नई दिल्ली: जनवरी में जब केंद्र के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा तैयार किए गए लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक में उत्तर प्रदेश को अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ “अचीवर” घोषित किया गया, तो IAS अधिकारी अभिषेक प्रकाश को इस इनाम को लेने के लिए भेजा गया था.
प्रकाश, जो उस समय इन्वेस्ट यूपी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में स्टार परफॉर्मर थे. लगभग तीन महीने बाद, प्रकाश विवाद में उलझे हैं, उन्हें इन्वेस्ट यूपी के तहत सौर परियोजना के कॉन्ट्रैक्ट के लिए एक फर्म से कमीशन मांगने के आरोप में निलंबित किया गया है.
2006 बैच के IAS अधिकारी प्रकाश को उत्तर प्रदेश सरकार ने 20 मार्च को निलंबित किया था, निकांत जैन नामक एक दलाल की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, जो कथित तौर पर कॉन्ट्रैक्ट मांगने वाली फर्म के प्रमोटरों से “कमीशन” लेने के लिए उनका आदमी था.
पिछले हफ्ते, प्रवर्तन निदेशालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस से केस की फाइल मांगी थीं. हालांकि, निलंबन के सटीक आधार के बारे में राज्य सरकार से सुनने का इंतज़ार एजेंसी को भी है. औपचारिक मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू करने का फैसला तभी लिया जाएगा जब सरकार प्रकाश के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों और कथित अपराध की सीमा के बारे में स्पष्ट कर देगी.
यह मामला एक सौर और नवीकरणीय ऊर्जा फर्म के एक कर्मचारी द्वारा दर्ज की गई शिकायत से निकला है, जिसे कथित तौर पर प्रकाश ने जैन से संपर्क करने के लिए कहा था, जिसने बाद में पांच प्रतिशत “कमीशन” मांगी. उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से शिकायत के बाद, सरकार हरकत में आई. एक एफआईआर दर्ज करके जैन को गिरफ्तार किया गया और फिर मुख्यमंत्री ने प्रकाश को निलंबित कर दिया.
एजेंसी के सूत्रों ने दिप्रिंट को पुष्टि की कि निलंबन आदेश की मूल प्रति आधिकारिक तौर पर उन्हें उस मामले से जोड़ने के लिए मांगी गई है जिसमें जैन को गिरफ्तार किया गया था.
ईडी के एक अधिकारी ने कहा, “चूंकि, प्रकाश को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, इसलिए रिश्वतखोरी के आरोपों की सीमा और इस मामले में रिश्वत दिए जाने के बारे में अस्पष्टता है. जब सरकार स्पष्ट करेगी कि क्या उसे इन्वेस्ट यूपी के सीईओ के रूप में उनके द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वत के संबंध मिले हैं, तभी ईसीआईआर (प्रवर्तन शिकायत सूचना रिपोर्ट) दर्ज करने पर फैसला लिया जाएगा.”
इस बीच, राज्य के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग ने प्रकाश के खिलाफ आरोप पत्र जारी कर आरोपों पर उनका जवाब मांगा है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार उनके जवाब पर विचार करने के बाद विभागीय जांच शुरू करने पर फैसला लिया जाएगा.
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मायावती और अखिलेश के संकटमोचक, योगी सरकार में महत्वपूर्ण पद
1982 में जन्मे प्रकाश बिहार से हैं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से ग्रेजुएट हैं. उन्होंने 2005 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की, जिसमें उन्हें ऑल इंडिया में रैंक 8 मिली. उन्हें नागालैंड कैडर आवंटित किया गया, जहं उन्होंने तुएनसांग जिले में उप-विभागीय अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया.
मई 2011 तक वे राज्य में कार्यरत रहे, जब उनका उत्तर प्रदेश कैडर की एक आईएएस अधिकारी से विवाह हो गया, जिसके बाद उनका तबादला कर दिया गया.
मायावती के मुख्यमंत्री कार्यकाल के अंतिम वर्ष में जब वे वित्त विभाग में कार्यरत थे, तब लखीमपुर खीरी में लेखपालों (राजस्व विभाग के कर्मचारी) और वकीलों के एक समूह के बीच हिंसक झड़प हुई थी. झड़प में लेखपालों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी में दो वकील मारे गए थे, जिसके बाद सितंबर 2011 में वकीलों ने उत्पात मचाया था. कुछ दिनों बाद, मायावती ने घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया, लेकिन सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि इस घटना को टाला जा सकता था.
बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो ने तत्काल लखीमपुर खीरी के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट और उप-विभागीय मजिस्ट्रेट का तबादला कर दिया और प्रकाश को नियुक्त किया. सरकार ने कथित तौर पर यह सार्वजनिक किया था कि सरकार द्वारा निष्पक्ष न्यायिक जांच सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा डीएम को हटाकर प्रकाश को नियुक्त किया गया है.
वे तब तक जिले में बने रहे जब तक कि पहली बार मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव की अगली सरकार को बरेली में इसी तरह की कानून-व्यवस्था की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा. सांप्रदायिक हिंसा ने जिले को हिलाकर रख दिया था, जिसमें चार लोगों की जान चली गई थी, जिसके बाद यादव ने उस समय के जिला मजिस्ट्रेट और जिला पुलिस प्रमुख दोनों को हटा दिया था.
इसके बाद जुलाई 2012 में समाजवादी पार्टी सरकार ने प्रकाश को बरेली का जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अधीन प्रकाश की पहली पोस्टिंग नवंबर 2017 में हुई, जब उन्हें गृह विभाग में विशेष सचिव का पद सौंपा गया.
फिर, उन्हें हमीरपुर का जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया. एक साल से ज़्यादा समय तक वहां रहने के बाद, सरकार ने उन्हें नवंबर 2019 में लखनऊ के ज़िला मजिस्ट्रेट के अहम पद पर बिठाया.
उस दौर का एक ज़मीन आवंटन का मुद्दा मौजूदा विवाद के बीच प्रकाश को फिर से परेशान कर रहा है. अगस्त 2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने अगली पीढ़ी की ब्रह्मोस मिसाइलों के प्रोडक्शन के लिए अत्याधुनिक सुविधा स्थापित करने के लिए लखनऊ के भटगांव गांव में लगभग 200 एकड़ ज़मीन आवंटित की थी. हालांकि, बाद में सरकार को ज़मीन मालिकों को दिए जाने वाले मुआवज़े में गड़बड़ियां मिलीं, जिसके बाद सरकार ने एक समिति गठित की.
समिति ने पिछले साल जुलाई में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें ज़मीन के अधिग्रहण और मुआवज़े के भुगतान में गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया, जिसमें लखनऊ के ज़िला मजिस्ट्रेट के तौर पर अधिग्रहण समिति के अध्यक्ष रहे प्रकाश को दोषी ठहराया गया.
जून 2022 में, प्रकाश को योगी सरकार में बुनियादी ढांचा और उद्योग विकास विभाग का प्रभारी सचिव और राज्य में व्यवसाय विकास के लिए सरकार के समर्पित विभाग इन्वेस्ट यूपी का सीईओ नियुक्त किया गया.
मौजूदा विवाद
20 मार्च को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में राजस्थान स्थित फर्म एसएईएल सोलर पी6 प्राइवेट लिमिटेड के एक कर्मचारी ने राज्य के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखकर शिकायत की कि “इन्वेस्ट यूपी के एक वरिष्ठ अधिकारी” ने उन्हें कॉन्ट्रैक्ट के लिए जैन नाम के एक निजी व्यक्ति से संपर्क करने के लिए कहा था.
उन्होंने शिकायत में लिखा था, “मामले पर विचार करने से पहले, इन्वेस्ट यूपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे एक निजी व्यक्ति, मिस्टर जैन का नंबर दिया और कहा कि मैं उनसे बात करूं. अगर वे ऐसा करते हैं, तो अधिकार प्राप्त समिति और कैबिनेट तुरंत आपके मामले को मंजूरी दे देगी. यह उनके अनुरोध के अनुसार किया जाएगा.”
जैन ने कथित तौर पर कॉन्ट्रैक्ट की राशि से पांच प्रतिशत कमीशन की मांग की थी, जिसे उनकी नियोक्ता फर्म मांग रही थी. प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि फर्म के शीर्ष अधिकारी पहले ही मुख्यमंत्री से मिल चुके थे.
कर्मचारी ने आगे आरोप लगाया, “बाद में मुझे पता चला कि मेरे मामले में संस्तुति के बाद मामला स्थगित कर दिया गया है. मिस्टर जैन ने मुझसे कहा कि हम और हमारे बॉस चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, हमें उनके पास आना ही पड़ेगा, तभी काम होगा…मेरे बॉस इस प्रोजेक्ट को दूसरे राज्य में भी ले जा सकते हैं. ऐसी स्थिति में मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें और हमारे प्रोजेक्ट को मंजूरी दें.”
राज्य पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 308 (5) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करने के बाद उसी दिन लखनऊ स्थित एजेंट जैन को गिरफ्तार कर लिया.
राज्य सरकार ने उसी दिन प्रकाश को निलंबित कर दिया, यह मानते हुए कि प्रकाश ने सोलर फर्म के संबंध में “दुर्भावनापूर्ण इरादे, निहित स्वार्थ और अनुचित वित्तीय लाभ” के साथ काम किया था, जिससे राज्य की छवि खराब होती और अपने कार्यालय ज्ञापन में संभावित फर्मों की निवेश भावना को नुकसान पहुंचता.
हालांकि, नीति नियोजन से जुड़े उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार इन्वेस्ट यूपी के सीईओ के रूप में प्रकाश के कार्यकाल के दौरान स्वीकृत सभी निवेश प्रस्तावों की समीक्षा करने पर विचार नहीं कर रही है. “सभी निवेश प्रस्तावों और वास्तविक निवेशों की संदेह के साथ समीक्षा करने से इन्वेस्ट यूपी की स्थापना का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा.”
इन्वेस्ट यूपी को लेकर यह दूसरा बड़ा विवाद था, इससे पहले व्यूनाउ नामक एक फर्म को लेकर विवाद हुआ था, जिसने पूरे राज्य में डेटा सेंटर स्थापित करने के लिए 13,500 करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग जांच के अनुसार, फर्म ने कथित तौर पर निवेशकों से 3,500 करोड़ रुपये ठगे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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