नई दिल्ली: 12वीं क्लास की एक छात्रा की ख़ुदकुशी के मामले में, एक मिशनरी स्कूल पर जबरन धर्मांतरण के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करने के लिए पुलिस की खिंचाई करते हुए, मद्रास हाईकोर्ट की मदुराई बेंच ने सोमवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को, मामले की जांच अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया है.
32 पन्नों के अपने आदेश में, न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने बाइबिल की दो लाइनों का हवाला दिया, और दो फिल्मों का भी उल्लेख करते हुए कहा, कि ‘आरोप स्वाभाविक रूप से असंभव नहीं हैं, कि धर्मांतरण की कोशिश की गई’. उन्होंने ये भी कहा कि आरोपों को सिरे से ख़ारिज करने की नहीं, बल्कि उनकी जांच किए जाने की ज़रूरत है.
बेंच ने लड़की के पिता के इस तर्क को स्वीकार कर लिया, कि सच्चाई का पता लगाने की बजाय, लड़की के पेरेंट्स ख़ासकर सौतेली मां को बदनाम करने के लिए, पुलिस एक अलग ही कहानी को आगे बढ़ा रही थी. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ‘जांच को पटरी से उतारने’ की कोशिश कर रही थी. कोर्ट ने कहा कि पुलिस की बाद की कार्रवाई से, ये धारणा बन रही थी कि जांच ‘सही दिशा में आगे नहीं बढ़ रही है’.
कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के स्कूली शिक्षा मंत्री, और दो अन्य उच्च-पदस्थ मंत्रियों के सार्वजनिक बयानों ने, जिनमें स्कूल प्रबंधन को दोषमुक्त क़रार दे दिया गया था, इस आशंका को और बल दिया. उसने आगे कहा कि पुलिस जांच की नेचर को लेकर पिता के संदेह उचित थे.
कोर्ट का आदेश पिता की याचिका पर आया, जिसने 19 जनवरी को अपनी बेटी की मौत के दो दिन बाद, हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था कि उसकी ख़ुदकुशी की निष्पक्ष जांच कराई जाए. सेक्रेड हार्ट हायर सेकेण्डरी स्कूल माइकलपट्टी की छात्रा ने, 9 जनवरी को अपने स्कूल हॉस्टल में एक पेस्टिसाइड खा लिया था.
पुलिस, मंत्रियों ने धर्मांतरण एंगल से इनकार किया
पेस्टिसाइड खाने के बाद पिता लड़की को घर ले गए थे, और तबीयत बिगड़ने पर 15 जनवरी को उसे तांजावुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती करा दिया. एक दिन बाद लड़की का बयान- जिसमें उसने हॉस्टल वॉर्डन पर उसे परेशान करने का आरोप लगाया था- एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में दर्ज कराया गया. वॉर्डन सिस्टर सघायामैरी को गिरफ्तार कर लिया गया है.
19 जनवरी को लड़की की मौत हो गई, और अगले दिन उसका वीडियो वायरल हो गया. वीडियो में उसे आरोप लगाते हुए देखा गया है, कि उसके स्कूल की कॉरेस्पॉण्डेंट रैचेल मैरी ने, उसे ईसाई बनाने के बारे में उसके माता-पिता से बात की थी.
चूंकि वीडियो से लड़की की पहचान खुल गई, इसलिए पुलिस ने वीडियो बनाने वाले के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.
लड़की के पिता ने 21 जनवरी को हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, और मामले की निष्पक्ष जांच के लिए हस्तक्षेप की मांग की. लेकिन इससे पहले कि कोर्ट इस मामले में विस्तृत सुनवाई कर पाती, प्रदेश के तीन मंत्रियों ने सार्वजनिक बयान जारी कर दिए, जो धर्मांतरण के दावों को ख़ारिज करते दिखाई पड़ते थे.
तांजावुर पुलिस अधीक्षक (एसपी) रवाली प्रिया गांधापुनेनी ने 21 जनवरी को एक प्रेस वार्त्ता की, जिसमें उन्होंने किसी भी धर्मांतरण एंगल को ख़ारिज कर दिया.
24 जनवरी को स्कूली शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोयामोझी वादा किया, कि लड़की की ख़ुदकुशी की ‘निष्पक्ष जांच’ की जाएगी, और ज़िम्मेवार लोगों के खिलाफ ‘निष्पक्ष कार्रवाई’ की जाएगी, लेकिन उन्होंने कहा कि जबरन धर्मांतरण के आरोप दूर की कौड़ी नज़र आते हैं. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर मामले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया, जिसने इस मामले में कई बार विरोध प्रदर्शन किए हैं.
इन घटनाओं के बाद लड़की के पिता ने, अपनी बेटी की मौत की सीबीआई जांच की मांग उठा दी. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने एक अलग कहानी गढ़ने के लिए, अपने हिसाब से जानकारी लीक की थी.
सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया और दावा किया कि वीडियो, विवाद पैदा करने के लिए की गई एक शरारती कार्रवाई थी. उन्होंने आगे कहा कि पिता कुछ सांप्रदायिक संगठनों के असर में थे, और कोर्ट के लिए जांच के स्तर पर हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा.
स्कूल ने धर्मांतरण के आरोपों का ‘ज़ोरदार’ खंडन किया, और दावा किया कि आरोप उसकी प्रतिष्ठा पर कीचड़ उछालने की नीयत से लगाए गए थे. उसके वकील ने ये कहते हुए इसका दोष लड़की के पिता और सौतेली मां पर मढ़ दिया, कि वो कथित रूप से लड़की के साथ क्रूरता से पेश आते थे.
जहां तक वीडियो का सवाल है, स्कूल ने दावा किया कि उसे एक ‘नफरत फैलाने वाले’ ने रिकॉर्ड किया था, जिसपर अतीत में सांप्रदायिक गड़बड़ी भड़काने के लिए अपराधिक मुक़दमे चल रहे हैं.
यह भी पढ़ें : ‘फूट डालने और गुमराह करने’ की कोशिश- क्यों कोर्ट ने शरजील के खिलाफ देशद्रोह और UAPA के तहत आरोप तय किए
कोर्ट आदेश
अपने आदेश में कोर्ट ने ‘ख़ामोशी के गुण’ भूलने के लिए पुलिस की तीखी आलोचना की, और विस्तृत जांच से पहले निष्कर्ष निकालने पर सवाल खड़े किए.
जज ने एसपी तांजावुर पर भी प्रेस कॉनफ्रेंस करने के लिए नाराज़गी जताई, जिसमें उन्होंने ज़ोर देकर कहा, कि इसमें धर्मांतरण का कोई एंगल नहीं था.
कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे बयान की कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि तब तक निजी वीडियो पहले ही चलन में आ चुका था, और बच्ची के माता-पिता शिकायत दे चुके थे, कि बच्ची का धर्म बदलकर उसे ईसाई बनाने की कोशिश की गई थी’.
कोर्ट ने कहा कि अपने बयान में एसपी ने याचिकाकर्त्ता की शिकायत को ख़ारिज कर दिया था, जिसका बच्ची की वीडियो समर्थन करती है. जज के शब्दों में धर्मांतरण के आरोप लगाए जाने पर, एसपी की प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे उन्हें ‘बिजली का नंगा तार छू गया हो’.
कोर्ट ने पुलिस को इसके लिए भी डांट लगाई, कि वीडियो के वायरल होने के बाद, उन्होंने ऐसी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की, जो कथित अपराध के अनुरूप नहीं थीं. इन धाराओं का संबंध दंगों, किसी को अपमानित करने, और ऐसी हरकत को अंजाम देने से था, जिससे किसी समुदाय के भड़कने की संभावना हो.
जज के अनुसार ये धाराएं इसलिए शामिल की गईं, क्योंकि पुलिस धर्मांतरण एंगल से जुड़ी किसी भी चर्चा को ख़ामोश करना चाहती थी.
कोर्ट ने कहा, ‘जिस आदमी ने वीडियो शूट की उसने कोई अपराध नहीं किया. बाद में बाल पीड़िता की पहचान छिपाए बिना उसे सोशल मीडिया पर साझा करना किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015, की धारा 74 के तहत अपराध बनता है. लेकिन इस मामले में, शूटिंग याचिकाकर्त्ता के पिता के कहने पर की गई, जो बच्ची के पिता हैं. वीडियो की प्रमाणिकता को अब स्वीकार कर लिया गया है’.
कोर्ट ने आगे कहा कि एसपी को मालूम था कि वीडियो सच था. उसे एडिट करके कुछ हिस्से निकालने से, वीडियो की सच्चाई में कोई कमी नहीं आती.
कोर्ट ने कहा, ‘फिर भी, उन्होंने (एसपी) तक़रीबन उस व्यक्ति को धमकाया जिसने वीडियो शूट किया था. इसकी बजाय उन्हें जांचकर्त्ताओं को धार्मिक एंगल को भी ध्यान में रखने के लिए प्रेरित करना चाहिए था’.
धर्मांतरण के आरोपों के बारे में कोर्ट ने कहा, कि ये सच या झूठ कुछ भी हो सकते हैं. आदेश में कहा गया है कि ये स्कूल एक सभा द्वारा चलाया जाता है. उसने आगे चलकर बाइबिल से दो पंक्तियों का हवाला दिया है.
‘इसलिए जाओ और सभी देशों के अनुयाइयों को, फादर के नाम पर और बेटे के नाम पर, और होली स्पिरिट के नाम पर बेप्टाइज़ करो, और उन्हें उस सब का पालन करना सिखाओ, जिसका मैंने तुम्हें आदेश दिया है,’ और, ‘दुनिया में जाओ और हर प्राणी को प्रवचन दो. जिसे भी विश्वास है और जो बेप्टाइज़ होता है वो बच जाएगा, लेकिन जिसे विश्वास नहीं है वो निन्दित होगा’.
इसके अलावा, धर्मांतरण कैसे किया जाता है ये समझाने के लिए जज ने, 2020 की नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी-अभिनीत सीरियस मेन के एक डायलॉग का भी हवाला दिया. आदेश में 1985 की एक तमिल मूवी कल्याणा अगथीगल की कहानी भी बताई गई है, जिसमें एक हिंदू लड़की ईसाई लड़के से शादी करने से मना कर देती है, जब वो उसे धर्म बदलने के लिए कहता है.
‘लोकप्रिय कल्चर’ के उल्लेख को न्यायोचित ठहराते हुए जज ने कहा, ‘इसमें कोई विवाद ही नहीं है कि कला जीवन का प्रतिबिंब होती है. उन्होंने आगे कहा, ‘फिल्में, ख़ासकर तमिल फिल्में मेलोड्रामा और अतिशयोक्ति के लिए बदनाम होती हैं, लेकिन उनमें सच्चाई की कुछ गिरी ज़रूर होती है’.
जज ने इसपर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या माइकलपट्टी, जहां स्कूल स्थित है, वो उस जगह का मूल नाम है, और उन्होंने कहा: ‘वी श्रीराम की चेन्नई (2021 की पुस्तक चेन्नई: अ बायोग्राफी) में एक दिलचस्प चर्चा है, कि चेन्नई में बहुत सी जगहों के नाम कैसे पड़े. माइकलपट्टी के लिए भी कोई यही काम कर सकता है’.
इसलिए वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे, कि ‘इस आरोप में कुछ भी असंभव नहीं है कि धर्मांतरण का प्रयास किया गया था’.
अपनी अंतिम लाइनों में जज ने स्कूल की ओर से पेश होने वाले वकीलों की प्रशंसा की, और उन्हें अंतर-विश्वास बिरादरी के सच्चे दूत क़रार दिया, ये देखते हुए कि उन्होंने जज को गणेश की प्रतिमा भेंट की थी. जज ने कहा कि उन्हें मालूम है कि एक वकील बिल्कुल दिल से बोल रहे थे, जब उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें धर्मांतरण में विश्वास नहीं है.
जज ने कहा, ‘लेकिन सवाल ये है कि क्या सिस्टर सघायामैरी और सिस्टर रैचेल मैरी एक ही मिट्टी की बनी हैं. मुझे उम्मीद है कि सीबीआई जांच में सच सामने आ जाएगा’.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)