उखरुल: मणिपुर में भाजपा के साथ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का गठबंधन ‘बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण’ रहा है और अगले दो हफ्ते में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों के बाद वे फिर गठबंधन करेंगे या नहीं, यह जीत के आंकड़ों पर निर्भर करेगा. यह बात पार्टी के अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने सोमवार को दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कही.
भाजपा और एनपीपी मणिपुर और मेघालय की सरकारों में गठबंधन सहयोगी रहे हैं. लेकिन मणिपुर में चुनावों से पूर्व दोनों एक-दूसरे पर लगातार हमले बोल रहे हैं और उनका दावा है कि राज्य में 28 फरवरी और 5 मार्च को दो चरणों में होने जा रहे मतदान के बाद वे अपने बलबूते पर सरकार बनाने में सक्षम होंगे. भाजपा ने जहां सभी 60 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, वहीं एनपीपी 38 सीटों पर चुनाव पर लड़ रही है.
एनपीपी के चुनाव अभियान के सिलसिले में सोमवार को मणिपुर के पहाड़ी जिले उखरूल में मौजूद रहे संगमा ने जहां राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) निरस्त करने की जरूरत बताई, वहीं चुनाव पूर्व हिंसा की घटनाओं का भी जिक्र किया.
उन्होंने कहा, ‘जब हम गठबंधन में हैं तो जरूरी नहीं कि सब कुछ ठीक ही हो. चुनौतियां तो होंगी—यहां तक कि वैवाहिक रिश्तों में भी चुनौतियां होती हैं. इसलिए जाहिर तौर पर गठबंधन की राजनीति में भी चुनौतियां होंगी. हमने पिछले पांच वर्षों में देखा और महसूस किया कि चीजें हमारे लिए कुछ ज्यादा ही चुनौतीपूर्ण थीं.’
जिला मुख्यालय में एनपीपी की एक चुनावी सभा के दौरान मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर सीधा निशाना साधते हुए संगमा ने आरोप लगाया कि मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ‘वन-मैन शो’ थी. उन्होंने कहा, ‘उपमुख्यमंत्री (एनपीपी नेता युमनाम जॉयकुमार सिंह) एक साल बिना किसी विभाग के बने रहे. गठबंधन सरकार विश्वास, परस्पर विचार-विमर्श और टीम वर्क से चलती है. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ.’
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‘अफस्पा अनावश्यक’
भाजपा और कांग्रेस के विपरीत एनपीपी और राज्य में भाजपा के गठबंधन सहयोगियों में एक नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने मणिपुर से अपना चुनाव अभियान अफस्पा हटाने पर केंद्रित कर रखा है.
संगमा ने कहा, ‘यह राजनीति की बात नहीं है. बल्कि एक वास्तविक मुद्दा है और एक राजनीतिक दल और जनता के नेता के नाते हम महसूस करते हैं कि मौजूदा स्थिति में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम बिल्कुल अनावश्यक है…हाल की घटनाएं इसका एक स्पष्ट उदाहरण भी हैं.’ वह नगालैंड के ओटिंग गांव की दिसंबर 2021 की घटना का जिक्र कर रहे थे, जहां सेना ने कथित आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान गलती से 13 नागरिकों को मार गिराया था.
उन्होंने कहा, ‘सरकार को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अन्य तरीके तलाशने की जरूरत है और अफस्पा जैसे कठोर कानूनों को खत्म किया जाना चाहिए.’
यह एनपीपी अध्यक्ष की तंगखुल नागा बहुल उखरूल जिले की पहली राजनीतिक यात्रा थी, जिसे नगा आंदोलन में हिस्सा लेने वाले कई नेता देने के लिए जाना जाता है.
संगमा ने भाजपा के ‘गो टू हिल्स’ अभियान पर भी निशाना साधा. पिछले साल बीरेन सिंह सरकार ने आउटरीच इनीशिएटिव फिर शुरू किया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मणिपुर के दूरदराज के इलाकों तक के लोगों को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जा सके.
एनपीपी प्रमुख ने कहा, ‘(गो टू हिल्स) सिर्फ एक नारा था. जब आप जमीनी स्तर की बात करते हैं तो बुनियादी ढांचे को जो महत्व दिया जाना है, वो नहीं दिया गया.’
‘चुनाव पूर्व हिंसा का निशाना बन रही एनपीपी’
इस माह के शुरू में एनपीपी ने आरोप लगाया था कि कई आतंकी संगठन खुलेआम भाजपा के लिए प्रचार कर रहे हैं और यहां तक कि पार्टी ने मणिपुर चुनाव कार्यालय में इसकी शिकायत भी दर्ज कराई है.
यही नहीं, पिछले शनिवार को चुनाव पूर्व हिंसा की घटना को लेकर भाजपा और एनपीपी आमने-सामने आ गए थे. रिपोर्टों के मुताबिक, इंफाल पूर्वी जिले में चुनाव अभियान के दौरान एंड्रो निर्वाचन क्षेत्र से एनपीपी उम्मीदवार के पिता को अज्ञात लोगों ने गोली मार दी थी.
संगमा ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया और कहा कि मणिपुर में हिंसा की घटनाएं होने लगी है, अन्यथा अशांति भरे पुराने दिनों के बाद से अब यह अमूमन एक ‘शांतिपूर्ण राज्य’ है. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि विशेष रूप से एनपीपी को निशाना बनाया जा रहा है, उन्होंने कहा, ‘बिलकुल ऐसा लगता है…जो चिंताजनक है…लेकिन इसमें एक राजनीतिक संदेश भी अंतर्निहित है.’
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