भोपाल: मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार एक बार फिर नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ और संरक्षित करने के लिए नीति बनाने की योजना बना रही है. यह कार्यक्रम स्वच्छ गंगा मिशन की तर्ज पर होगा.
नर्मदा नदी संरक्षण के लिए यह कोई पहली योजना नहीं है. 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा सेवा मिशन योजना शुरू की थी, जिसे शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने तैयार किया था. अमिताभ बच्चन और दलाई लामा सहित प्रमुख हस्तियों ने उस मिशन का समर्थन किया था.
नए कार्यक्रम के तहत, 11 राज्य विभागों के मंत्रियों वाली एक नवगठित कैबिनेट समिति विचार-विमर्श करेगी और यह सुनिश्चित करने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय प्रस्तावित करेगी कि नर्मदा नदी गंगा की तरह संकट की स्थिति में न पहुंचे.
विचाराधीन उपायों में से एक अमरकंटक में एक विकास प्राधिकरण बनाना है, जो अनियमित विकास को नियंत्रित करेगा, जो अनूपपुर के जंगलों को प्रभावित कर सकता है, जहां से नदी निकलती है.
एक और तरीका है नदी के किनारों पर खनन और भारी मशीनरी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना, जल प्रदूषण के स्तर की लगातार जांच करना, ड्रोन की मदद से नर्मदा के जलग्रहण क्षेत्र का सर्वेक्षण करना, नदी के किनारे कृषि भूमि पर जैविक खेती को बढ़ावा देना, किनारे की निजी भूमि पर फलदार पेड़ों की संख्या बढ़ाना, अतिक्रमण हटाना और अमरकंटक में स्वदेशी समुदायों को सशक्त बनाना, जो जंगल और आसपास के क्षेत्र को संरक्षित करने की अपनी तकनीकों के लिए जाने जाते हैं.
नर्मदा सेवा मिशन योजना से पहले, पूर्व शहरी विकास मंत्री बाबूलाल गौर ने 2012 में नदी के किनारे नए विनिर्माण उद्योगों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नर्मदा प्रदूषण गंगा के मामले में खतरनाक स्तर तक न पहुंच जाए.
नर्मदा गुजरात में खंभात की खाड़ी में गिरने से पहले मध्य प्रदेश से होकर 1,312 किलोमीटर की यात्रा करती है. इसे भारत का प्राकृतिक विभाजन कहा जाता है, जो भौगोलिक रूप से उत्तरी भारत को दक्षिणी भारत से अलग करता है.
नर्मदा गुजरात और मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है, जहां नदी पांच करोड़ से अधिक लोगों के लिए पीने के पानी का स्रोत है. इसके अलावा, नदी के किनारे जलविद्युत संयंत्र बिजली की आपूर्ति करते हैं.
क्या हैं उम्मीदें
प्रोजेक्ट से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हिमालय की नदियों के विपरीत, नर्मदा के पानी का स्रोत अमरकंटक के जंगल हैं, न कि कोई ग्लेशियर. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम नदी के संरक्षण के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाएं, अनूपपुर में इसके उद्गम स्थल से लेकर राज्य के विभिन्न जिलों और शहरों में इसके पूरे मार्ग तक.”
इस योजना में उन शहरों और जिलों की पहचान करना शामिल है, जिनसे नर्मदा गुजरती है — जैसे नर्मदापुरम — और वह शहर जो नदी से लगभग पांच से दस किलोमीटर दूर हैं, उनकी बढ़ती आबादी को कंट्रोल करना और यह सुनिश्चित करना कि नदी में कोई भी सीधा निर्वहन न हो, वहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं.
इसके अलावा, राजस्व विभाग राष्ट्रीय हरित अधिकरण और हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों में निर्धारित बाढ़ के स्तर के अनुसार बस्तियों वाले नदी तट क्षेत्र का सीमांकन करेगा.
प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए संबंधित जिला कलेक्टरों से नदी के किनारे होने वाले आयोजनों, मेलों और धार्मिक समारोहों के पैमाने और आवृत्ति के साथ-साथ इन आयोजनों में एकत्रित होने वाले लोगों की संख्या की जानकारी एकत्र की जाएगी.
शहरी विकास एवं आवास, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन, किसान कल्याण एवं कृषि विकास, नर्मदा घाटी विकास, राजस्व, पर्यटन एवं संस्कृति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, खनन, जल संसाधन और सांख्यिकी विभागों समेत ग्यारह सरकारी विभागों ने मसौदा नीति तैयार करने के लिए अब तक दो बैठकें की हैं.
उक्त अधिकारी के अनुसार, इस योजना में विभिन्न संगठनों और वैज्ञानिक समुदाय के साथ मुख्यमंत्री का परामर्श भी शामिल है. संरक्षण कार्य के लिए नागरिक और स्वयंसेवी समूहों को शामिल किया जाएगा.
परियोजना से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने कहा, “इस नीति को एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह विकसित किया जा रहा है और एक बार जब यह नर्मदा के लिए पूरी हो जाएगी और लागू हो जाएगी, तो इसे राज्य की अन्य नदियों के संरक्षण के लिए दोहराया जाएगा.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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