नई दिल्ली: ऐसे समय में जब नरेंद्र मोदी सरकार भांग और अन्य मादक और नशीले पदार्थों के छोटी मात्रा में व्यक्तिगत सेवन को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की योजना बना रही है, आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि देश की विभिन्न जेल में बंद विचाराधीन कैदियों में से 10 प्रतिशत से अधिक नारकोटिक ड्रग्स साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट, 1985 के तहत ही आरोपी है.
भारत में इस समय 2,58,883 विचाराधीन कैदी जेलों में बंद हैं, जिनमें से 27,072 अकेले एनडीपीएस एक्ट के तहत बंद हैं.
विशेष और स्थानीय कानूनों के तहत जेल में बंद 71,513 विचाराधीन कैदियों में से 41,985 या 58.7 प्रतिशत शराब और नशीले पदार्थों से जुड़े कानूनों के तहत आरोपी है. इसमें शामिल कैदियों में एनडीपीएस एक्ट, 1985, एक्साइज एक्ट और शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए लोग शामिल हैं.
हत्या (65,184), बलात्कार (34,368) और चोरी (30,606) के बाद चौथे नंबर पर एनडीपीएस एक्ट के तहत आरोपों में जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या ही सबसे ज्यादा है.
प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट में 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक का डाटा शामिल है, जो कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जेल विभागों की तरफ से राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को भेजा गया था. 2020 की रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है.
संदर्भ के तौर पर, विशेष और स्थानीय कानूनों की श्रेणी काफी व्यापक है, जिसमें महिलाओं के खिलाफ अपराधों को नियंत्रित करने वाले दहेज निषेध अधिनियम और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम जैसे कानून; अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों को नियंत्रित करने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम; और हथियार और विस्फोटकों से जुड़े कानून, जुआ कानून, विदेशी और पासपोर्ट से संबंधित कानून और अन्य तमाम कानून शामिल हैं.
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11 साल में 140% की बढ़ोतरी
अन्य बातों के अलावा, एनडीपीएस एक्ट के तहत जमानत के प्रावधान को लेकर पिछले कुछ वर्षों में खासी आलोचना की जाती रही है. इस एक्ट की धारा 37 के लिए कोर्ट को यह मानने के लिए ‘उचित आधार’ चाहिए होता है कि आरोपी दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रहने के दौरान फिर से अपराध करने की संभावना नहीं है. जबकि बहुप्रचारित गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), 1967 तक में ऐसी कोई पूर्व शर्त नहीं है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी में स्वीकारा भी था, जब उसने कहा था कि यूएपीए के तहत जमानत प्रावधान एनडीपीएस एक्ट की ‘तुलना में कम सख्त’ हैं.
2009 से 2019 तक जेल के आंकड़ों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि एनडीपीएस एक्ट के तहत विचाराधीन कैदियों की संख्या में 140 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2009 में 11,279 की तुलना में बढ़कर 2019 में 27,072 हो गई. दोषियों की संख्या में 40 फीसदी वृद्धि हुई है जो 2009 में 6,156 की तुलना में बढ़कर 2019 में 8,739 हो गई.
इस पर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है कि इन विचाराधीन कैदियों को व्यक्तिगत स्तर नशीली दवाओं के इस्तेमाल के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है या तस्करी के आरोप का, लेकिन एनडीपीएस एक्ट की धारा 27—जिसके तहत नशीली दवाओं के उपयोग को अपराध की श्रेणी में रखा गया है—लगाए जाने से संबंधित एक अध्ययन बताता है कि 2020 मुंबई में सभी गिरफ्तारियों में से 93.3 प्रतिशत मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित थीं.
मृत्युदंड, पुनर्वास
व्यापक तौर पर माना जाता है कि भारत सरकार ने 1985 में अंतरराष्ट्रीय दबाव—खासकर 1970 के दशक में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की तरफ से नशीले पदार्थों के खिलाफ शुरू किए गए विशेष अभियान ‘वार ऑन ड्रग्स’ के मद्देनजर—में एनडीपीएस एक्ट लागू किया था.
तबसे अब कानून में तीन बार संशोधन किया जा चुका है—1989, 2001 और 2014 में. 1989 के संशोधन में अन्य बातों के अलावा मादक द्रव्यों की तस्करी के लिए दूसरी बार दोषी होने पर मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा गया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2011 में इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दे दिया. इसके बाद 2014 में किसी जज के विवेकाधिकार पर मौत की सजा के प्रावधान के लिए कानून में संशोधन किया गया.
कानून मादक पदार्थों के तस्करों और उपयोगकर्ताओं के बीच अंतर करता है, जिसमें इस्तेमाल करने वालों को पुनर्वास के लिए भेजने का प्रावधान है. उदाहरण के तौर पर इस कानून की धारा 39 अदालतों को नशे के लती किसी व्यक्ति को इलाज के लिए रिहा करने की अनुमति देती है, यदि उसे ड्रग्स रखने या उपभोग करने का दोषी पाया जाता है.
हालांकि, अदालतों की तरफ से इन प्रावधानों का सही इस्तेमाल न करने की बात सामने आती रही है. उदाहरण के तौर पर एक अध्ययन से पता चलता है कि 2013 और 2015 के बीच पंजाब में ऐसे मामलों में कोर्ट के समक्ष लाए गए किसी भी व्यक्ति को अदालतों की तरफ से नशामुक्ति और पुनर्वास के लिए नहीं भेजा गया.
इसके अलावा, कानून की धारा 64ए नशे की लती लोगों को कुछ राहत भी देती है, यदि वे स्वेच्छा से सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पताल या संस्थान से नशामुक्ति के लिए इलाज कराना चाहते हों. इसके लिए नशे के आदी व्यक्ति को अपना पूरा इलाज कराना होगा.
बॉलीवुड अभिनेता फरदीन खान को 2001 में कम मात्रा में कोकीन खरीदने के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किए जाने के बाद ऐसा ही किया गया था. हालांकि, ये राहत केवल 2012 में मिली थी जब उन्होंने मुंबई के परेल में केईएम अस्पताल में तीन सप्ताह के नशामुक्ति कार्यक्रम में हिस्सा लिया था.
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