जजों में से सिर्फ 8 महिलाएं हैं. इसके पड़ोसी राज्य केरल की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है. वहां कुल 45 न्यायाधीशों में से केवल 4 महिलाएं हैं.
दिल्ली हाई कोर्ट में 39 जजों में से 9 महिलाएं हैं, जबकि कलकत्ता हाई कोर्ट में 43 में से सिर्फ 6 महिला जज हैं.
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में 30 जजों में से केवल 5 महिलाएं हैं. वहीं, तेलंगाना हाई कोर्ट, जिसकी कार्यसंख्या समान है, महिलाओं के मामले में थोड़ा बेहतर है और वहां 10 महिला जज हैं.
देश के 8 हाई कोर्ट ऐसे हैं जहां केवल 1 महिला जज है—छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, मणिपुर, ओडिशा, पटना और सिक्किम. इनमें छत्तीसगढ़ और झारखंड हाई कोर्ट में कुल 16-16 जज हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में 12, मध्य प्रदेश में 33, पटना में 34 और ओडिशा में 18 जज कार्यरत हैं. मणिपुर और सिक्किम हाई कोर्ट में क्रमशः 4 और 3 जज हैं.
उत्तराखंड हाई कोर्ट में सभी 8 जज पुरुष हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में 15 में से 2 महिला जज हैं. मेघालय और त्रिपुरा हाई कोर्ट्स में सभी 4 जज पुरुष हैं.
भारत के कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों (CJI) और न्यायाधीशों ने उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की बेहद कम संख्या पर चिंता व्यक्त की है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जिन्होंने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में तीन महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश की थी, ने न्यायपालिका में महिलाओं के लिए आरक्षण की वकालत की थी.
2021 में जस्टिस हीमा कोहली, बेला एम. त्रिवेदी और बी.वी. नागरत्ना की नियुक्ति के बाद पहली बार सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक हुई थी.
वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट में केवल 2 महिला जज हैं. मई में जस्टिस त्रिवेदी के रिटायर्ड होने के बाद यह संख्या घटकर सिर्फ 1 रह जाएगी.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, जिनके कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या घटकर दो रह गई, ने अधिक महिला न्यायाधीश नियुक्त करने में असमर्थता जताई. उन्होंने कहा कि जिस आयु वर्ग के लोग न्यायाधीश बनने के योग्य होते हैं, उसमें महिलाओं के चयन की संभावनाएं सीमित हैं.
न्यायमूर्ति हीमा कोहली के विदाई समारोह में, जब वे मुख्य न्यायाधीश के पद पर थे, चंद्रचूड़ ने कहा था कि कानूनी पेशे में समान अवसर नहीं हैं. इससे पहले, एक अन्य कार्यक्रम में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि “आज हमारे संस्थानों में समावेशन और विविधता का जो स्वरूप दिख रहा है, वह दो दशक पहले इस पेशे की स्थिति को दर्शाता है. क्योंकि 2023 में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले जज, वकालत के पेशे की शुरुआत में मौजूद स्थितियों का ही प्रतिबिंब हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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