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Saturday, 21 December, 2024
होमदेश‘रोज के मिल्क कलेक्शन में केवल 0.25% की गिरावट’- अमूल के एमडी ने लंपी स्किन बीमारी के असर से किया इनकार

‘रोज के मिल्क कलेक्शन में केवल 0.25% की गिरावट’- अमूल के एमडी ने लंपी स्किन बीमारी के असर से किया इनकार

आर.एस. सोढ़ी कहते हैं कि संक्रमण के कारण मवेशियों का दूध उत्पादन घट सकता है, लेकिन इसका असर कुछ दिनों तक ही रहता है. उन्होंने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि मानसून के साथ इस प्रकोप के शुरुआती प्रभाव की भरपाई हो गई है.

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आणंद (गुजरात): अन्य राज्यों के अलावा गुजरात में भी मवेशियों में लंपी स्किन बीमारी के कारण देश की दुग्ध राजधानी आणंद में दूध उत्पादन पर मामूली प्रभाव पड़ा है. गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड या अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी कहते हैं कि हर दिन किए जाने वाले दूध के कलेक्शन में सिर्फ 0.25 प्रतिशत की गिरावट आई है.

सोढ़ी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में बताया, ‘बीमारी कुछ दिनों तक ही चलती है, इस दौरान जानवर कमजोर हो जाता है. क्योंकि बीमार गाय की खुराक घट जाती है. स्वाभाविक तौर पर उन 10 से 12 दिनों के दौरान दूध उत्पादन कम हो सकता है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे 2 करोड़ लीटर प्रतिदिन के दूध संग्रह में से लगभग 50,000 लीटर की कमी आई है. ये कुल कलेक्शन का महज 0.25 फीसदी है.’

आणंद जिला डॉ. वर्गीज कुरियन की दुग्ध क्रांति के लिए प्रसिद्ध है—जिन्हें ‘भारत का मिल्कमैन’ कहा जाता है. उन्होंने डेयरी फार्मिंग को भारत का सबसे बड़ा आत्मनिर्भर उद्योग बना दिया.

इस मॉडल के तहत, बड़ी पशु आबादी वाले विशाल डेयरी फार्म चलाने के बजाय संघ को दूध बेचने के इच्छुक हर छोटे किसान से दूध खरीदा जाता है.

लंपी स्किन डिजीज में संक्रमित गायों की दूध उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है. गौरतलब है कि इस बीमारी के प्रकोप के कारण पिछले एक माह में गुजरात, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में हजारों मवेशियों के मारे जाने की सूचना है.

आशंका जताई जा रही थी कि आणंद में भी दूध उत्पादन प्रभावित हुआ होगा, लेकिन सोढ़ी ने ऐसी चिंताओं को खारिज कर दिया है.

उन्होंने कहा कि बहुत ‘मामूली कमी’ आई है, साथ ही जोड़ा कि ‘अब अच्छे मानसून के कारण इसकी भरपाई भी हो रही है. उन्होंने कहा, ‘अच्छे मानसून के कारण हमारी खरीद दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.’

सोढ़ी ने बताया कि वैसे भी गर्मी में मवेशी कम ही दूध उत्पादन करते हैं क्योंकि गर्मी से उनमें तनाव बढ़ता है, और दुग्ध उत्पादन घट जाता है. हालांकि, जैसे ही मानसून और सर्दी शुरू होती है, दूध उत्पादन बढ़ जाता है क्योंकि यह मौसम मवेशियों के लिए अधिक आरामदायक होता है.

कैप्री पॉक्स वायरस के कारण होने वाली लंपी स्किन बीमारी गाय और भैंस दोनों को अपनी चपेट में लेती है. जिले के अधिकारियों के मुताबिक, गुजरात में गायों में इसका प्रकोप अधिक पाया गया है.

मौजूदा समय में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, और उपचार आम तौर पर क्लिनिकल सिम्पटम पर केंद्रित होता है. अभी जो टीका लगाया जा रहा है, वो वही है जो गोटपॉक्स वायरस के खिलाफ इस्तेमाल होता है, हालांकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दो संस्थानों ने अब कथित तौर पर इस बीमारी के लिए एक स्वदेशी टीका विकसित किया है, जिसे केंद्र सरकार कमर्शियल बनाने की योजना बना रही है.


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‘अमूल के पशु चिकित्सक मवेशियों के टीकाकरण में जुटे’

गुजरात में व्यापक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में बात करते हुए, सोढ़ी ने कहा, ‘सौभाग्य से, टीका काफी सस्ती दर पर उपलब्ध है.’

लंपी स्किन बीमार में इस्तेमाल किए जा रहे गोटपॉक्स के टीके की कीमत 6.5 रुपये है और जिला प्रशासन कोऑपरेटिव के डॉक्टरों की मदद से इसे नि:शुल्क उपलब्ध करा रहा है.

आणंद में गुजरात सरकार और अमूल मिलकर मवेशियों का टीकाकरण कर रहे हैं.

सोढ़ी ने आगे बताया, ‘अमूल में 1,100 से अधिक पशु चिकित्सक हैं जो बीमारी पर काबू पाने के लिए इस (टीकाकरण अभियान) पर काम कर रहे हैं. आणंद में अब तक 27 से 28 लाख पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है.’
गुजरात में इस बीमारी के भैंसों से ज्यादा गायों पर पड़ने वाले असर के बारे में बात करते हुए सोढ़ी ने कहा कि गुजरात में 58 फीसदी दूध भैंसों से और 42 फीसदी गायों से आता है.

उन्होंने कहा कि यह भी एक वजह है कि आणंद में दूध संग्रह मामूली रूप से ही प्रभावित हुआ है.

उनके मुताबिक, दूसरा कारण यह है कि पालतू पशुओं की तुलना में आवारा और छोड़े जा चुके मवेशी इस बीमारी से अधिक प्रभावित हो रहे हैं.

सोढ़ी ने कहा, ‘जो जानवर गौशाला में होते हैं, उनकी उतनी देखभाल नहीं होती जितनी किसानों द्वारा पाले जा रहे जानवरों की होती है. प्रतिरक्षा कम होने से वे अधिक प्रभावित होते हैं. साथ ही कहा कि गौशालाओं में छोटी जगह में जानवरों की संख्या भी ज्यादा होती हो जो बीमारी फैलने का एक और कारण है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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