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Friday, 1 November, 2024
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उपद्रव, भय और इंटरनेट बैन का एक हफ्ता जिसने यूपी की तहजीब, प्रशासन और जीरो टाॅलरेंस की पोल खोल दी

हिंसक विरोध प्रदर्शन में यूपी में मरने वालों की संख्या 18 हो गई है. वहीं उत्तर प्रदेश में घायल पुलिसकर्मियों का आंकड़ा 263 पहुंच चुका है. इसमें 57 पुलिसकर्मी प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से घायल हुए हैं.

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लखनऊ : 19 दिसंबर से लेकर 25 दिसंबर 2019 ये सप्ताह यूपी के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा. इन सात दिनों ने साबित कर दिया कि यूपी जितना पिछड़ा माना जाता है, उससे कहीं ज्यादा पीछे है. न सिर्फ विकास में बल्कि सोच में, तहजीब, शासन प्रबंध और गवर्नेंस में भी. इस एक हफ्ते में यूपी ने भयंकर उपद्रव, जबर्दस्त भय की स्थिति और लंबा इंटरनेट बैन देखा. नागरिकता संशोधन बिल के विरोध से शुरू हुए प्रदर्शन ने इतना हिंसात्मक रूप ले लिया, जिसने यूपी की तस्वीर को काफी भयावह बना दिया.

इस एक हफ्ते में क्या-क्या हुआ

दिसंबर के दूसरे व तीसरे सप्ताह में बीच नागरिकता संशोधन बिल को लेकर दिल्ली में तमाम जगह प्रोटेस्ट चल रहा था. जामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज के विरोध में यूपी के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और नदवा काॅलेज में प्रोटेस्ट शुरू हुआ, जिसके उग्र होने पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. इसके बाद तमाम समाजिक संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से 19 दिसंबर को लखनऊ में बड़ा विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया गया. सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन के इनवाइट से जुड़े पोस्ट साझा होने लगे. इस बीच 18 दिसंबर को यूपी पुलिस डीजीपी की ओर से एक बयान जारी होता है जिसमें कहा जाता है कि किसी भी तरह का कोई प्रोटेस्ट न करें क्योंकि प्रदेश में धारा 144 लागू है.

डीजीपी के इस बयान पर तमाम विपक्षी दल के नेता और सोशल एक्टिविस्ट सवाल खड़े करते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि लोकतांत्रिक तरह से विरोध प्रदर्शन करना कोई गैर-कानूनी नहीं हेै. इस बीच लखनऊ में एक्टिविस्ट ये ठान लेते हैं कि वे विरोध प्रदर्शन कैंसिल नहीं करेंगे. 19 दिसंबर की सुबह समाजवादी पार्टी (जिला संगठन) व कांग्रेस के प्रदेश संगठन के नेता विरोध प्रदर्शन करते हैं. इस दौरान तमाम कांग्रेसी नेताओं को दोपहर में पुलिस हिरासत में लेकर पुलिस लाइन मैदान ले जाती है.

उपद्रव की ऐसे हुई शुरुआत

दूसरी ओर लखनऊ के परिवर्तन चौक पर तमाम सोशल एक्टिविस्ट समेत बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के युवक पोस्टर बैनर लेकर हजरतगंज की ओर बढ़ रहे होते हैं. इसी बीच ये प्रदर्शन उग्र हो जाता है. चश्मदीद बताते हैं कि पुलिस की ओर से पहले लाठीचार्ज होती है जिसके बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो जाते हैं. हालांकि, पुलिस का कहना था कि कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्थर फेंकने के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया. बहरहाल, लगभग तीन घंटे तक पुलिस व प्रदर्शनकारियों के बीच तनातनी चलती रही. इस दौराम मुंह ढक कर आए कुछ युवकों ने काफी तोड़फोड़ की और मीडिया की ओबी वैन में भी आग लगा दी.

केवल लखनऊ में ही 20 बाइक, 10 कार, 4 ओबी वैन परिवर्तन चौक इलाके में फूंक दी गईं. इसके बाद पुलिस ने भी जमकर लाठी बरसाईं, जिसमें तमाम लोग घायल हो गए. देर शाम एक मुस्लिम युवक की मौत भी हो गई. हालांकि, पुलिस गोली चलाने की बात से इनकार करती रही. पूरे लखनऊ में तनाव का माहौल हो गया. देर शाम ही प्रशासन को मोबाइल इंटरनेट सेवाएं रोकनी पड़ीं. तर्क दिया गया कि अफवाहों पर रोक लगाने के मकसद से ऐसा किया गया है.

हिंसा के बाद सीएम योगी का बयान आया कि सभी उपद्रवी चिन्हित किए जा रहे हैं, सीसीटीवी फुटेज और वीडियो के द्वारा उपद्रवियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी. उपद्रवियों की संपत्ति जप्त कर सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का हर्जाना वसूला जाएगा. उपद्रवियों से निपटने के लिए प्रशासन को पूरी छूट दे दी गई. योगी के इस बयान ने पुलिस को ‘फ्री हैंड’ दे दिया. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज व तस्वीरों के आधार पर घरों में घुसकर आरोपियों को पकड़ना शुरू कर दिया. पुराने लखनऊ इलाके के तमाम लोगों ने बताया कि पुलिस ने घर में घुसकर प्रताड़ित किया और तोड़फोड़ भी की.

दूसरे शहरों में फैली हिंसा

लखनऊ से फैली ये हिंसा की आग दूसरे शहरों तक पहुंच गई. कानपुर, गोरखपुर, अलीगढ़, फिरोजाबाद, मेरठ, मुज्जफरनगर, बिजनौर, मऊ, रामपुर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए. कानपुर में 20 दिसंबर को जुमे की नमाज़ के बाद सैकड़ों की तादाद में लोग इकट्ठा हुए और सीएए के विरोध में सरकार न पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे. यहां भी विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया. पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. ठीक ऐसा ही मुज्जफरनगर, मेरठ और बिजनौर में हुआ. प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच जमकर तनाव हुआ. इस दौरान लाठी, ईंट, पत्थर, गोली सब कुछ प्रयोग किया गया.


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पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल

पश्चिम यूपी के तमाम शहरों से दिल दहला देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं. बिजनौर में 20 वर्षीय सुलेमान की गोली लगने से मौत हो गई. सुलेमान की मां अकबरी खातून बताती हैं कि उनका बेटा यूपीएससी की तैयारी कर रहा था. उन्होंने कहा, वो दिन-रात एक करके पढ़ाई और यूपीएससी की तैयारी करता था, बिना गलती के उसे मार दिया गया. इसी तरह पश्चिम यूपी के ऐसे तमाम परिवार हैं जिनके घर के चिराग बुझ गए. पुलिस की लाठियों से घायल कई युवक अभी भी अस्पताल में है. चोट के निशान दिखाते हुए उनके परिजनों की आंखों से आंसू आ रहे हैं.

इधर जेल में बंद आरोपियों को भी प्रताड़ित करने के आरोप लगने लगे लखनऊ की सोशल एक्टिविस्ट व कांग्रेस नेता सदफ जफर को प्रोटेस्ट के बाद हुए उपद्रव का फेसबुक लाइव करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी बहन नाहिद वर्मा ने बताया कि जब वे सदफ से मिलने गईं तो उसने बताया कि जेल में उसे काफी पीटा गया. सदफ के बारे में पता करने पहुंचे एक्टिविस्ट दीपक कबीर को भी जेल में डाल दिया गया. वहीं, पूर्व आईपीएस एस.दारापुरी को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बीएचयू के तमाम एक्टिविस्ट को भी इसी तरह उपद्रव फैलाने के आरोप में जेल भेज दिया गया. लखनऊ में द हिंदू के पत्रकार ओमर राशिद को दो घंटे पुलिस थाने में बैठाए रखा गया.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक

हिंसक विरोध प्रदर्शन में यूपी में मरने वालों की संख्या 18 हो गई है. वहीं, उत्तर प्रदेश में घायल पुलिसकर्मियों का आंकड़ा 263 पहुंच चुका है. इसमें 57 पुलिसकर्मी प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से घायल हुए हैं. यूपी पुलिस के मुताबिक, 5400 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है. अलग-अलग जुर्म में 705 लोगों को जेल भेजा गया है. वहीं सोशल मीडिया माध्‍यमों पर आपत्तिजनक पोस्‍ट डालने के आरोप में 102 अन्‍य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है. अभी तक 14,101 सोशल मीडिया पोस्‍ट पर कार्रवाई हुई है. इनमें 5965 ट्वीट, 7995 फेसबुक और 141 यूट्यूब पोस्‍ट शामिल हैं.

इसके अलावा पुलिस की ओर से हर जिले में उपद्रवियों के पोस्टर लगाए जा रहे हैं, जो अभी पुलिस के गिरफ्त से बाहर हैं. इनकी जानकारी देने वाले को पुलिस की ओर से इनाम दिया जाएगा. वहीं, सरकारी प्राॅपर्टी को नुकसान पहुंचाने के मामले में आरोपियों के घर में वसूली के नोटिस भी पहुंचने शुरू हो गए हैं.

दोनों तरफ से आ रहे उपद्रव के वीडियो

सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो आ रहे है, जिसमें उपद्रव होता दिख रहा है. कई ऐसे वीडियो आए हैं जिसमें सीएए का प्रोटेस्ट करते वक्त युवक उपद्रव करना शुरू कर देते हैं और इधर-उधर तोड़फोड़ करते हैं. इनमें से कई चेहरे पर नकाब बांधे थे. वहीं कुछ वीडियो ऐसे भी आ रहे हैं जिसमें पुलिस गली में घुसकर तोड़फोड़ कर रही है.

कानपुर और मुजफ्फरनगर से ऐसे ही कई वीडियो सामने आए हैं लेकिन पुलिस इससे इंकार रही है. वहीं ऐसे युवकों के भी वीडियो आए जो खुलेआम तमंचा लेकर उपद्रव कर रहे थे.

लोगों ने उठाए सवाल

पश्चिम यूपी में सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने वाली अनु बजाज बताती हैं कि जब भी उपद्रव का माहौल होता है, तो वेस्ट यूपी सबसे सेंसिटिव माना जाता है, जो कुछ भी पिछले एक हफ्ते में हुआ वो लॉ एंड आर्डर का फेल होना माना जा सकता है. क्या सरकार और पुलिस प्रशासन को इसका अंदाजा नहीं था कि उपद्रव को कैसे कंट्रोल किया जाए. पश्चिम यूपी में सबसे अधिक लोग मारे गए. क्या कोई भी इस पर राजनीति होने से अब रोक पाएगा.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कविराज ने बताया वह 20 साल से लखनऊ में रह रहे हैं. लेकिन, लखनऊ में ऐसा भय का माहौल कभी नहीं देखा. यहां इस तरह का उपद्रव पहली बार हुआ. अगर प्रशासन पहले से सतर्क होता तो ऐसी स्थिति नहीं पैदा होती.

सरकार का तर्क, विपक्ष के सवाल

यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के अन्य जिलों में हिंसा भड़काने में पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ सामने आया है. पीएफआई सिम्मी का ही छोटा रूप है. पुलिस मामले की जांच में जुटी है. वहीं, पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि उपद्रव सरकार ने कराया है.

कांग्रेस के यूपी चीफ अजय लल्लू ने कहा कि कई बेगुनाहों को उपद्रव फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में प्रताड़ित किया जा रहा है. दिप्रिंट से बातचीत में यूपी सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने दावा किया कि जिन्होंने उपद्रव फैलाया उन्हें पकड़ा जा रहा है. किसी भी निर्दोष पर कार्रवाई नहीं हुई.

इंटरनेट बैन ने किया करोड़ों का नुकसान

लखनऊ समेत तमाम जिलों में इंटरनेट बंद होने से करोड़ों के व्यापार का नुकसान हो गया. टेलीकाॅम कंपनियों को तो चूना लगा ही ओला, ऊबर जैसे कैब सर्विस व स्वीगी, जोमैटो जैसे फूड डिलवरी सर्विसेज को नुकसान बेहद अधिक हुआ.

पेट्रोल पंप से लेकर होटल, रेस्त्रां में कार्ड पेयमेंट होना बंद हो गया. अपना दर्द बयान करते लखनऊ के कैब ड्राइवर हिमांशु कुमार कहते हैं कि छह दिन लखनऊ में मोबाइल इंटरनेट बंद होने से जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कौन करेगा? लखनऊ तो 19 दिसंबर के बाद से शांत था उसके बावजूद इंटरनेट बंद किया गया. ये तो ‘डिजिटल इमरजैंसी’ जैसा था. वहीं तमाम पत्रकारों ने भी बताया कि इंटरनेट बंद होने के कारण कवरेज करने में काफी दिक्कत हुई.


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यूपी के लिए सबक

इस एक हफ्ते ने साबित कर दिया जिस भयमुक्त नए उत्तर प्रदेश का सपना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिखाया था उससे यूपी अभी काफी दूर है. इस उपद्रव ने विपक्षी दलों को न सिर्फ लॉ आर्डर बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाने के मौके दे दिए हैं. बढ़ती बेरोजगारी, महिला सुरक्षा जैसे तमाम मुद्दों पर लगातार घिरने के बाद गवर्नेंस व लॉ आर्डर के मामले में भी घिरती नजर आ रही है.

वहीं, यूपी पुलिस भी सवालों के घेरे में है क्योंकि पुलिस लगातार दावा कर रही है कि उसने गोली का प्रयोग नहीं किया लेकिन, मारे गए 18 लोगों में 14 की मौत गोली लगने से हुई है, फायरिंग के तमाम वीडियो फुटेज भी आए हैं. पिछले एक हफ्ते ने ‘भयमुक्त’ यूपी की पोल खोल दी है. साथ ही उपद्रवियों द्वारा की गई हिंसा ने यहां की तहजीब पर सवाल उठा दिए हैं. हालांकि शुक्र इस बात का है कि ये हिंसा ‘हिंदू-मुस्लिम’ नहीं हुई बल्कि ये ‘पुलिस बनाम प्रदर्शनकारी’ बनकर रह गया. एक रिपोर्टर की नजर से भी पहले यूपी को कभी ऐसा नहीं देखा.

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